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February 13, 2025

मां तो मां होती है, चाहे उसने जन्म ना दिया हो, यहां तो जन्म देने वाली पर भारी पड़ी पालने वाली

एक मां वह होती है, जो बच्चे को जन्म देती है, लेकिन उसका लालन पालन नहीं करती। वहीं, एक मां वह होती है, जो बच्चे को जन्म तो नहीं देती, लेकिन उसका लालन पालन करती है। इन दोनों मां में कौन बड़ी या कौन छोटी।

एक मां वह होती है, जो बच्चे को जन्म देती है, लेकिन उसका लालन पालन नहीं करती। वहीं, एक मां वह होती है, जो बच्चे को जन्म तो नहीं देती, लेकिन उसका लालन पालन करती है। इन दोनों मां में कौन बड़ी या कौन छोटी। कौन असली या कौन नकली मां है, यह बताना मुश्किल है। क्योंकि कई बार परिस्थितियां या मजबूरी औलाद को मां से अलग कर देती हैं, फिर बच्चे को पालने वाली ही उसकी मां कहलाती है। कई बार तो बच्चों को यह तक पता नहीं होता है कि, जो उसका लालन पालन कर रही है, वह उसे जन्म देने वाली मां नहीं है। यह राज कई बार अंत तक नहीं खुल पाता।
फिर भी मां शब्द ही वातसल्य से जुड़ा हुआ है। बच्चों का लालन-पालन, दुख-दर्द को दूर करना ही मां अपना कर्तव्य समझती है और निभाती भी है। इस धरती में मानव पल रहा है, इसीलिए हिंदू धर्म में धरती को माता कहा जाता है। गाय को भी यहां माता की संज्ञा दी गई। इसलिए मां से बड़ा कोई नहीं। क्योंकि बाप का स्थान मां ले सकती है, लेकिन मां का स्थान कोई ले ही नहीं सकता।
बात करीब वर्ष 1997 की है। तब मैं सहारनपुर था। सहारनपुर में कचहरी के सामने ही एक कांप्लेक्स में अमर उजाला का कार्यालय था। कचहरी के गेट के बाहर काफी भीड़ जमा थी। दो महिलाओं में विवाद हो रहा था। एक करीब 13 साल की बच्ची जोर-जोर से रो रही थी। बार-बार वह यही कहती अम्मा मैं तूझे छोड़कर किसी के साथ नहीं जाऊंगी। बालिका जिसे अम्मा कह रही थी, उसका भी रो-रोकर बुरा हाल था। एक पत्रकार होने के नाते मेरा मौके पर जाना स्वाभाविक था। मेरी तरह मेरे पत्रकार सहयोगी उमेश शर्मा सहित कई पत्रकार मौके पर एकत्र हो गए।
वस्तुस्थिति जानी तो पता चला कि एक महिला ने जब बच्ची को जन्म दिया तो वह उसका लालन-पालन करने में सक्षम नहीं थी। ऐसे में उसने बच्ची को अपनी सहेली को गोद दे दिया। कोई लिखत-पढ़त नहीं की गई। बच्ची को गोद लेने वाली महिला ने मां का लाड-प्यार दिया। उसे यह तक नहीं बताया कि उसे जन्म देने वाली कोई दूसरी महिला है। जब बच्ची तेरह साल की हो गई, तो अचानक उसे जन्म देने वाली मां का ममतत्व जाग गया। उसने अपनी बच्ची को वापस मांगा, तो बच्ची को मां की तरह पाल रही महिला पर जैसे पहाड़ ही गिर गया।
साथ ही बच्ची को जब असलियत पता चली तो उसे जन्म देने वाली मां से कोई लगाव नहीं रहा। वह तो उसे पालने वाली को ही अम्मा कहकर किसी और के साथ न जाने की रट लगाकर रो रही थी। मामला कोर्ट तक पहुंचा। बच्ची के दो दावेदार होने के नाते उस वक्त उसे महिला शरणालय भेज दिया गया। यही कहा गया कि बालिग होने पर बच्ची जहां जाना चाहेगी, उसे वहीं भेजा जाए।
घटना हुई। समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। हमारे साथी उमेश शर्मा की अमर उजाला में बाईलाइन स्टोरी लगी। फिर धीरे धीरे लोग इस घटना को भूल गए। आगे क्या हुआ। बच्ची बड़ी होकर किसके पास गई, ये किसी को पता नहीं है। इस घटना को मैं जब भी याद करता हूं तो मेरे मन में यही सवाल उठते हैं कि असली मां का अर्थ क्या है। वह मां असली है, जिसने बच्ची को जन्म देकर उसे दूसरे के हवाले कर दिया। बाद में ममतत्व जागा तो उसे लेने वापस आ गई। इसके बावजूद सच्चाई ये भी है कि उसने नौ माह तक बच्ची को गर्भ में पाला। या फिर बच्ची की असली मां वह है, जिसने अंगुली पकड़कर बच्ची को चलना सिखाया। उसकी परवरिश की। खुद कष्ट सहे और हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि बच्ची को कोई कष्ट न रहे। (मदर्स डे की अग्रिम शुभकामनाएं)

भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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