Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 10, 2024

उत्तराखंड के कठपुतली कलाकार रामलाल, संस्कृतिकर्मी ललित सिंह और डॉ. डीआर पुरोहित को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार

फोटोः रामलाल (बायें), ललित सिंह पोखरिया (बीच में), डॉ. पुरोहित (दायें)

संगीत नाटक अकादमी ने भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में विभिन्न विधाओं में कलाकारों के नामों की घोषणा राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के लिए की है। इनमें उत्तराखंड से कठपुतली विधा को पुनर्स्थापित पुनर्प्रिषिठित करने के लिए रामलाल और संस्कृतिकर्मी प्रोफेसर दाता राम पुरोहित और ललित सिंह पोखरिया का नाम भी शामिल है। उत्तराखंड से तीन कला विशेषज्ञों को यह सम्मान मिलने पर उत्तराखंड भर में हर्ष की लहर दौड़ गयी। पुरस्कार की सूची में ऐसे कलाकार भी शामिल हैं, जिनकी उम्र 75 वर्ष से अधिक है और जिन्हें भारत के प्रदर्शन कला के क्षेत्र से अब तक अपने करियर में कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिला है। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक विशेष अलंकरण समारोह में प्रदान किए जाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चालीस साल से कठपुतली विधा पर कर रहे प्रयोग
देहरादून के ठाकुरपुर निवासी रामलाल भट्ट करीब चालीस साल के कठपुतलियों को लेकर प्रयोग कर रहे हैं। वह स्कूलों में शिक्षाप्रद वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं। उनके पपेट शो में चार तरह की कठपुतलियों का इस्तेमाल होता है। इनमें वह धागेवाली पपेट, रॉड पपेट, मोपेड पपेट और दस्ताना पपेट के जरिये अपना शो करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कला निष्पादन में डॉ. पुरोहित का योगदान
डा. दाताराम पुरोहित को देश भर में गढ़वाल विश्वविद्यालय में पहली बार कला निष्पादन केंद्र स्थापित करने का श्रेय जाता है। उन्होंने ने ढोल सागर पर भी महत्वपूर्ण शोध कार्य किया है, नंदा राजजात और पांडव जागरों, चक्रव्यूह और कमलव्यूह के भी वे विशेषज्ञ हैं। रम्वाण और बुढ़देवा जैसे लोक नाट्यों को भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया। यद्यपि वे गढ़वाल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहे, फर्राटेदार आंग्ल भाषी हैं, तब भी वे अधिकांश समय गढ़वाली में बातें करते हैं यही कारण है कि उत्तराखंड की लोक विधाओं कला संस्कृति जैसे विषयों पर उनकी गहरी पकड़ है और उनका गहन अध्ययन निरंतर चलता रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ललित सिंह पोखरिया ने रंगमंच को बनाई अपनी कर्मभूमि
रंगमंच की दुनिया को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले ललित सिंह पोखरिया नाटक लेखन के साथ ही अभिनय व निर्देशन के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं। रंगमंच में रूचि के चलते उनका चयन वर्ष 1984 में भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ में हो गया था।

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page