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September 30, 2025

टोक्यो ओलंपिक में सात पदक, मीठा अहसास और कड़वी सच्चाईः सोमवारी लाल सलकानी

अध्यापन जीवन में भी अनेकों बार व्यायाम शिक्षकों की ओर से बेईमानी की गई और अपने विद्यालय के छात्रों को आगे निकलने की होड़ में अनेकों बार गलत तरीके सामने आये।

टोक्यो ओलंपिक गेम्स सुखद एहसास के साथ संपन्न हो चुके हैं। भारतीय टीम के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन कर देश का गौरव बढ़ाया है। प्रतिभाग करने वाले समस्त खिलाड़ियों को भी शुभकामनाएं और बधाई। उन्होंने एक बेहतर प्रदर्शन करके करोड़ों लोगों का दिल जीता है और अपने हुनर ,मेहनत और इच्छाशक्ति के द्वारा देश का मान बढ़ाया है।
हारना और जीतना बड़ी बात नहीं है, प्रतिभाग करना भी एक बड़ी बात है और खेल भावना से जो खेल खेला जाता है, वही सर्वोपरि होता है। फिर भी पदक पाना एक सुखद अनुभूति का एहसास कराता है और हमारे देश के सात नक्षत्रों ने खेल जगत के इतिहास में इस बार भी चमकदार प्रदर्शन किया। मैं बेटियों को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने बेहतर खेल का प्रदर्शन करके युवा पीढ़ी के लिए निश्चित मानदंड कायम किए हैं। पदक जीतने वाले भारत के समस्त खिलाड़ियों को नमन जो पदक पाने से चूक गए उनके उम्दा प्रदर्शन के लिए भी सलाम।
गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा, सिल्वर मेडलिस्ट मीराबाई चानू और रवि दहिया, ब्रांज मेडलिस्ट भारतीय पुरुष हॉकी टीम, लवलीना बोरगोहेन तथा बजरंग पूनिया को सहस्त्र बार सलाम। इसके साथ ही उन तमाम प्रतिभागियों को भी हार्दिक शुभकामनाएं, जिन्होंने ओलंपिक में प्रतिभाग किया विश्व के तमाम देशों के उम्दा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों जो कि विश्व के लिए अनुकरणीय है, प्रेरणा स्रोत हैं, खेल भावना से वशीभूत होकर उनको भी सलाम।
इस प्रकार टोकियो ओलंपिक खेल मिशन सम्पन्न हुआ।
पदक तालिका के शीर्ष मे संयुक्त राज्य अमेरिका रहा जिसने 39 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 113 पदक प्राप्त किए। चीन ने 38 रनों के साथ अट्ठासी पदक, जापान ने 27 स्वर्ण के साथ 58 पदक, ग्रेट ब्रिटेन ने 22 स्वर्ण के साथ 65 पदक अपनी झोली में किए। भारत ने 1 स्वर्ण के साथ 7 पदक प्राप्त किए हैं।
एक अरब तैंतीस करोड़ जनसंख्या वाले भारत में और आजादी के चौहत्तर वर्ष बाद सात पदक प्राप्त करना तुलनात्मक दृष्टि से आत्म संतुष्टि के लिए ही संतोषजनक कहा जा सकता है। यह गरिमामय उपलब्धि खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत के फलस्वरूप मिली। इतने बड़े जन बाहुल्य देश में कम से कम दसवें स्थान के अंदर भारत को होना चाहिए था। दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में खेलों के प्रति जमीनी स्तर पर वांछित कार्य नहीं हो पाते हैं। खेल भी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाते हैं।
अपनी 62 साल की उम्र में अनेक अनुभव मैंने प्राप्त किए हैं। छात्र जीवन में नवंबर 1978 को जनपद स्तरीय खेल प्रतियोगिता प्रतियोगिता का आयोजन पुरानी टिहरी में आयोजित किया गया। मैं वाद- विवाद प्रतियोगिता के पक्ष में प्रतिभाग करने के लिए अपने कॉलेज से गया था तथा प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। विपक्ष में (पूर्व कैबिनेट मंत्री) मंत्री प्रसाद नैथानी भी प्रथम रहे ।
दौड़ की प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही थी। राजकीय प्रताप इंटर कॉलेज का प्रांगण (चना खेत) के नाम से जो प्रसिद्ध था, 5000 मीटर की दौड़ में मैने प्रतिभाग किया। मैं चौथे स्थान पर चल रहा था। उसके बाद के प्रतिभागी पूरे एक राउंड पीछे थे। मैदान में 5000 मीटर की दौड़ में 25 चक्कर लगाने होते थे। पूरा एक चक्कर पीछे के प्रतिभागी को चौथे स्थान पर बता दिया गया। फिर उसके बाद वाले को पांचवां और फिर छठवां करार दिया गया। उल्टे चौथे स्थान पर होने के बावजूद मुझे सातवें स्थान पर कर दिया गया। यह जीवन का कटु अनुभव है । हारना और जीतना बड़ी बात नहीं है, पर जब निर्णायकों की ओर से बेईमानी की जाती है तो इस से निराशा मिलती है। मनोबल टूटता है और कुछ करने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है ।
अध्यापन जीवन में भी अनेकों बार व्यायाम शिक्षकों की ओर से बेईमानी की गई और अपने विद्यालय के छात्रों को आगे निकलने की होड़ में अनेकों बार गलत तरीके सामने आये। इसका विरोध भी किया गया और दोबारा प्रतियोगिता भी आयोजित करवानी पड़ी। देश के बच्चों के पास स्वस्थ शरीर के साथ-साथ खेलों के प्रति एक जन्मजात भावना है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के ना होने के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
कई वर्ष पूर्व टिहरी जनपद के थौलधार प्रखंड के अंतर्गत तत्कालीन खंड शिक्षा अधिकारी जगन्नाथ अरोड़ा जी के प्रयासों के कारण राजकीय इंटर कॉलेज कमांद का प्रांगण सुसज्जित करवाया और वहां जनपद स्तरीय खेलों का आयोजन किया गया। देखते ही देखते जो प्रखंड जो पहले खेलों में पीछे के स्थानों को प्राप्त करता था, प्रैक्टिस करने के कारण तथा वातावरण सर्जन होने के कारण अनेकों प्रतियोगिताओं में प्रथम और तृतीय स्थान पर रहा। वहां के बच्चों ने स्टेट लेबल से नेशनल लेबल तक प्रतिभाग किया।
जहां-जहां खेल के मैदान हैं और विधिवत बच्चे प्रशिक्षण लेते हैं वहां के बच्चे हमेशा आगे रहते हैं। टिहरी जनपद में चाहे राजकीय इंटर कॉलेज नैनबाग हो या राजकीय इंटर कॉलेज पुजार गांव या राजकीय इंटर कॉलेज किलकिलेश्वर या जनता इंटर कॉलेज पूर्णानंद, राजकीय इंटर कॉलेज नरेंद्र नगर या पुराना राजकीय प्रताप इंटर कॉलेज टिहरी। वहां के बच्चे हमेशा खेलों में आगे बढ़े हैं। सौभाग्य की बात है याद नई टिहरी शहर के बौराडी में भी भव्य प्रांगण का निर्माण हो चुका है।
हाल ही में पूर्व सैनिक संगठन के संरक्षक इंद्र सिंह नेगी टिहरी जनपद के हृदय स्थल चंबा के आसपास खेल मैदान के लिए निवेदन कर चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने विक्टोरिया क्रॉस गब्बर सिंह नेगी के नाम पर चंबा में खेल मैदान के लिए अनेक बार आग्रह किया। यहां तक की भूमि भी चिह्नित कर बताई। इसके बावजूद खेल का मैदान नहीं बन पाया। इससे फलस्वरूप बच्चों को उचित प्रशिक्षण तथा खेल के प्रति आकर्षण पैदा नहीं होता है। इस समय सेवानिवृत्त कर्नल अजय कोठियाल अपने यूथ फाउंडेशन के की ओर से बच्चों को सेना का प्रशिक्षण प्राप्त करवा रहे हैं। इसके अनुकूल परिणाम सामने आ रहे हैं। यद्यपि अब वह भी राजनीतिक पाले में चले गए हैं।
राजनीति के इस घालमेल के कारण उतना अच्छा नहीं हो पा रहा है, जितना होना चाहिए था। बड़े स्तर पर तो स्टेडियम बन गए। स्पोर्ट्स कॉलेज खुल गए, लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाए तो आज भी खेल के मैदानों का अभाव है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बच्चे आशातीत प्रगति नहीं कर पाते हैं। क्योंकि ना कहीं सामुदायिक गृह हैं, न प्रेक्षाग्रह है जहां कि वह अपनी प्रतिभा को दिखा सकें।
इसलिए यदि खेलों के प्रति देश को आगे बढ़ाना है और भूमंडलीकरण के इस दौर में भारत को विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में अपना वांछित स्थान पाना है तो जमीनी स्तर पर कार्य करना जरूरी होगा। पुराने खिलाड़ियों, पूर्व सैनिकों तथा शिक्षाविदों की राय लेनी होगी। एक ठोस कार्य योजना जब तैयार होगी तो अपेक्षित परिणाम जरूर मिलेंगे। फिलहाल ओलंपिक में भारत की उपलब्धि के लिए प्रणाम।


लेखक का परिचय
कवि एवं साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी, निशांत सेवानिवृत शिक्षक हैं। वह नगर पालिका परिषद चंबा के स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर हैं। वर्तमान में वह सुमन कॉलोनी चंबा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में रहते हैं। वह वर्तमान के ज्वलंत विषयों पर कविता, लेख आदि के जरिये लोगों को जागरूक करते रहते हैं।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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