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December 23, 2024

अभी दूर है दस मार्च, सीएम की अभी से दौड़ के चक्कर में कहीं सिद्धू जैसी स्थिति न हो जाए हरीश रावत की

उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों के लिए मतदान के बाद से ही जहां बीजेपी के कई विधायक अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भितरघात का आरोप लगाकर सुर्खियों में बने हैं, वहीं कांग्रेस भी कुछ कम नजर नहीं आ रही है।

उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों के लिए मतदान के बाद से ही जहां बीजेपी के कई विधायक अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भितरघात का आरोप लगाकर सुर्खियों में बने हैं, वहीं कांग्रेस भी कुछ कम नजर नहीं आ रही है। 10 मार्च को चुनाव के नतीजे आएंगे और कांग्रेस में पूर्व सीएम हरीश रावत भी अपनी छटपटाहट को दबाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। परिणाम आने में अभी वक्त है। रिजल्ट क्या बोलता है। ये दस मार्च को ही पता चलेगा, लेकिन हरीश रावत भी अपने पक्ष में लाबिंग करने में पूरी ताकत लगाए हुए हैं। कहीं ऐसा न हो कि उनकी स्थिति भी पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की तरह हो जाए।
पंजाब में गाहे बगाहे नवजोत सिंह सिद्धू सीएम पद को लेकर ताल ठोकते रहे हैं। कैप्टन अमिंदर सिंह को सीएम की कुर्सी से हटाने के बाद सिद्धू ने सीएम बनने की पूरी ताकत लगा दी थी। उनकी सुनवाई नहीं हुई और चरणजीत सिंह चन्नी सीएम बन गए। फिर विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू चेहरा घोषित करने की वकालत करते रहे। फिर राहुल गांधी ने सीएम का चेहरा चन्नी को घोषित कर दिया।
ठीक इसी तर्ज पर पूर्व सीएम हरीश रावत भी पिछले छह माह से सीएम पद का चेहरा कांग्रेस में घोषित करने की मांग उठाते रहे। उनकी इस मांग का कांग्रेस संगठन में भी विरोध हुआ और आलाकमान ने भी नजरअंदाज किया। फिर उन्होंने विधानसभा चुनाव से ऐन पहले इसी मांग को दोहरा दिया। यहां तक जब उन्हें चुनाव संचालन समिति का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने खुद को सीएम के चेहरे के रूप में लोगों से सामने प्रस्तुत करना शुरू कर दिया। पार्टी हाईकमान को ये नागवार गुजरा और तब उन्होंने अपने सुर बदले।
उत्तराखंड में कांग्रेस में पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य की कांग्रेस में वापसी के दौरान ही पंजाब में चन्नी सीएम बनाए गए थे। तब हरीश रावत ने कहा कि मेरी भी इच्छा है कि उत्तराखंड में भी दलित चेहरा हो। अब मतदान हो गया और हरीश रावत ने एक बार फिर से सीएम पद की दावेदारी के लिए पूरी ताकत लगानी शुरू कर दी। उत्तराखंड में अभी तक पांच साल बीजेपी तो पांच साल कांग्रेस की सरकार बनती रही। यानी हर बार सरकार बदलती रही। ये मिथक आगे भी क्या जारी रहेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कहीं भी किसी सीट से उलटफेर हो सकता है। बड़े बड़े दिग्गजों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में हरीश रावत या फिर कांग्रेसियों को पांच साल में सरकार बदलने के भ्रम में जीने की बजाय कुछ दिनों का इंतजार कर लेना चाहिए। जो होगा वो सामने आ आएगा।
अब हरीश रावत को ही देखिए। हाल ही में मतदान खत्म होने के बाद हरीश उन्होंने कहा था कि पार्टी की सरकार बनने पर वह या तो मुख्यमंत्री बनेंगे या घर बैठ जाएंगे। उनके इस बयान पर बीजेपी ने भी मजे लिए और कांग्रेसियों को भी ये बयान नागवार गुजरा। पार्टी हाईकमान तक शिकायत पहुंची तो उन्हें सुर बदलने पड़े। अब वह कह रहे हैं कि हाईकमान ही तय करेगा कि मुख्यमंत्री कौन होगा। मुख्यमंत्री बनने या फिर घर बैठने की बात जिस संदर्भ में कही गई है, वह ठीक है। साथ ही कहा कि दुल्हन वही जो पिया मन भाए, इशारा काफी हद तक समझदारों के लिए भी साफ कर दिया।
वैसे कांग्रेस में सीएम पद के लिए उम्मीदवारों की कमी नहीं है। कांग्रेस के पास हरीश रावत के साथ ही प्रीतम सिंह, गोविंद सिंह कुंजवाल, पूर्व मंत्री नवप्रभात, हीरा सिंह बिष्ट और यशपाल आर्य जैसे कई प्रमुख नेता हैं, जो मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे हो सकते हैं। इसलिए कांग्रेस को नेतृत्व का कोई संकट नहीं है। हालांकि इन सब में हरीश रावत को ज्यादा अनुभवी माना जा सकता है। फिर भी जब तक परिणाम सामने नहीं आ जाते, उनका बार बार सीएम के लिए राग अलापना कहीं उन्हें ही भारी न पड़े जाए। जैसा पंजाब में हुआ कहीं वैसा उत्तराखंड में भी ना हो जाए।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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