सेना और पुलिस की ताकत के बावजूद कलम और किताब की ताकत से डरती हैं सरकारेंः आनंद स्वरूप वर्मा
प्रतिगामी ताकतों के खिलाफ एक जीवंत जन संस्कृति के विकास के जरिये ही व्यापक जन समुदाय के हितों की रक्षा हो सकती है। वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि देश के समक्ष आज जो ढेर सारी चुनौतियां हैं, उनके मूल में संस्कृति से जुड़े सवाल हैं। इन समस्याओं की पहचान और उनसे कारगर ढंग से निपटने के लिए संस्कृति कर्मियों और बुद्धिजीवियों को पहल लेनी होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रविवार को जन इतिहासकार और संस्कृति कर्मी प्रो.लाल बहादुर वर्मा की स्मृति में देहरादून स्थित दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के सभागार में आयोजित सामाजिक बदलाव और संस्कृति विषय पर आनंद स्वरूप वर्मा ने व्याख्यान दिया। उन्होंने नेपाल, पाकिस्तान सहित तीसरी दुनिया के अनेक देशों के उदाहरण दिए। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस प्रकार इन देशों में अनेक अवसरों पर संस्कृति कर्मियों ने पहल की और राजनीति की धारा को एक नई दिशा दी। यही वजह है कि दमनकारी सरकारें चाहे वे दुनिया में किसी भी हिस्से में हों, अपनी सेना और पुलिस की ताकत के बावजूद कलम और किताब की ताकत से डरती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आनंद स्वरूप वर्मा वर्मा ने उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के 1936 के उस भाषण की याद दिलाई । उन्होंने कहा कि प्रेम चंद ने कहा था कि साहित्य वह मशाल है जो राजनीति से आगे चलती है। इस संदर्भ में आनंद स्वरूप वर्मा ने प्रेमचंद के उन उद्धरणों का भी उल्लेख किया जिनमें उनके पात्र शोषणकारी सामंती संस्कृति के प्रति हिकारत व्यक्त करते हैं और उनका प्रतिकार करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कहानीकार सुभाष पंत ने कहा कि संस्कृति कर्म समाज में चेतना जगाने का महत्वपूर्ण उपक्रम होता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए आशु वर्मा ने प्रो. लाल बहादुर वर्मा के कृतित्व व जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जन इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा ने हिन्दी भाषा में विपुल लेखन किया। उन्होंने अनुवाद, संपादन, कथा साहित्य, पेशेवर इतिहास लेखन से लेकर आंदोलनों में बांटे जाने वाले पर्चे लिखे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
विश्व इतिहास पर लिखी उनकी पुस्तकें जितना इतिहास के विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय थीं, उतनी ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के बीच। फ्रांस के सारबॉन विश्वविद्यालय से प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक रेम आरों के निर्देशन में उन्हें ‘इतिहास लेखन की समस्याएं’ शीर्षक शोध प्रबंध पर उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी ‘विश्व इतिहास की झलक’ (दो भागों में), ‘इतिहास : क्यों-क्या-कैसे’, ‘अधूरी क्रांतियों का इतिहासबोध’, ‘क्रांतियां तो होंगी ही’, ‘यूरोप का इतिहास’ जैसी इतिहास की उनकी लिखी पुस्तकों को छात्र बहुत ही चाव और प्यार से खरीदते थे। लाल बहादुर वर्मा द्वारा लिखी गईं आत्मकथाएं ‘जीवन प्रवाह में बहते हुए’ और ‘बुतपरस्ती मेरा ईमान नहीं’ उनके व्यापक सामाजिक सरोकारों और प्रतिबद्धताओं की बानगी देती हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।