अशोक आनन की कविता- हाथों की लकीरें
हाथों की चंद लकीरों से
हम लिखते रहे किस्मत सदा।
आड़ी, तिरछी, गोल लकीरें।
लिखें हमारी ये तक़दीरें।
लकीरों के कारण सुबह से
मंडी में बिकते रहे सदा ।
लकीरों का जाल हाथों में।
हम उलझे इनकी बातों में।
हाथों से हाथों को अक्सर
सुबह से रगड़ते रहे सदा। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
तक़दीर हमारी लिखकर ये।
बनती रहती हैं मिटकर ये।
इनके जालों में अक्सर हम
मकड़ी से फंसते रहे सदा।
बांच सके न इन्हें कभी हम।
परख सके न इन्हें कभी हम।
इनके नाम पर अनगिनत
पंडित भी ठगते रहे सदा।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।