पूछते हैं भरत-बता दो राम गए किस ओर, लक्ष्मण बोले-मारूं भरत को आज
नौनिहाल गए भरत और शत्रुघ्न को रात्रि में अयोध्या पर आये संकट का स्वप्न आता है। इधर अयोध्या से भी एक दूत आकर भरत और शत्रुघ्न को शीघ्र अयोध्या ले जाने के लिए प्रार्थना करता है। दोनों नाना की आज्ञा प्राप्त कर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। मार्ग में ही अयोध्या की दुर्दशा देखकर दोनों का दिल घबराने लगता है। उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होती है।
इसके बाद राजमहल में पहुंचकर माता केकई से सारी स्थिति का पता चलता है। पिता का देहावसान। राम, लक्ष्मण और सीता का वनगमन का कारण भरत अपनी मांता कैकेई को दोषी ठहराते हैं। वह माता कैकई को श्राप देते हैं कि अब से इस संसार में कोई अपनी बेटी का नाम कैकई नहीं रखेगा। इस दौरान शत्रुघ्न मंथरा पर गुस्सा निकालते हैं और उसे धक्का देते हैं। इस पर भरत उसे रोकते हैं।
भरत कौशल्या माता और सुमित्रा को ढाढस बंधा कर वन जाने का निर्णय करते हैं। ताकि राम और लक्ष्मण को वापस अयोध्या लेकर आएं। इस प्रकार वनगमन के लिए गुरु वशिष्ठ के साथ तैयार भरत अयोध्या वासियों सहित वनगमन को प्रस्थान करते हैं। मार्ग में रोते विलाप करते हुए चलते हैं। वह हर व्यक्ति, पशु पक्षी, जीव जंतु से यही पूछते फिरते हैं-बता दो, राम गए किस ओर।
उधर भरत को अयोध्यावासियों की भीड़ के साथ कुटिया की तरफ आते हुए दूर से देखकर लक्ष्मण को शंका होती है कि वह राम से युद्ध करने आ रहे हैं। इसकी सूचना वह तुरंत राम को देते हैं। साथ ही कहते हैं कि आज वह भरत को मार देंगे। वह अपने भाई राम से इसकी आज्ञा मांगते हैं। इस पर राम उन्हें समझाते हैं कि भरत ऐसा नहीं है। उन्हें आने दिया जाए। भरत वन में श्रीराम से भेंट करते है।
भरत के संताप को देख राम भी विचलित हो जाते हैं और उनकी ऐसी हालत पर पूछते हैं-प्यारे हमारे, आंखों के तारे, रोते हो क्यों बार बार। भरत की आंखों से निरंतर अश्रुधारा निकलती रहती है। वह श्री रामजी को पिता दशरथ के देहावसान और अयोध्या की दुर्दशा का सविस्तार वर्णन करते हुए बताते हैं। साथ ही उनसे अयोध्या वापस चलने का अनुरोध करते हैं। भरत कहते हैं कि आपके स्थान पर हम वन में चौदह वर्ष की अवधि व्यतीत करेंगे। वनवासी राम ने युक्ति पूर्वक भरत को समझाकर अयोध्या भेजने का परामर्श देते हैं।
श्री राम के मना करने पर भरत श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस आते हैं। साथ ही वह राम से वचन लेते हैं कि यदि 14 वर्ष के वनवास से लौटने में उन्हें एक दिन की देरी की तो वे अपने प्राण दे देंगे। इससे पूर्व रामलीला के उद्घाटन के मौके पर मुख्य अतिथि अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रोशन लाल अग्रवाल, विशिष्ठ अतिथि देवभूमि उत्तराखंड दुग्ध व्यापार संगठन के अध्यक्ष जितेन्द्र काम्बोज का स्वागत किया गया। संरक्षक विजय कुमार जैन, जय भगवान साहू, प्रधान योगेश अग्रवाल, कोषाध्यक्ष नरेंद्र अग्रवाल, मंत्री अजय गोयल, आडिटर ब्रह्म प्रकाश वेदवाल, स्टोर कीपर वेद साहू, प्रचार मंत्री प्रवीण कुमार जैन, उप मंत्री अमन अग्रवाल, विभु वेदवाल आदि ने भरपूर सहयोग देकर लीला का प्रबंधन किया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।