बापू का ग्राम स्वराज्य का सपना, सत्ताधारी पार्टियों ने कभी नहीं दिखाई पूरा करने की हिम्मतः सुरेश भाई
ग्राम स्वराज्य की ऐसी कल्पना थी कि गांव एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा, जिसेअपने पड़ोसी पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। फिर भी हो सकता है कि कुछ दूसरी जरूरतों के लिए पड़ोसी का सहयोग अनिवार्य हो। वह परस्पर सहयोग से काम लिया जा सकता है। वे मानते थे कि हर गांव का पहला काम यह होगा कि वह अपनी जरूरत के लिए अनाज और कपड़ों के लिए कपास खुद पैदा करेगा। उसके पास इतनी पर्याप्त जमीन होगी कि जिसमें उसके पशु चर सकें और घर में रहने वाले पशुओं के लिए भी चारा ला सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गांव के बड़ों व बच्चों के लिए मनोरंजन के साधन और खेलकूद के मैदान वगैरह की व्यवस्था हेतु उपयुक्त जमीन गांव के पास हो। इसके बाद भी गांव में ऐसी पर्याप्त खेती योग्य जमीन बची रहे, जिसमें वहां रहने वाले सभी लोग ऐसी उपयोगी फसलें उगाएं जिन्हें बेचकर वे आर्थिक लाभ और आजीविका भी चला सकते हैं। लेकिन उन्होंने अनाज पैदा करने वाली जमीन पर गांजा, तंबाकू, अफीम की खेती से बचने का संदेश दिया था। बापू ने ही कल्पना की थी कि हर एक गांव के पास अपनी एक नाटकशाला, पाठशाला, सभा भवन होना चाहिए। पानी के लिए उसका अपना इंतजाम रहे, जिससे गांव के सभी लोगों को शुद्ध पानी मिलेगा और तालाबों पर गांव का पूरा नियंत्रण रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बुनियादी तालीम को आखिरी दर्जे की पढ़ाई तक सबके लिए जरूरी होगी। जात-पांत और अस्पृश्यता, भेद-भाव, नफरत आज जिस तरह से हमारे समाज में मौजूद है उसे ग्राम स्वराज्य में बिल्कुल भी स्थान नहीं दिया गया है। अतः ग्रामीण समाज सत्याग्रह और अहिंसा के बल पर शासन व्यवस्था चलाएगी, जिसमें होने वाले हर निर्णय में गरीब से गरीब व्यक्ति की भागीदारी रहेगी। गांव की रक्षा के लिए ग्राम सैनिकों का एक ऐसा दल बनेगा जिसे लाजमी तौर पर बारी-बारी से गांव की चौकीदारी का काम दिया जाएगा। इसके लिए गांव में ऐसे लोगों का रजिस्टर रखा जाएगा कि जहां गांव का शासन चलाने के लिए हर साल गांव के पांच आदमियों की एक पंचायत चुनी जाएगी। इसके लिए नियमानुसार एक खास निर्धारित योग्यता वाले गांव के बालिग स्त्री-पुरुषों को अधिकार होगा कि वह अपने पंच चुनेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन पंचायतों के पास सत्ता और अधिकार रहेंगे। आज भी अगर कोई गांव पंचायत चाहे तो अपने यहां इस तरह का प्रजातंत्र कायम कर सकती है। उसके इस काम में मौजूदा सरकार भी मदद करने के लिए आगे आ सकती है। हो सकता है कि वह इसलिए ज्यादा मदद नहीं करेगी क्योंकि उसका गांव से जो भी संबंध है वह सिर्फ मालगुजारी वसूल करने तक ही सीमित है। ग्राम स्वराज्य की तर्ज पर चलने वाले इस तरह के गांव का अपने पड़ोस के गांव के साथ ही राज्य व केंद्र सरकार के सामने एक उदाहरण के रूप में पेश आएगा। जिसका अनुसरण दूसरे गांव के लोग भी कर सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ग्राम शासन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधार रखने वाला संपूर्ण प्रजातंत्र काम करेगा। ग्राम स्वराज्य के लिए समर्पित व्यक्ति ही इस सरकार का निर्माता होगा। हर एक व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा नियम यह होगा कि वह स्वयं और गांव की इज्जत के रक्षा के लिए मर मिटे। संभव है ऐसे गांव को तैयार करने में एक आदमी की पूरी जिंदगी खत्म हो सकती है। सच्चे प्रजातंत्र का और ग्राम जीवन का कोई भी प्रेमी एक गांव को लेकर ग्राम स्वराज्य का यह सपना पूरा कर सकता है और उसी को अपनी सारी दुनिया मानकर उसके काम में मशगूल रह सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वह गांव में बैठते ही एक साथ गांव के स्वच्छकार, बुनकर, चौकीदार, वैद्य और शिक्षक का काम शुरु करना पड़ेगा। जिसके परिणाम स्वरूप गांव में ऐसी कला और कारीगरी का विकास होना चाहिए जिससे बाहर उनकी पैदा की हुई चीज की कीमत मिल सके जब गांव का इस तरह पूरा विकास हो जाएगा तो देहात वासियों की बुद्धि और आत्मा को संतुष्ट करने वाली कला, कारीगरी के धनी स्त्री-पुरुषों की गांव में कमी नहीं रहेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अतः कोई अपने गांव से पलायन नहीं करेगा। गांव में कवि होंगे, चित्रकार होंगे, शिल्पी होंगे, भाषा के पंडित और शोध करने वाले लोग भी होंगे। जिंदगी की ऐसी कोई चीज नहीं होगी जो गांव में न मिले। आज हमारे देहात उजड़े हुए हैं और कूड़े कचरे के ढेर बने हुए हैं। ग्राम स्वराज्य की इस भावना पर यदि काम होगा तो ग्राम वासियों को उनके प्राकृतिक संसाधनों के अधिकार से अलग करना या उनका शोषण करना असंभव हो जाएगा। लेकिन, आजादी के बाद महात्मा गांधी की गैरमौजूदगी के कारण इस विषय पर पूरा ध्यान नहीं गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यह जरूर है कि पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत किया गया ग्राम, प्रखंड और जिला स्तर की पंचायतें बनाकर उन्हें सशक्त करने का जो प्रयास हुए हैं। उसके बाद इन पंचायतों को जल, जंगल, जमीन के अधिकार नहीं सौपे गए हैं। वे सर्वसम्मति से जो प्रस्ताव गांव में तैयार करते हैं उसका क्रियान्वयन तभी होगा जब राज्य व्यवस्था वित्तीय स्वीकृति देगी। गांव का अपना कोई ऐसा कोष नहीं है कि जिसमें सरकार मदद करें और गांव के लोग प्राथमिकता के आधार पर गरीब से गरीब आदमी का ध्यान रखते हुए उसके जीवन और जीविका के अनुसार गांव में सर्वमान्य विकास कर सके। इस तरह की व्यवस्था न करने से गांव के संसाधनों पर बाहरी लोगों का दबदबा बना हुआ है। वे जब चाहे तब उनके साधनों पर कब्जा कर देते हैं और लोग देखते रह जाते हैं। इसलिए ग्राम स्वराज्य ही गांव को आजादी दिला सकता है।
लेखक का परिचय
नाम-सुरेश भाई
लेखक रक्षासूत्र आन्दोलन के प्रेरक है। वह सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद हैं। वह उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन से भी जुड़े हैं। सुरेश भाई उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष भी हैं। वर्तमान में वह उत्तरकाशी के हिमालय भागीरथी आश्रम में रहते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।