ये है भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीतिः उद्यान घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से उत्तराखंड सरकार को झटका, कांग्रेस ने लपका मुद्दा
ये है उत्तराखंड सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति। एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार से राज्य को मुक्त करने के दावे करती है, वहीं, दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की सीबीआई से जांच रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाती है। अब इसे क्या कहेंगे। उद्यान घोटाले की सीबीसीआई जांच के आदेश हाईकोर्ट नैनीताल ने दिए और सरकार जांच रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। अब खबर ये है कि उत्तराखंड के चर्चित उद्यान घोटाले मामले में उत्तराखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है। इस घोटाले में नेताओं के नाम आने के बाद राज्य सरकार सीबीआई जांच का आदेश रुकवाने सुप्रीम कोर्ट गई थी। वहीं, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को हाथोंहाथ मुद्दा मिल गया है। वो भी ऐसे वक्त पर जब लोकसभा चुनाव निकट आ गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हाईकोर्ट ने दिए थे सीबीआई जांच के आदेश
उत्तराखंड में करोड़ों के उद्यान घोटाले का मामला काफी सुर्खियों में बना हुआ है। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और काश्तकार दीपक करगेती ने उद्यान विभाग के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। मामले की लंबे समय से जांच कर रही है। पिछले साल अक्तूबर में ये मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा था। हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। उसके बाद सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। दीपक करगेती के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सरकार की याचिका खारिज करते हुए सीबीआई जांच जारी रखने के आदेश जारी कर दिए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डेढ़ माह चली थी जांच
दरअसल, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले साल 26 नवंबर को करोड़ों रुपयों के उद्यान घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने के आदेश दे दिए थे। सीबीआई ने अपनी जांच पड़ताल शुरू भी कर दी। जांच डेढ़ महीने से अधिक समय चली, लेकिन जांच के दौरान कई बड़े नाम सामने आए तो सरकार भीतर से हिल गई। इसके साथ ही सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम में पुनर्विचार याचिका दायर करने पहुंची थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याचिका में यह की गई थी मांग
याचिका में कहा गया था कि उद्यान विभाग में लाखों का घोटाला किया गया है। पौधरोपण में गड़बडियां की गई हैं। विभाग की ओर से एक ही दिन में वर्कऑर्डर जारी कर उसी दिन जम्मू कश्मीर से पेड़ लाना दिखाया गया है। इसका भुगतान भी कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस पूरे मामले में कई वित्तीय और अन्य गड़बडियां हुई हैं इसलिए इसकी सीबीआई या फिर किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच कराई जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नेता प्रतिपक्ष ने कहा-भ्रष्टाचारियों को बचाने के हर प्रयास कर रही सरकार
उत्तराखंड में वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि राज्य के उद्यान घोटाले की सीबीआई जांच के उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश के विरुद्ध उत्तराखंड सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर पुनर्विचार याचिका को उच्चतम न्यायालय ने अस्वीकार करने से सिद्ध हो गया है कि राज्य सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए हर प्रयास कर रही है। उन्होंने बताया कि आज सरकार की पुनर्विचार याचिका को अस्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि आखिर उत्तराखंड सरकार भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध हो रही सीबीआई जांच को क्यों रुकवाना चाहती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यशपाल आर्य ने कहा कि 26 नवंबर को उच्चतम न्यायालय के उद्यान घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के आदेश के बाद उद्यान मंत्री गणेश जोशी ने बयान दिया था कि वह भ्रष्टाचारियों को संरक्षण नहीं देंगे। मंत्री के सार्वजनिक बयान के बाद सरकार उद्यान घोटाले में संलिप्त अधिकारियों, विधायक और उसके भाई को बचाने सुप्रीम कोर्ट गई। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि आज सरकार की याचिका मुंह के बल गिरने के बाद सरकार बेनकाब हो गयी है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की कि यदि उनमें थोड़ी भी नैतिकता और लोकतांत्रिक मूल्य बचे हैं तो उन्हें मंत्री गणेश जोशी से इस्तीफा ले लेना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पहले ही उच्च न्यायालय के उद्यान घोटालों की सीबीआई जांच के आदेश से यह सिद्ध हो गया था कि उत्तराखण्ड में भ्रष्टाचार की गंगा में सभी डुबकी लगा रहे थे। उन्होंने कहा कि, इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश में सरकार और शासन के सभी स्तरों की संदिग्ध भूमिका का उल्लेख किया गया था। आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा था कि सत्ता दल के रानीखेत विधायक द्वारा अपने कथित बगीचे में फर्जी पेड़ लगाने का प्रमाण पत्र निर्गत किया था। इससे पहले ही सिद्ध हो गया था कि उत्तराखंड के उद्यान घोटालों में केवल उद्यान निदेशक बबेजा ही लिप्त नहीं हैं, बल्कि प्रदेश सरकार और भाजपा के विधायक व नेता भी सम्मलित हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यशपाल आर्य ने आरोप लगाया कि पहले भी उच्च न्यायालय के द्वारा मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मंशा जाहिर करते ही राज्य सरकार ने आनन फनान सीबीआई जांच का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। उन्होंने साफ किया कि राज्य के अधिकारी और एसआईटी जांच में नकारा सिद्ध हुए हैं। ऐसे में उच्च न्यायालय ने उद्यान घोटाले की जांच सहित से संबधित तीन घोटालों की जांच सीबीआई को सोंपने के आदेश जारी किए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार के द्वारा अंतिम उपाय तक भ्रष्टाचारियों की जांच रुकवाने की कोशिश ओर उच्चतम न्यायालय द्वारा उत्तराखंड के उद्यान घोटाले कि जांच सीबीआई से करवाने के आदेश को बरकरार रखने से राज्य सरकार के जीरो करप्शन माडल की हकीकत सामने आ गयी है। साथ ही यह भी सिद्ध हो गया है कि प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके अधिकारी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नैतिकता के आधार पर दें इस्तीफा उद्यान मंत्रीः करण माहरा
उद्यान विभाग में हुए भ्रष्टाचार को छुपाने के लिय उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में गयी प्रदेश सरकार को झटका लगने पर उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि उद्यान मंत्री को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए। माहरा ने कहा कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए आखिर क्यों इतनी बेताब है, ये समझ से परे है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि उद्यान विभाग अरबों के घोटाले का खुलासा कई समय पूर्व होने के बाद भी पहले सरकार इसमें लीपापोती करती रही। फिर उच्च न्यायालय द्वारा जब सरकार को फटकार लगाई तो जाँच सीबीआई से कराने का आदेश दे दिया, तो सरकार भ्रष्टाचार को समाप्त करने के बजाय उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गयी। जहाँ उसे मुंह की खानी पड़ी। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण चाहती है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और भ्रष्टाचारियों को सरकार द्वारा बचाने का प्रयास भी खेदजनक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करन माहरा ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से स्पष्ट है कि इसमें सरकार का भी योगदान है और अब नैतिकता के आधार पर उद्यान मंत्री को तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। ताकि जाँच में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न हो सके। उन्होंने इस मामले में प्रदेश सरकार से कुछ सवाल भी पूछे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हैं करन माहरा के सवाल
1- जब सरकार को शिकायत कर्ता ने शपथपत्र सहित शिकायती पत्र दिया था तो सरकार ने जाँच क्यों नहीं बिठाई।
2- जब माननीय उच्च न्यायालय में पीआईएल हुई तो विभागीय मंत्री द्वारा जो जाँच बिठाई गयी और 15 दिन का समय दिया गया, उसमें क्या हुआ। उस जाँच में कौन कौन दोषी पाए गए। उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की गयी। अथवा वो जाँच आज तक जनता के सामने क्यों नहीं आई।
3- अगर सरकार पाक साफ थी तो यहाँ प्रदेश के विभागीय अधिकारीयों को पदोन्नति देकर निदेशक बनाने के बजाय हिमाचल प्रदेश में आरोपी अधिकारी को लाकर फिर से सेवा विस्तार क्यों देती रही है।
4- यदि सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस वाकई में है तो उच्च न्यायालय के सीबीआई जाँच के आदेश को रुकवाने के लिए सरकार सर्वोच्च न्यायालय क्यों गई। कहीं दाल में कुछ काला है या पूरी दाल ही काली है।
5- यदि सरकार वाकई में भ्रष्टाचार में सम्मिलित नहीं है तो फिर उच्च न्यायालय के आदेश में उनके विधायक का नाम आने के बाद भी उनके खिलाफ कोई निर्णय पार्टी ने क्यों नहीं लिया।
6- यदि सरकार पाक साफ थी तो प्रथम दृष्टया दोषी अधिकारीयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सर्वोच्च न्यायालय से की अपेक्षा
उन्होंने कहा कि हम उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए उन्हें धन्यवाद देते हैं कि आम आदमी का न्यायालय पर विश्वास बना है। इसलिए उचित होगा कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अथवा उच्च न्यायालय के किसी एक सिटिंग न्यायमूर्ति की देख रेख में इस प्रकरण की सीबीआई जाँच कराए। क्योंकि इसमें सत्ता पक्ष के विधायक का नाम भी है। कहीं सरकार अपने दिल्ली दरबार से सीबीआई पर किसी तरह का दबाव बनाने की कोशिश न कर सके।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।