धार्मिक सौहार्द की मिसाल, दुनिया के सबसे बड़े मंदिर के निर्माण को मुस्लिम परिवार ने दान की ढाई करोड़ की जमीन
देश में भले ही समय समय पर धार्मिक उम्माद की खबरें आती हैं, लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द भी भारत की सबसे बड़ी खूबसूरती है। तमाम मसलों पर धार्मिक मतभेदों के बीच बिहार में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम करने वाली एक खबर सामने आई है।
इश्तियाक ने हाल ही में मंदिर को जमीन दान में देने से जुड़ी सारी औपचारिकताएं पूरी कीं। पूर्व आइपीएस अफसर कुणाल ने कहा कि पूर्वी चंपारण के सब डिविजन केशरिया के रजिस्ट्रार ऑफिस में ये औपचारिकताएं पूरी की गईं। आचार्य ने कहा कि इश्तियाक खान के परिवार की ओर से ये भूमि दान में देना सामाजिक सौहार्द्र और भाईचारे की बड़ी मिसाल है। मुस्लिमों के सहयोग के बिना ये सुनहरा प्रोजेक्ट पूरा होना मुश्किल था। महावीर मंदिर ट्र्स्ट अब तक मंदिर निर्माण के लिए 125 एकड़ जमीन प्राप्त कर चुका है।
ट्र्स्ट जल्द ही 25 एकड़ जमीन और हासिल करेगा। विराट रामायण मंदिर दुनिया में सर्वप्रसिद्ध और 12वीं सदी के अंगकोरवाट के मंदिर से भी लंबा होगा। अंगकोरवाट मंदिर की ऊंचाई 215 मीटर है। पूर्वी चंपारण के परिसर में ऊंचे शिखरों वाले 18 मंदिर होंगे और इसके शिव मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग होगा। इस मंदिर की लागत करीब 500 करोड़ रुपये होगी। नई दिल्ली में संसद भवन के निर्माण में लगे कई नामचीन वास्तुकारों की मदद से जल्द ही वास्तु को ध्यान में रखते हुए डिजाइन फाइल करते हुए मंदिर का निर्माण शुरू किया जाएगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
मन्दिर निर्माण से किसका भला होगा ??
मै यही सोच रहा था !
अगर ये मुस्लिम परिवार थोड़ा अधिक समझदार होता तो किसी पिछड़े, गरीब , आर्थिक तौर पर वंचित वर्ग, आदिवासियों, लड़कियों या होनहार विद्यार्थियों के लिए कोई स्कूल, विद्यालय, रोजगारपरक टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुलवाता ! पहले रईस लोग जनता हित मे गर्मियों मे प्याऊ लगवाते थे, धर्मशालाएँ बनवाते थे ! उसके अलावा बस अड्डे, रेल्वे स्टेशन के अलावा मूत्रालय, शौचालय की जरूरात भी तो अभी भी सभी जगह है !
इस देश मे मंदिरों की कोई कमी है क्या ?? भगवान के आज तक किसी को दर्शन नहीं हुए ! फिर भी कहावत तो यह भी है कि कण-कण मे हैं राम !
हे भगवान !
फ़िर अब ऐक और मन्दिर कौन से राम, भगवान के पास ले जाएगा ?? इस तरह के धार्मिक सौहार्द का कोई फायदा नहीं है !
ये ढकोसला मात्र ही है !. क्योंकि साम्प्रदायिक सोच राजनीति ने पैदा की है ! यह ऐसे खत्म नहीं हो पायेगी !
दूसरी तरफ जीवित लोगों को ही छप्पर और छत की सुरक्षा की जरूरत पड़ती है !
भगवान कि परिभाषा के अनुसार किसी खुदा, भगवान / देवता को ऐसे आसरे, ठिकाने की जरूरत कैसे, क्यों और कहां है ??
क्योंकि अगर किसी देवी-देवता को छत, ठिकाने की जरूरत है तो उसकी खूद की शक्ति क्या है ?
जिस देवी-देवता को आसरे की जरूरत पडे, वह कमजोर नहीं तो क्या है ?
वह तो शक्तिहीन नपुंसक के समान ही हुआ !
जो देवताओं का ठिकाना बनाते हैं, वे या तो दूसरों का वेवकूफ बना रहे या खुद ही वेवकूफ है !
रही मन्दिर और अस्पताल की बात तो कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान मैंने संक्रमण से प्रभावित शक्तिशाली और धार्मिक लोगों छोड़िए, किसी अन्य सामान्य जन को भी ईलाज के लिये किसी मन्दिर की शरण मे जाते नहीं देखा !
राम मन्दिर ट्रस्ट के महन्त श्रीनृत्य गोपाल दास जी हों, या योगी श्री अवैद्यनाथ जी या उनके गुरु आदित्यनाथ जी या देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह जी या और भी मंत्री गण, धार्मिक लोग सभी डाक्टर, हास्पीटल , दवाईयों की शरण मे ही जाते पाये गये ! और लाभान्वित हुए !
जबकि सच तो यही है कि राइट टू लाइफ के तहत हास्पिटल बनाना सरकार का संवैधानिक दायित्व है !