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April 23, 2025

घर आए बदमाश तो रिटायर्ड फौजी ने मारी मौत की छलांग, फिर क्रोलिंग करते हुए निकले घर से बाहर

बचपन में देखता था कि अक्सर गर्मियों में देहरादून के परेड मैदान में नुमाइश लगती थी। आजकल नुमाइश का रूप ट्रेड फेयर ने ले लिया। कुछ ज्यादा झूले व दुकानें अब लगती हैं, लेकिन मौत की छलांग का खेल अब यहां नहीं दिखाई देता।

बचपन में देखता था कि अक्सर गर्मियों में देहरादून के परेड मैदान में नुमाइश लगती थी। आजकल नुमाइश का रूप ट्रेड फेयर ने ले लिया। कुछ ज्यादा झूले व दुकानें अब लगती हैं, लेकिन मौत की छलांग का खेल अब यहां नहीं दिखाई देता। नुमाइश में हर रात मेला समापन के समय मौत की छलांग का खेल होता था। जमीन पर खुदाई करके एक गोल कुएंनुमा गड्ढ़ा खोदा जाता और उसमें पानी भरा जाता। उसके निकट ही बांस की सीढ़ियां होती। करीब 50 फुट से अधिक की ऊंचाई पर युवक चढ़ता और उसके चेहरे को कपड़े से ढक दिया जाता। युवक मोटे कपड़े पहने होता। जमीन पर पानी से भरा गड्ढा होता। फिर युवक के कपड़ों पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगाई जाती। साथ ही पानी से भरे गड्ढे पर भी पेट्रोल डाल कर आग लगाई जाती। जब लपटें बढ़ जाती तो युवक छलांग लगाता और कुछ देर बाद पानी से सही सलामत बाहर निकलता। तब बताते थे कि ऐसा करतब दिखाने वाले को एक हजार रुपये मिलते हैं। तब मै सोचा करता कि मैं भी ऐसी ही मौत की छलांग लगाकार काफी पैसे वाला व्यक्ति बनूं।
आज देखता हूं कि व्यक्ति कुछ बनने के लिए कभी न कभी मौत की छलांग लगाता रहता है। उसका रूप भले ही बदल गया। अब आगे बढ़ने के लिए व्यक्ति रिस्क लेता है। यही रिस्क उसे कई बार सफल बना देता है और कई बार तो वह चूक जाता है। भले ही ऐसे रिस्क में उसकी मौत नहीं होती, लेकिन कई बार कैरियर ही खत्म हो जाता है। मौत की छलांग कई बार व्यक्ति परिस्थितिजन्य भी लगाता है। ऐसी छलांग खुद की जान बचाने को भी हो सकती है। इस छलांग से वह पैसे तो नहीं कमाता, लेकिन अपनी जान बचाने के लिए ही जान का जोखिम जरूर उठाता है।
करीब बारह 22 पहले की बात है। देहरादून के सुनसान इलाके में स्थित एक स्कूल में रात को डकैती पड़ी। स्कूल परिसर में एक खेल प्रशिक्षक का घर था। वह रिटायर्ड फौजी थे। रात को डकैतों ने सबसे पहले स्कूल के गार्ड को गोली मार दी। उसके बात खेल प्रशिक्षक के घर जाकर लूटपाट की। उनकी पत्नी को मारपीट का घायल भी कर दिया। पहन हुए सारे गहने भी उतरवा लिए। साथ ही घर से सारा सामान खंगाल लिया और कीमती सीमान की पोटली बांधकर ले गए।
कुछ दिन बाद पुलिस ने इस मामले का खुलासा किया। करीब पांच युवकों को पकड़कर प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। साथ ही लूटा गया सामान सोने की चेन आदि की भी बरामदगी भी दिखाई। जब पत्रकारों के सामने पुलिस टीचर से पूछ रही थी कि चेन पहचानों तो उसका कहना था कि मेरी पत्नी ही पहचान सकती है। फिर उससे पूछा कि बदमाशों को पहचान सकता है। इस पर फिर उसने कहा कि मेरी पत्नी ही पहचान सकती है।
हर बात पर पत्नी को आगे करने पर मेरे मन में सवाल उठा कि आखिर डकैती के समय टीचर कहां थे।
मुझसे रहा नहीं गया और मैने सवाल कर दिया कि जब डकैती पड़ी तो उस समय आप कहां थे। तब खेल प्रशिक्षक ने बताया कि सच कहूंगा, लेकिन हंसना मत। सच बात यह है कि मैं उस समय पलंग के नीचे था। उन्होंने बताया कि जैसे ही बदमाश दरवाजा तोड़कर भीतर घुसे। वे पलंग के पास पहुंचे और रजाई खींच कर नीचे फेंकी। साथ ही डंडों से प्रहार किया। रजाई के साथ वह भी उछलकर बिस्तर से नीचे गिरे और फुर्ती से पलंग के नीचे जा सरके। उनका कहना था कि यदि वह बदमाशों की नजर में आ जाते तो निश्चित ही उन्हें बदमाश गोली मार देते। क्योंकि वह पहले गार्ड को गोली मार चुके थे।
उन्होंने बताया कि पलंग पर उसकी पत्नी पर बच्चों को देख बदमाशों ने पहले पत्नी को डंडों से मारा। फिर उससे आलमारी व बक्सों की चाबी लेकर तलाशी शुरू कर दी। उनका कहना था कि यदि बदमाश उसे देखते तो निश्चित रूप से मार डालते। फौजी पहले दुश्मन की नजर से खुद को बचाता है, उसके बाद हमला करता है। यह कहकर वह रुक गए।
मैने उससे पूछा कि- आपने हमला कब किया। तब उन्होंने बताया कि वह हमले की स्थिति में नहीं थे। बदमाशों के पास बंदूक व डंडे थे। उनकी संख्या भी काफी थी। वह उनकी नजरों से बचकर वह क्रोलिंग (कोहनी के बल पर जमीन पर रेंगकर चलना) करते बाहर आए। घर से काफी दूर निकलकर उन्होंने दौड़ लगाई और बगल के गांव के आबादी वाले इलाके में गए। वहां शोर मचाकर लोगों को एकत्र किया। तब घर पहुंचे। तब शोर सुनकर बदमाश बदमाश भाग चुके थे।
इस पूर्व फौजी ने बदमाशों की नजर से खुद को बचाने को मौत की छलांग लगाई। अपनी पत्नी और बच्चों को बदमाशों के हवाले कर दिया और खुद लोगों को एकत्र करने चले गए। इस घटना से मेरे मन में कई सवाल उठते हैं कि क्या फौजी ने सही कदम उठाया। या फिर उसे बदमाशों से भिड़ जाना था। भिड़ने पर यह रिस्क था कि उसकी जान जा सकती थी। या फिर उसे कोई दूसरा कदम उठाना था, जो न तो मुझे आज तक सूझ रहा है और न ही फौजी को भी तब सूझा होगा।
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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