युवा कवयित्री अंजली चन्द की कविता-मगर आईना मेरा आजकल खामोश है

मुसाफिर का हमराही सफ़र का हमसफ़र है,
वो यूँ ही वो अनजाना सा बेमेल सा जिंदगी मे किरदार अहम है,
टुटे बिखरे दिल का वो महरम है,
उलझे से मिजाज को वो समझने वाला किरण है,
मगर आईना मेरा आजकल खामोश है!
जो सीख आया है अब मनाने के कई तरीके,
दिल की बातें दिल से करने लगा है,
शायद समझने की जंग खुद से लड़ने लगा है,
मगर आईना मेरा आजकल खामोश है!
सब मालूम है फिर भी अनजान है,
सब याद है फिर भी भुला है,
सब सही करने की लालसा मन मे लिए बड़ा ही मासूम सा मिजाज है,
मगर आईना मेरा आजकल खामोश है!
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चन्द
निवासी – बिरिया मझौला, खटीमा, जिला उधम सिंह नगर, उत्तराखंड।
लेखिका gov job की तैयारी कर रही हैं।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।