विधायकों का रिपोर्ट कार्ड लेकर आए नड्डा, कट सकते हैं 24 के टिकट, उत्तराखंड के मुद्दे हुए गायब, संगठन की सक्रियता पर जोर
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का दो दिवसीय दौरा फिलहाल पार्टी संगठन को कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने के लिए माना जा रहा है। फिलहाल अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आई कि ये कहा जाए कि उत्तराखंड के ज्वलंत मुद्दों पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने किसी नेता से बात की हो। हां इतना जरूर है कि वो विधायकों का रिपोर्ट कार्ड लेने नहीं आए, बल्कि उनका रिपोर्ट कार्ड संगठन मंत्री को सौंपने आए। सूत्र बताते हैं कि कमजोर प्रदर्शन वाले करीब 20 से 24 विधायकों के नाम इसकी सूची में शामिल हैं। उनके स्थान पर आगामी विधानसभा चुनाव में नए चेहरों को टिकट देने की संभावना है। ऐसे में करीब 24 सीटिंग विधायकों को दोबारा चुनाव लड़ने का मौका शायद ही मिले।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा गत दिवस से देहरादून के दो दिनी दौरे पर हैं। कल उन्होंने सांसदों, मंत्रियों, विधायकों के साथ ही कार्यकर्ताओं से बैठक की। आज भी रायवाला स्थित वुड्स रिसोर्ट में आयोजित कार्यक्रम में पूर्व सैनिकों से संवाद किया। उन्हें बताया कि भाजपा सैनिकों के सम्मान में हमेशा आगे रहती है। वहीं, उन्होंने धीरवाली अंबेकर चौक पर बाबा भीमराव अंबेडकर जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। अभी तक उनका कार्यक्रम में माल्यार्पण, स्वागत आदि तक सीमित है। साथ ही कार्यकर्ताओं को ऊर्जा देने के लिए उन्होंने जरूर संगठन को कुछ टाइट किया। अभी तक पूरे शक्ति केंद्रों का गठन नहीं होने पर उन्होंने नाराजगी भी जताई। साथ ही कार्यकर्ताओं में हर तरह से जोश भरने की कोशिश की।
लोकसाक्ष्य पहले ही इसे लिख चुका है कि इस बार के चुनाव में भी भाजपा किसी चेहरे को लेकर मैदान में नहीं उतरेगी। यानी की पुष्कर सिंह धामी आने वाले चुनाव में भाजपा का चेहरा नहीं होंगे। यदि होते तो राष्ट्रीय अध्यक्ष इस संदर्भ में जरूर संकेत देते। उनसे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव संगठन बीएल संतोष भी कह चुके थे कि भाजपा कमल के निशान के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। यानी कि जैसे पहले भाजपा बगैर चेहरे के चुनाव लड़ती आई, अबकी बार भी लड़ेगी।
नहीं हुई उत्तराखंड के मुद्दों पर कोई चर्चा
राष्ट्रीय अध्यक्ष का पूरा जोर निचले स्तर के कार्यकर्ताओं पर रहा। उत्तराखंड में उनके दौरे से आम जनता पर तो प्रभाव पड़ना मुश्किल है, क्योंकि किसी भी प्रदेश के मुद्दे पर संगठन के साथ चर्चा नहीं की गई। उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड, उपनल कर्मियों की समस्या, ग्रामीण विकास प्राधिकरण, भू कानून सहित कई ज्वलंत मुद्दे हैं। न तो ऐसे मुद्दे स्थानीय नेताओं ने उठाए और न ही राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इसे लेकर कोई बात की। न ही सीएम के चेहरे को लेकर। सैनिकों का सम्मान जरूर आज किया गया, लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान शहीदों, घायलों को लेकर की गई घोषणाओं में कितनी अमल में लाई गई, इस पर भी कोई समीक्षा नहीं की गई।
सिर्फ कार्यकर्ताओं को किया रिचार्ज
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो यहां तक कहा कि मैं हर माह कार्यकर्ताओं के बीच आऊंगा। क्योंकि उन्हें भी पता है कि साढ़े चार साल में सरकार की कोई उपलब्धि नहीं है। कोरोनाकाल की दूसरी लहर में तो कार्यकर्ता घरों से ही नहीं निकले। पहली लहर के दौरान जरूर उन्होंने जनता के बीच जाकर सेवा कार्य किए थे। दूसरी लहर का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद वहां भड़की हिंसा के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हर जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन का कार्यक्रम दिया था। कहा गया था कि हर जिला मुख्यालयों में 20 कार्यकर्ता इस प्रदर्शन में शामिल होंगे। इसके तहत देहरादून में मात्र तीन या चार कार्यकर्ता ही ज्ञापन देने जिला मुख्यालय पहुंचे थे। दूसरी लहर के दौरान हर कोई कोरोना के खौफ से घर से निकलना नहीं चाह रहा था। उस दौरान पर्वतीय क्षेत्र में भाजपा को प्रभावितों को राशन बांटने के लिए कार्यकर्ता तक नहीं मिल पाए थे।
इसलिए नाराज हैं कार्यकर्ता
चार साल तक उत्तराखंड में भाजपा के लिए सबकुछ ठीकठाक घट रहा था। फिर मार्च माह में अचानक तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया। वह भी तकनीकी पेच के चलते ज्यादा दिन सीएम नहीं रहे और फिर उन्हें हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया गया। धामी के लिए कुछ ही महीनों का समय है। क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में उनकी भूमिका सिर्फ नाइट वॉचमैन की ही नजर आ रही है। बार बार सीएम बदलने से कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाकर जवाब देना भी मुश्किल प्रतीत होने लगा। ऐसे में कार्यकर्ता नाराज चल रहे हैं। नाराजगी का आलम तो यहां तक था कि धामी के शपथ ग्रहण समारोह में देहरादून महानगर के कार्यकर्ता नदारद थे। वहीं, पार्टी के आला नेता भी जानते हैं कि कोरोनाकाल में सरकार काफी फजीहत झेल चुकी है। उत्तराखंड में तो कोरोना टेस्टिंग घोटाला हाईकोर्ट तक पहुंच गया। ऐसे में सरकार के दम पर चुनाव लड़ना मुश्किल है। सिर्फ कार्यकर्ता ही चुनावी नैया को पार लगा सकते हैं।
चेहरा घोषित करने में हो सकती है दिक्कत
पार्टी के वरिष्ठ नेता भी जानते हैं कि यदि चेहरा घोषित किया गया तो पार्टी के कई नेता और उनके समर्थकों से काम लेना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि भाजपा में इस समय पूर्व सीएम की फौज है। इनमें भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विजय बहुगुणा, तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत, भुवन चंद्र खंडूड़ी सहित लंबी चौड़ी पूर्व सीएम की फौज है। वहीं, पूर्व सीएम के अलावा भाजपा में कई कद्दावर नेता ऐसे हैं, जिनका गाहे बगाहे सीएम के दावेदारों के रूप में नाम सामने आता रहा है। इनमें सांसद अजय भट्ट, सुबोध उनियाल, हरक सिंह रावत, राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी, सतपाल महाराज, धनसिंह रावत हैं। सूत्र बताते हैं कि इन लोगों की बहुत अहमियत है। सभी के साथ कार्यकर्ताओं और समर्थकों की लंबी लाइन है। ऐसे में यदि पहले ही सीएम का चेहरा घोषित किया गया तो चुनाव लड़ने में दिक्कत हो सकती है। क्योंकि यदि एक का नाम घोषित होगा तो दूसरे नेता के समर्थक बिफर जाएंगे। ऐसे में उन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।