अशोक आनन का गीत- वक़्त का मुसाफ़िर

वक़्त का मुसाफ़िर
वक़्त का मुसाफ़िर
निकल पड़ा सफ़र पर।
पथ अनजान
मंज़िल खोई – खोई है।
साथ में न उसके
हमसफ़र कोई है।
अंधेरा ये घना
मिला उसे डगर पर।
मंज़िल से
पांवों की बहुत दूरी है।
चलना ही सदा
उनकी मज़बूरी है।
आत्मघाती बम वह
बांधकर उदर पर।
आंसुओं के
कभी वह बहाता रेले।
मुस्कान के
कभी वह लगातार मेले।
मसलकर वह ख़ुशियां
पटक गया चुनर पर।
गुनाहगार वह सबका
सज़ा कौन दे।
वक़्त की अदालतों में
वक़्त मौन है।
कोस रहे सभी
उसको जिलाबदर पर।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।