उत्तराखंड में हॉट सीट बनी कैंट विधानसभा, भाजपा और कांग्रेस में दावेदारों की लंबी लाइन, देखें दावेदारों के नाम
उत्तराखंड में 70 विधानसभाओं में से एक सीट कैंट विधानसभा हॉट सीट बनती जा रही है। कैंट विधानसभा बनने के बाद से अभी तक इस सीट में हरबंस कपूर का कब्जा था। हाल ही में हुए उनके निधन के बाद से अब इस सीट में कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही दावेदारों की लाइन लंबी होती जा रही है।

कैंट विधानसभा से लगातार दो बार जीते कपूर
कैंट विधानसभा देहरादून जिले में पड़ती है और टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरबंस कपूर लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरबंस कपूर विधायक चुने गए थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र सिंह को हराया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरबंस कपूर लगातार दूसरी बार इस सीट से विधायक चुने गए। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सूर्यकांत धस्माना को हराया था। इस चुनाव में भाजपा के हरबंस कपूर को 41,142 वोट मिला था, जबकि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सूर्यकांत धस्माना को 24,472 वोट मिला था। हालांकि इससे पहले कपूर छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं।
पुराना है इतिहास
कैंट विधानसभा का इतिहास बेहद पुराना है। उत्तराखंड राज्य गठन से पहले यह विधानसभा देहरादून शहर के नाम से जानी जाती थी। इस विधानसभा पर पिछले 35 सालों से बीजेपी के हरबंश कपूर विधायक थे। हरबंश कपूर का नाम उत्तराखंड की राजनीति में बेहद अहम माना जाता रहा है। वह एकमात्र ऐसे विधायक थे, जो कि सबसे लंबे समय से विधायक पर बने हुए थे। हरबंश कपूर की पृष्ठभूमि की अगर हम बात करें तो उन्होंने इसे विधानसभा सीट पर 9 बार चुनाव लड़ा। उसमें से केवल पहली दफा 1985 में वह चुनाव हारे थे। उसके बाद लगातार आठ बार इस विधानसभा सीट पर चुनाव जीते। उन्होंने 1989 में हीरा सिंह बिष्ट, 1991 में विनोद चंदोला, 1993 में दिनेश अग्रवाल, 1996 में सुरेंद्र अग्रवाल को हराया था।
इसके बाद इस विधानसभा का परिसीमन हुआ। इसके बाद इसका नाम देहरा खास विधानसभा रखा गया। उसके बाद भी हरबंश कपूर का जलवा इस सीट पर बरकरार रहा। 2002 में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद हरबंश कपूर ने संजय शर्मा, 2007 में लालचंद शर्मा को हराया। इसके बाद फिर एक बार इस विधानसभा सीट का परिसीमन हुआ। तब इसे देहरादून कैंट विधानसभा बना दिया गया। इसके बाद 2012 में हरबंस कपूर ने देवेंद्र सिंह सेठी और 2017 में कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना को हराया। इसके बाद हरबंस कपूर का निधन हो गया और वे इस सीट पर भी जीत की हैट्रिक बनाने से रह गए। हालांकि ज्यादा उम्र के कारण उनके चुनाव लड़ने की संभावना कम थी। अब इस सीट का सिकंदर कौन होगा ये बड़ा सवाल है।
भाजपा में दावेदारों की लंबी लाइन
आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में कैंट विधानसभा सीट पर भाजपा में दावेदारों की लंबी लाइन है। माना जा रहा है कि पार्टी संगठन सहानुभूति वोट लेने के लिए कपूर की पत्नी या फिर उनके बेटे अमित कपूर को चुनाव मैदान में उतार सकती है। वहीं, पिछले पांच साल से भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय गोयल इस विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। वे भी टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। भाजपा नेता योगेंद्र पुंडीर भी कपूर से लगातार जुड़े रहे थे। या कहें कि उनके पदचिह्न पर चलते रहे। ऐसे में वे भी इस सीट से दावेदारी कर रहे हैं। वहीं, आदित्य चौहान, विश्वास डाबर, अमिता सिंह, दिनेश रावत सहित इस सीट से दावेदारों की लंबी लाइन है।
कांग्रेस में खींचतान
इस सीट से टिकट हासिल करने के लिए कांग्रेस में भी दावेदारों की लंबी लाइन है। वहीं, टिकट पाने के लिए वे एक दूसरे को कमजोर साबित करने में तुले हैं। कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना पिछला चुनाव इस सीट से हार गए थे। इसके बावजूद वे पूरे पांच साल तक इस विधानसभा सभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। ऐसा कोई दिन नहीं होता, जिस दिन उनका कोई कार्यक्रम इस विधानसभा में नहीं हो।धस्माना कांग्रेस चुुनाव घोषणा पत्र समिति में संयोजक भी हैं। ऐसे में घोषणापत्र में विभिन्न बिंदुओं को शामिल करने के लिए वह इसी क्षेत्र में ही सक्रिय रहे। साथ ही सदस्यता अभियान भी उनका इसी क्षेत्र तक सीमित रहा। वह समाज के हर वर्ग से लगातार मिल रहे हैं। उनके आयोजनों में जाते रहे हैं। वहीं, उनके विरोधियों का तर्क है कि वह जिताऊ कंडीडेट नहीं है। दो बार चुनाव हार चुके हैं। ऐसे यही, कहीं उनकी कमजोरी साबित न हो जाए।
उधर, कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा भी कैंट सीट से दावेदारी कर रहे हैं। वह भी इस क्षेत्र में गाहे बगाहे कार्यक्रम करते रहे हैं। चाहे कोरोनाकाल हो या फिर केंद्र की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन। उनका कार्यक्षेत्र भी लगातार इसी विधानसभा क्षेत्र में ही बना हुआ है। उनके लिए भी धस्माना की तरह का तर्क दिया जा रहा है। विरोधियों का कहना है कि वह भी कैंट विधानसभा से चुनाव हार चुके हैं। अब तेजी से एक और नाम इस विधानसभा के दावेदारों में जुड़ गया है। वह नाम है वैभव वालिया का। उनके पिता रामकुमार वालिया पहले कांग्रेस में थे और बाद में बीजेपी में चले गए। बताया जा रहा है कि वैभव वालिया दिल्ली में काम कर रह रहे थे। अचानक अब यहां से दावेदारी करने लगे हैं। वहीं, दावेदारों में वीरेंद्र पोखरियाल, नवीन जोशी, कोमल वोहरा, सुमित्रा ध्यानी, संगीता गुप्ता, अभिनव थापर भी इस सीट से टिकट के लिए अचानक सक्रिय हो गए हैं। अब यदि प्रियंका गांधी का यूपी की तर्ज पर उत्तराखंड में भी फार्मूला अपनाया गया और ये सीट किसी महिला दावेदार के हिस्से में आई तो सारे दिग्गजों की मेहनत पर पानी फिर सकता है। वहीं, कांग्रेस में एक और विशेष बात ये है कि जिन दावेदारों को टिकट नहीं मिलता, सभी एकजुट होकर पार्टी प्रत्याशी को हराने में जुट जाते हैं। ऐसे में जिसे भी टिकट मिलेगा, उसके लिए असंतुष्ट को साथ लेकर चलना भी चुनौती होगा। हालांकि भाजपा में ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।