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February 3, 2025

क्या आप जानते हैं देश की आजादी के साथ ही दून में इस पत्रिका का हुआ था शुभारंभ, अब देश विदेश में बनी है पहचान

उत्तराखंड में पत्रकारिता के नए-नए आयाम दिए हैं। इसमें आज हिमालयी सरोकारों से संबद्ध युगवाणी का भी नाम आता है। यह पत्रिका उत्तराखंड ही नहीं, अपितु विदेशों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों की भी वाणी बनी हुई है।

उत्तराखंड में पत्रकारिता के नए-नए आयाम दिए हैं। इसमें आज हिमालयी सरोकारों से संबद्ध युगवाणी का भी नाम आता है। यह पत्रिका उत्तराखंड ही नहीं, अपितु विदेशों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों की भी वाणी बनी हुई है। इस युगवाणी को शुरू करने वाले आचार्य गोपेश्वर कोठियाल के बारे में यहां बताया जा रहा है। जानिए इतिहासकार एवं दून निवासी देवकी नंदन पांडे से।
सन 1909 में टिहरी रियासत के उदखंडा नामक ग्राम में एक संपन्न परिवार में आचार्य गोपेश्वर कोठियाल का जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए काशी गए। काशी गए। जहां उन्होंने शिक्षा की सर्वोच्च आचार्य परीक्षा उत्तीर्ण की। आचार्य की उपाधी ग्रहण करने के उपरांत कोठियालजी ने सारस्वत मार्ग का आवलंबन न कर उसमें समयोचित संशोधन करते हुए पत्रकारिता के जटिल पथ को अपनाया और उस मार्ग पर आजीवन चले।
15 अगस्त 1947 की भारतभूमि पर स्वतंत्रता की लोकापगा का अवतरण हुआ। उसी तिथि पर आचार्य ने युगवाणी का प्रकाशन आरंभ किया। देहरादून से प्रकाशित यह समाचार पत्र पर्वतीय लोक संस्कृति को विशिष्टता को उजागर करने के साथ ही संपूर्ण उत्तराखंड के दूसस्थ गांव गांव की वाणी बना। स्वतंत्रता के पश्चात भी गुलामी के अवशेष के रूप में मदमस्त टिहरी रियासत को सामंतशाही के चुंगल से मुक्त कराने में इस साप्ताहिक समाचार पत्र की महान भूमिका रही।


युगवाणी में संस्कृति और विकास के लिए ऋषिकल्प व्यक्तित्व् आचार्य गोपेश्वर कोठियाल आजीवन प्रयासरत रहे। पत्रकारिता के मूल्यों के मूर्तिमान प्रतीक और हिंदी पत्रकारिता के युगस्तंभ आचार्यजी का देहावसान 19 मार्च 2000 को हुआ। एक ऐतिहासिक समाचार पत्र की भूमिका निभाते हुए युगवाणी ने आजादी के बाद के तमाम जन-आन्दोलनों में अपनी अहम भूमिका अदा की। चिपको आन्दोलन, गढ़वाल विश्वविद्यालय आन्दोलन, शराबबन्दी आन्दोलन से लेकर उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में युगवाणी ने अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर इन आन्दोलनों को दिशा दी। इसी के साथ-साथ नई प्रतिभाओं के मार्गदर्शन का कार्य भी यह पत्र करता रहा। नए लिखने वालों के लिए तो यह पत्रकारिता की प्राइमरी पाठशाला रही है। अपने लगाभग 70 वर्षों के लम्बे सफर में युगवाणी पहाड़ की जनता के सवालों को प्रमुख रूप से उठाती रही और इसके केन्द्र में पहाड़ की जनता ही प्रमुख रूप से रही।


आचार्य जी के निधन के पश्चात पत्रकारिता के समुज्जवल संस्कारों में ढले उनके ज्येष्ठ पुत्र संजय कोठियाल ने निजी प्रयासों से युगवाणी के आकार और रंग रूप में परिवर्तन लाकर इसे साप्ताहिक से मासिक पत्रिका का स्वरूप दिया। साथ ही इसमें उन लेखकों को समबद्ध किया, जो वैचारिक समपन्नता से राज्य को सामाजिक व आर्थिक सुदृढ़ता देने में सक्षम हैं। आज हिमालयी सरोकारों से संबद्ध युगवाणी उत्तराखंड ही नहीं, अपितु विदेशों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों की भी वाणी बनी हुई है।
आपने साप्ताहिक स्वरूप को यथावत बनाए रखते हुए युगवाणी ने नवम्बर 2000 से मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारम्भ किया। उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के साथ-साथ मासिक युगवाणी भी अस्तित्व में आई और हर माह की पहली तारीख को यह पत्रिका उत्तराखण्ड के सभी बुक स्टॉलों पर उपलब्ध होती है। अपने प्रकाशन के प्रारम्भ से ही युगवाणी नियमित रूप से प्रकाशित होती आ रही है। पत्रिका उत्तराखण्ड राज्य में ही नहीं बल्कि प्रवास में रह रहे उत्तराखण्डियों को भी डाक द्वारा युगवाणी पहँचाई जाती है। देश के दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र सहित विदेशों में निवास कर रहे प्रवासी बन्धुओं के लिए यह एकमात्र ऐसी पत्रिका है जिसके माध्यम से वह उत्तराखण्ड के बारे में जानकारी जुटा पाते हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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