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October 13, 2025

संभलकर दबाना आंख, कहीं मिटा न दे साख, यहां तो बच गए, लेकिन हर बार नहीं होगा ऐसा

एक सुबह जब प्रकाश की नींद खुली तो बांयी आंख में दर्द हो रहा था। आंख पूरी तरह से नहीं खुल रही थी। वह परेशान हो उठा कि क्या करे।

एक सुबह जब प्रकाश की नींद खुली तो बांयी आंख में दर्द हो रहा था। आंख पूरी तरह से नहीं खुल रही थी। वह परेशान हो उठा कि क्या करे। शायद एक दिन पहले मोटरसाइकिल चलाते समय आंख में धूल- मिट्टी के कण या फिर कोई तिनका चला गया था। उस समय तो हल्का सा दर्द महसूस हुआ, लेकिन अब तो यह तिनका बेहद दर्द दे रहा था। कुछ दवा भी डाली, लेकिन आंख बंद करने पर ही आराम हो रहा था। अब आफिस जाना था, लेकिन यही डर था कि रास्ते भर एक आंख बंद रहेगी और किसी लड़की की नजर उस पर पड़ेगी तो कहीं अशलीलता का मुकदमा न ठोक दे। आजकल कानून ही ऐसे बन रहे हैं। एक बार घूरने पर जमानत हो जाएगी, लेकिन दूसरी बार घूरा तो जमानत ही नहीं होगी।
प्रकाश को याद आया कि शायद ही उसने किसी को कभी सीधे नहीं घूरा। यदि कोई चेहरा आकर्षित लगा तो उसने कनखियों से ही उसे देखने की कोशिश की। अब यह एक आंख बंद है। इसका क्या किया जाए। घूरने का आरोप तो नहीं लगेगा, लेकिन अशलीलता का आरोप लग सकता है। काला चश्मा तलाशा कि वही आंख में लगा लिया जाए। चश्मा होता तो घर में मिलता। बच्चे का छोटा चश्मा तो मिल गया, लेकिन बड़ों का चश्मा नहीं मिल सका।
आफिस जाने से पहले प्रकाश ने डॉक्टर से पास जाना ही उचित समझा। चल दिया मोटरसाइकिल उठाकर सरकारी अस्पताल में। आंख से लगातार पानी निकल रहा था। नेत्र चिकित्सक के कक्ष के बाहर मरीजों की लंबी लाइन थी। पर्ची बनाकर प्रकाश भी लाइन में खड़ा हो गया। डॉक्टर साहब को सुबह आठ बजे सीट पर बैठना था, लेकिन वह तो साढ़े दस तक भी सीट पर नहीं बैठे। पता चला कि जैसे किसी सभा में नेता तब पहुंचता है, जब तक मौके पर भीड़ जमा न हो जाए। ठीक इसी प्रकार यह सरकारी डॉक्टर भी तब सीट पर पहुंचते हैं, जब मरीजों की लंबी लाइन लग जाती है। साथ ही जब तक मरीज परेशान होकर कुलबुलाने नहीं लगते, तब तक डॉक्टर साहब सीट पर बैठते ही नहीं।
प्रकाश लाइन में खड़ा था। बगल में एक महिला भी लेडिज लाइन में खड़ी थी। वह थक गई तो बगल वाली से कहकर समीप ही बैंच में बैठ गई। प्रकाश ने कनखियों से उस महिला को देखा। लगा कि शायद उसे जानता है। ऐसे में वह सीधे ही देखने लगा। तभी आंख का दर्द तेज हुआ और उसकी बाईं आंख चल गई। आंख क्या चली कि महिला ने आगबबूला होकर प्रकाश को घूरा। अब महिला घूरे तो कोई कानून नहीं बना। यह प्रकाश जानता था, लेकिन वह मुसीबत में पड़ गया। उसने महिला का गुस्सा भांपने को उसे दोबारा देखा कि फिर उसकी बांई आंख बंद हो गई। महिला को गुस्सा आ रहा था।
उसने अपने पति को प्रकाश की हरकत से अवगत कराया। पति महाशय भी काफी तगड़ा, लंबा चौड़ा था। वह प्रकाश को खा जाने वाली निगाह से देखने लगा। अब प्रकाश की आंख का दर्द घबराहट में हवा हो चुका था। उसके समझ नहीं आया कि वह क्या करे। उसे साफ अहसास हो रहा था कि अब तमाशा होने वाला है। पहले महिला मारेगी, फिर पति मारेगा और उसके बाद कुछ मरीज भी उस पर हाथ आजमाएंगे। फिर समाचार पत्रों में छपेगा कि एक महिला को छेड़ने के आरोप में दो बच्चों के बाप की अस्पताल में पिटाई।
अब प्रकाश ने अपनी जान बचाने के लिए एक तरकीब सोची। घबराबट में आंख में दर्द महसूस भी नहीं हो रहा था, लेकिन उसने महिला के पति की तरफ चेहरा कर अपनी बांयी आंख दबा दी। कुछ-कुछ देर बाद वह आंख को दबाता रहा। पति उसके पास आया और निकट से घूरने लगा। प्रकाश कांप रहा था। साथ ही वह आंख को भी दबाता रहा। उसकी आंख से पानी तो पहले ही निकल रहा था। तब तक डॉक्टर भी कक्ष में बैठ चुका था। पति महाशय ने कहा कि भाई साहब आपको ज्यादा तकलीफ हो रही है। आप हमसे पहले अपनी आंख दिखा लो।
उसने आगे खड़े अन्य लोगों से भी यही अनुरोध किया कि उसे पहले दिखा लेने दो। लोग भी मान गए। प्रकाश का पहला नंबर आ गया। वह खुश था कि जिस आंख से उसकी शामत आने वाली थी, वही आंख उसे लाइन में सबसे पहले खड़ा कर गई। ये तो एक संयोग था, लेकिन ऐसा प्रयोग आप कभी मत कर लेना। क्योंकि ऐसा करने से क्या होगा, इसकी हम गारंटी नहीं दे सकती हैं। (बुरा मत मानो-होली है, होली की अग्रिम शुभकामनाएं)
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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