कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-एक छौ गांधी

एक छौ गांधी
गांधी जी का तीन बांदर, नि रैग्या अब.
झड़ि को बाघ – बांदरौं थैं, खैग्या अब..
चार-पीढ़ी, इक- सताब्दी भी-नि बीती,
आंधि तूफान सि ऐ, सब- बुगैग्या अब..
ओ बिचार- ओ संस्कार, अब नि राया,
त्रेता युगा धोबि सि, झीस चुबैग्या अब..
शहीदी-त्यागी-बल्दानि, कथा पल्टिक,
दुसमनै- का बीज, दिलम- ब्वेग्या अब..
सुकिला- लारा, मैल- माटू अफ लपोड़ी,
पौडर लगै, वासिंग मसीनम-ध्वेग्या अब..
स्वारथी मनखी- गठ्यांद , नै- नै कानी,
यो-नैं बानी-बीज, को-रोपण-लैग्या अब..
‘दीन’ एक छौ- गांधी, तुमबि- सूणिल्या,
आजादी दिलै, अफ- सुनिंद-सेग्या अब..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।