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November 16, 2024

फिर बोतल से निकला जिन्न, पूर्व विधायक राजकुमार के जाति प्रमाणपत्र को हाईकोर्ट में चुनौती, कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

देहरादून जिले की राजपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जहां एक ओर वह कांग्रेस से टिकट पक्का होने की संभावना के साथ ही चुनावच प्रचार में जुटे हैं, वहीं उनके जाति प्रमाण पत्र का मामला फिर से चर्चाओं में आ गया।

देहरादून जिले की राजपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जहां एक ओर वह कांग्रेस से टिकट पक्का होने की संभावना के साथ ही चुनावच प्रचार में जुटे हैं, वहीं उनके जाति प्रमाण पत्र का मामला फिर से चर्चाओं में आ गया। या कहें कि बोतल में बंद जिन्न के रूप में इस बार ये प्रकरण फिर से बाहर आया और हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने उनके जाति प्रमाण पत्र को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई करते हुए राजकुमार के साथ ही सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 18 फरवरी नियत की गई है। वहीं, इस संबंध में पूर्व विधायक राजकुमार का कहना है कि एक राजनीतिक साजिश से तहत उन्हें बार बार बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। पहले भी ये मामला हाईकोर्ट में पहुंचा था। हाईकोर्ट के निर्देश पर डीएम ने जांच कराई और एडरस संबंधी त्रुटि को पाया गया और उन्हें दोबारा से प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि अब वह इस मामले में मानहानि का मुकदमा दायर करेंगे। इस प्रमाण पत्र के आधार पर वह विधायक भी रहे हैं। साथ ही उन्होंने पिछला चुनाव भी इसी आधार पर लड़ा था। हर बार चुनाव के दौरान उन्हें बदनाम करने के लिए ऐसे प्रयास किए जाते हैं। इस मामले में वह कोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे।
देहरादून निवासी बालेश बवानिया ने याचिका दायर की है। उनका आरोप है कि राजकुमार ने 2011 में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अपना जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया, जो शिकायतकर्ता की जांच के बाद 2012 में निरस्त कर दिया गया। फिर कुछ दिन बाद ही राजकुमार ने फिर से नया जाति प्रमाण पत्र हासिल कर लिया। देहरादून के खुड़बुड़ा मोहल्ला निवासी बालेश बवानिया का कहना है पूर्व विधायक के खिलाफ धोखाधड़ी को लेकर कार्रवाई की जानी चाहिए थी। उन्होंने डीएम को शिकायती पत्र सौंपकर कानूनी कार्रवाई की मांग कर की तो डीएम ने एसडीएम को जांच सौंपी है।
लगाए गए हैं ये आरोप
सामाजिक कार्यकर्ता बालेश बवानिया की मानें तो राजकुमार का जाति प्रमाण पत्र उत्तर प्रदेश के समय जारी किया गया था। उत्तर प्रदेश के समय जो भी प्रमाण पत्र जारी किए गए थे। वह समस्त प्रमाण पत्र शासन द्वारा निरस्त कर दिए गए थे, जो अनुसूचित जाति का व्यक्ति 1950 से पहले देहरादून में निवास करता था। उन दस्तावेजों के आधार पर प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश दिए गए। इसलिए राजकुमार ने 2011 में एक जाति प्रमाण पत्र ईदगाह के पते पर चिरंजी प्रसाद के नाम से बनवाया। इस प्रमाण पत्र को उस पते पर रहने वाले मूल व्यक्ति और राजू की शिकायत पर निरस्त कर दिया गया। उक्त प्रमाण पत्र को राजकुमार 2011 से 2012 तक इस्तेमाल करता रहे। 6 /1/ 2012 को जब वह प्रमाण पत्र निरस्त हो गया तो अचानक राजकुमार को आभास हुआ 26/24 ना होकर 66/64 ईदगाह पर था और मेरे दादा जी व ताऊ जी व पिताजी के साथ मैं परिवार के साथ बाहर रहता था। इसमें दो व्यक्तियों के शपथ पत्र के आधार पर नया प्रमाण पत्र मात्र 3 दिन में जारी किया गया।
उन्होने सवाल उठाया कि राजकुमार का प्रमाण पत्र निरस्त करने के साथ-साथ आपराधिक मामला दर्ज क्यों नहीं किया गया। अगर वह प्रमाण पत्र ठीक था तो राजकुमार कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए क्यों नहीं गए। क्या उन्होंने स्वतः ही मान लिया था कि उनका प्रमाण पत्र गलत था, उसको कोर्ट में चैलेंज क्यों नहीं किया और राजकुमार द्वारा जो नया जाति प्रमाण पत्र बनवाया गया उसको नई तरीके से बनवाने की क्या जरूरत पड़ गई थी। जो गलत तरीके से झूठे दस्तावेज लगाकर बनवाया गया है। बालेश बवानिया ने मांग की कि गैर कानूनी तरह से बनवाए गए जाति प्रमाण पत्र पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें।इस प्रमाण पत्र को निरस्त करने एवं राजकुमार के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही कर दलितों को न्याय दिलाने का काम करें।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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