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November 22, 2024

भूपेन्द्र डोंगरियाल की कविता- देख तमाशा हँसता है सच

देख तमाशा हँसता है सच
खाना-दाना ढूँढ रहा सच,
कलयुग की खलिहानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।
मेरे-तेरे के झगड़े में,
उलझे राजा बन गए रंक।
खुले व्योम के नीचे है सच,
शीश महल में छिपा कलंक।
भोर सुहानी पूछ निशा से,
हँसती क्यों मस्तानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।
मैले तन को उजला करने,
इधर-उधर कलयुग जाता।
इत्र-मित्र बन गन्ध भगाता,
देख के सच ही शरमाता।
संध्या प्रहरी पूछ तू दिन से,
क्या-क्या छिपा ठिकानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।
लाज शर्म ईमान बेचकर,
झूठी रौनक चेहरों पर।
इन्हें पता नहीं संतानें किसकी,
नजर है फिर भी सेहरों पर।
आयी निशाँ हँसती-हँसती फिर,
इठलाती कद्रदानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।
पूजा-पुष्प नहीं बगिया में,
अब कैसे देव मनाऊँ में।
माया ले गई फ़ूल उठाकर,
किसको देव बताऊँ में।
अरी वो बेला,कहाँ चमेली,
रोती जूही पायदानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर। (कविता जारी, अगले पैरे में देखें)

राम-रहीम की इस बस्ती में,
शतरंजी चालें चलते कौन।
झूठे चेहरे लाल-गुलाबी,
सच्चे चेहरे दिखते मौन।
फ़फ़क-फ़फ़क कर रोता मानव,
अपने इन भगवानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।
झूठ की कलगी रंग-रंगीली,
आज हुआ सच लहू-लुहान।
मर-मर कर जीने को उठता,
यही है सच तेरी पहिचान।
अपने घावों को सहलाकर,
आता सच मैदानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।
खूब लड़ाते इन्सानों को,
कुर्सी के खातिर कुछ लोग।
खूब डराते अनजानों को,
लाल कलम दिखाकर भी कुछ लोग।
सच को भी यही कलम बचाती,
कलयुग की खलिहानों पर।
देख तमाशा हँसता है सच,
दो दिन के मेहमानों पर।

कवि का परिचय
नाम- भूपेन्द्र डोंगरियाल
ग्राम- बल्यूली, जनपद-अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड।
वर्तमान पता- आईटीआई कैम्पस, निरंजनपुर, देहरादून।
भूपेन्द्र डोंगरियाल उत्तराखण्ड राज्य सरकार के सेवायोजन एवं प्रशिक्षण अनुभाग में अनुदेशक के पद पर कार्यरत हैं। वर्जिन साहित्यपीठ के सौजन्य से अभी तक उनकी पाँच ई बुक्स प्रकाशित हो चुकी हैं।
मोबाइल नम्बर-
8755078998
8218370117
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