शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-मौसम की पहली बारिश

मौसम की पहली बारिश
मौसम की पहली बारिश हो ,
भीगा – भीगा सा तन -मन हो ।
गीले भीगे पंछी जैसा।
सहमा -सहमा सा गुलशन हो॥
मिट्टी की सोंधी – सोंधी खुशबू से,
फूटे जीवन के अंकुर हो।
हरी भरी सी दूबों पर,
पानी मोती से ठहरे हों॥
मौसम की पहली बारिश हो,
भीगा भीगा सा तन मन हो।
दरख़्तों से लिपटी बेले हों,
बेलों में लिपटे झुरमुट हो ॥
झुरमुट में कुट -कुट से करते ,
शोर मचाते खग – कुल हो।
टप -टप वर्षा का पानी हो,
खूब नहाते शिशु- दल हों॥
ये चांद उतर कर धरती पर ,
नीचे पानी में बहता हो।
चांद लपकने नन्हें शिशु ,
अपनी माँ से जिदियाते हों ॥
उन्हें देखकर जिदियाते सब
मात-पिता खूब हर्षाते हों।।
मौसम की पहली बारिश हो।
भीगा – भीगा सा तन -मन हो॥
हम ख्वाब ओढ़कर सोते हों।
आँखों मे नींदें बहती हों।
नींदों में कुछ मीठे सपनें हों।
सपनों में मेरी तेरी खुशियों
का फहराता सा आंचल हो।
खुशियों के अंचल में सबके
उम्मीदों के कुछ फूल खिलें॥
मौसम की पहली बारिश हो।
भीगा -भीगा सा तन -मन हो ॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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