बैंककर्मियों ने कटाई सेलरी, निकाला जुलूस, उत्तराखंड में 15 सौ करोड़ का कारोबार प्रभावित, सीटू का समर्थन
बैंकिंग लॉ अमेडमेंट बिल 2021 के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में देने के खिलाफ देशभर के करीब नौ लाख बैंककर्मी दूसरे दिन भी हड़ताल पर हैं। इसके बाद कल शनिवार 19 अक्टूबर को बैंक खुलेंगे और अगले दिन रविवार को अवकाश की वजह से फिर बंद रहेंगे। बैंकों के निजीकरण की प्रस्तावित नीति से बैंककर्मी नाराज है और इसको लेकर विरोध कर रहे हैं। वे बैंकिंग लॉ अमेडमेंट बिल 2021 को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड में बैंक कर्मियों की हड़ताल को एआइटीयूसी, सीटू ने भी समर्थन दिया है। साथ ही मोदी सरकार से अविलम्ब नीजिकरण के फैसले को वापस लेने की मांग की है।
हड़ताल के दूसरे दिन देहरादून में राजपुर रोड में एस्लेहाल स्थित सैंट्रल बैंक की शाखा के समक्ष देहरादून जिले के बैंक कर्मी एकत्र हुए और वहीं, धरना दिया और प्रदर्शन किया। बताया गया है कि प्रदेश भर में दस हजार से अधिक कर्मचारी हड़ताल में शामिल हैं। सुबह एक घंटे के प्रदर्शन के बाद घंटाघर तक जुलूस निकाला गया और वापसी सेंट्रल बैंक पर हुई। इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट और ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष कांति चंदोला ने प्रदर्शन स्थल पर आकर अपना समर्थन दिया। साथ ही सभा को संबोधित किया। सभा का नेतृत्व यूएफबीयू के संयोजक समदर्शी बड़थ्वाल ने किया।
सभा को एस एस रजवार, विनय शर्मा, आर पी शर्मा, वी के जोशी, आर सी उनियाल, एल एम बडोनी, राजन पुंडीर, वी के बहुगुणा, पी आर कुकरेती, एम एल नॉटियाल, करण रावत, ए ए सिद्दीकी, निशांत शर्मा, कमल तोमर, आई एस परमार, डी एस तोमर, ओ पी मौर्य, सुधीर रावत, कौशल्या नेगी, विजय गुप्ता, रजत पांडेय, अमरदीप आदि ने संबोधित किया।
सीटू ने किया समर्थन, जुलूस में शामिल हुए कार्यकर्ता
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) ने बेंको के निजीकरण के सरकार के फैसले के खिलाफ बैंककर्मियों की दो दिवसीय हड़ताल का समर्थन किया। आज दूसरे दिन हड़ताल को समर्थन देते हुए बैंक कर्मियों के जलूस में सीटू कार्यकर्ता शामिल हुए। इस अवसर पर सीटू के सचिव लेखराज, जिला अध्यक्ष कृष्ण गुंजियाल, कोषाध्यक्ष रविन्द्र नौडियाल, अनंत आकाश, दयाकिशन पाठक अर्जुन रावत, राम सिंह भण्डारी सहित दर्जनों कार्यकर्ता शामिल हुए। इस अवसर पर लेखराज ने कहा कि बैंक कर्मियों की एकजुटता से ही केंद्र सरकार को झुकाया जा सकता है। उन्होंने बैंक एमेंडमेंट बिल 2021 को सरकार को वापस लेना ही पड़ेगा। उन्होंने इस आंदोलन को आम जनता का आंदोलन बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि फरबरी में होने वाली देशव्यापी हड़ताल को इन सभी मांगो को लेकर होगी।
बैंक कर्मियों का तर्क
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स की ओर से जारी बयान के मुताबिक, 1969 में निजी क्षेत्र के बैंकों का राष्ट्रीयकरण करते समय शाखाओं की संख्या 8000 थी, जो आज 1,18,000 है। वहीं इन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास 1969 में 5000 करोड़ रुपए की जमा राशि थी, जो आज 157 लाख करोड़ रूपए हो चुकी है। इसी प्रकार 1969 में बैंकों द्वारा दिये गए ऋण की राशि 3500 करोड़ रुपए थी, जो आज 110 लाख करोड़ रुपए हो चुकी है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने आमजन के हित में देश के कोने-कोने में बैंक सुविधाओं का विस्तार किया है, जो सस्ते मूल्य और आसान शर्तों पर दी गई हैं। यही नहीं सरकारी हस्तक्षेप से इन बैंकों की गाढ़ी कमाई से पिछले 7-8 वर्षों से हर साल कॉर्पोरेट पूँजीपतियों का एक से डेढ़ लाख करोड़ रुपए का ऋण माफ किया जाता रहा है।
इसके बावजूद बैंकों का ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट जो 2009-10 में 76000 हज़ार करोड़ रुपए था, 2020-21 में वो 197000 लाख करोड़ रुपए हो गया है। ऐसे में इन बैंकों का निजीकरन करना बड़े पूँजीपतियों को औने-पौने दामों में जमे-जमाये बैंकिंग क्षेत्र को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। पिछले बारह वर्षों में सरकारी बैंकों का परिचालन लाभ कुल मिलाकर 16.55 लाख करोड़ रहा है। साथ ही प्राइवेट बैंक एक के बाद एक घाटे में जाकर बंद होते रहे हैं। लगभग 25 प्राइवेट बैंकों को बंद कर सरकारी बैंकों में मर्ज कर दिया गया। कॉर्पोरेट सैक्टर द्वारा भी बैंकों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। अभी भी डूबंत ऋणों की लागत लगभग 6 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। जिन्हें औने-पौने दामों पर सैटल करवा दिया जाता है। जो आमजन के लिए बैंकिंग सुविधाओं को बहुत अधिक महंगा साबित करने वाला सिद्ध होगा। इससे रोजगार के साधनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा और बैंक-कर्मियों की सेवा-शर्तें भी प्रभावित होंगी।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।