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April 24, 2025

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: पहाड़ टूट रहे हैं और प्लास्टिक के बन रहे हैं पहाड़- पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय संचार ब्यूरो के शिमला स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने एक वेबीनार का आयोजन किया।

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय संचार ब्यूरो के शिमला स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने एक वेबीनार का आयोजन किया। वेबीनार में बतौर मुख्य वक्ता पद्म भूषण से सम्मानित विख्यात पर्यावरणविद डा अनिल प्रकाश जोशी ने भाग लिया। बिगड़ते पर्यावरण पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि पहाड़ टूट रहे हैं और प्लास्टिक के पहाड़ बन रहे हैं। कार्यक्रम में राजकीय डिग्री कॉलेज चंबा के सहायक प्रोफेसर अविनाश पाल ने भी बतौर वक्ता कार्यक्रम में भाग लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कार्यक्रम में श्रोताओं को संबोधित करते हुए पर्यावरणविद डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि बीते एक दशक में हिमालय ने बहुत कुछ झेला है, जिसका खामियाजा हम अब बाढ, सूखा, भूस्खलन इत्यादि के रूप में चुका रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि प्रकृति को लेकर अब हमारा चरित्र और आदतें बदल गई हैं। उन्होंने कहा कि अब हमें प्राकृति आपदाओं पर चिंता नहीं होती हैं। इसे हमने अब रूटीन का हिस्सा मान लिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

डॉ. जोशी ने कहा कि इंसानों के लालच के कारण धरती ओवर शूट हो गई है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज पहाड़ टूट रहे हैं और प्लास्टिक के पहाड़ बन रहे हैं। इसके चलते समंदरों में 09 बिलयन टन प्लास्टिक जमा हो गया है। उन्होंने कहा कि हम आज प्राकृति के विनाश के मुहाने पर खड़े हैं। डा जोशी ने कहा कि सरकारें जैसे जीडीपी यानी ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडॅक्ट के लिए काम करती हैं वैसे ही उसे अब जीईपी यानी ग्रॉस एनवॉयरमेंट प्रोडॅक्ट पर भी काम करने की जरुरत है, जिससे प्राकृति का संरक्षण किया जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वेबीनार में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (उत्तरपूर्वी क्षेत्र) के अपर महानिदेश राजेंद्र चौधरी ने इस मौके पर अपने वक्तव्य में मानव कृत्यों द्वारा प्राकृति की हो रही दुर्गती पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमको ये समझने की जरुरत है कि धरती को हमारी नहीं, हमें धरती की जरुरत है और धरती को खतरा नहीं है, खतरा इंसानों को है। इसलिए हमें अब चेत जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रकृति को बचाने में कानून उतने कारगर साबित नहीं होते, जितना हमारी बदली हुए आदतें प्रकृति को संरक्षित करने में मदद करती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चंबा राजकीय डिग्री कॉलेज के सहायक प्रोफेसर अविनाश ने अपने संबोधन में कहा कि प्रकृति को अगर हम नुकसान पहुचांएगे तो वो हमसे इसका बदला अपने हिसाब से लेती है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के संरक्षण के लिए छोटी छोटी बातें अगर ध्यान में रखी जाएं तो बड़े बडे़ बदलाव देखने को मिलते हैं। उन्होंने इस दौरान सतत विकास पर जोर दिया। अविनाश ने इस दौरान चंबा डिग्री कॉलेज में एनएसएस इकाई की ओर से प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रकृति को बचाने का जिम्मा युवा कंधों पर ज्यादा हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वेबीनार में केंद्रीय संचार ब्यूरो चंडीगढ़ के निदेशक विवेक वैभव ने अपने संबोधन में दोनों वक्ताओं और प्रतिभागियों का धन्यवाद किया। उन्होंने इस दौरान कहा कि दोनों वक्ताओं ने जो भी बातें वेबीनार में कीं उन्हें हमें अपने जीवन में आत्मसात करने की आवश्यक्ता है। उन्होंने कहा कि हम सब धरती को मां तो कहते हैं, लेकिन उसे हमने अपने कृत्यों से बीमार कर दिया है। अब हम सबका नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम अपनी आदतों में सुधार कर उसकी बीमारी को ठीक करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कार्याक्रम का संचालन केंद्रीय संचार ब्यूरो शिमला के प्रभारी और क्षेत्रीय प्रदर्शनी अधिकारी अनिल दत्त शर्मा ने किया। इस मौके पर केंद्रीय संचार ब्यूरो चंडीगढ़ की उप निदेशक सुसपना बट्टा, सहायक निदेशक श्रीमती संगीता जोशी और केंद्रीय संचार ब्यूरो चंडीगढ़ के अंतर्गत आने वाले तमाम क्षेत्रीय कार्यालयों ने प्रतिभाग किया।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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