एक नया दावाः पहले विष्णु स्तंभ था कुतुब मीनार, मुस्लिम शासक ने बदला स्वरूप और नाम
इतिहास की नई नई जानकारी अब सामने आ रही है, या फिर कहें कि इतिहास नए रूप से गढ़ा जा रहा है। सच्चाई जो भी हो, फिलहाल ये दावा किया जा रहा है कि कुतुब मीनार पहले एक विष्णु स्तंभ था।

उन्होंने दावा किया कि मीनार की पहली तीन मंजिलों की संरचना और ऊपर की ओर शेष मंजिलों की संरचना में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है। इन मंजिलों को उनकी ओर से अधिरोपित किया गया था, क्योंकि वे (मुस्लिम शासक) सिर्फ इस्लाम के प्रभुत्व का प्रदर्शन करना चाहते थे। बसंल ने दावा किया कि यह वास्तव में विष्णु मंदिर पर बना एक विष्णु स्तंभ था। उन्होंने (मुस्लिम शासकों) इसे नहीं बनाया था। हमारे (हिंदू) शासकों ने इसे बनाया था।
विहिप ने मांग की कि सरकार कुतुब मीनार परिसर में प्राचीन मंदिरों का पुनर्निर्माण करे और वहां हिंदू रीति-रिवाजों और प्रार्थनाओं को फिर से शुरू करने की अनुमति दे। बंसल सहित विहिप नेताओं के एक समूह ने स्मारक के परिसर का दौरा किया, जिसे 1993 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था। राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) के अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने बृहस्पतिवार को कहा था कि कुतुब मीनार परिसर में अपमानजनक” तरीके से रखी गई गणेश मूर्तियों को या तो हटा दिया जाना चाहिए या उन्हें सम्मानपूर्वक” स्थापित किया जाना चाहिए।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा था कि मूर्तियों को अभी काफी अपमानजनक स्थान पर रखा गया है। मूर्तियों को हटा दिया जाना चाहिए या कुतुब परिसर के अंदर सम्मानपूर्वक रखा जाना चाहिए। बीजेपी नेता एवं पूर्व सांसद विजय ने कहा कि उन्होंने एक साल से भी अधिक समय पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के समक्ष इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन अभी तक उनके पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला है.
विहिप प्रवक्ता बंसल ने कहा कि तरुण विजय जी एएसआई के सामने इस मुद्दे को उठाया है। हमें उम्मीद है कि सरकार और उसके संबंधित विभाग इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेंगे और हिंदू समाज के सम्मान को बहाल करेंगे। इस मुद्दे पर विहिप की भविष्य की कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस मामले पर वरिष्ठ नेता चर्चा करेंगे और अगर जरूरत पड़ी तो हम कानूनी कार्रवाई करने पर भी विचार कर सकते हैं। दिल्ली पर्यटन वेबसाइट के अनुसार, कुतुब मीनार का निर्माण दिल्ली के अंतिम हिंदू साम्राज्य की हार के बाद स्थल पर 27 हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद प्राप्त सामग्री से किया गया था।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।