पढ़िए युवा कवयित्री प्रीति चौहान की शानदार तीन कविताएं
बहुत है……
खुल के मुस्कराने का जी चाहता है……
पर गमो का कारवा भी तो बहुत है……..
उडना चाहती हूँ खुले गगन बेपरवाह पन्छी जैसे…..
पर जिम्मेदारियो का बोझ भी तो बहुत है…..
अपनो के लिए मैं अपना सारा जहाँ लूटा दू….
पर यहाँ अपना है कौन ये कशमकश भी तो बहुत है…..
तमाम परेशानियो को पीछे छोडकर कुछ पल अपने लिए जीना चाहती हूँ….
पर उन परेशानियो की याद आने के बहाने भी तो बहुत है….
सपनो को मुकम्म्ल करना चाहती हूँ…..
पर पग-पग पर जमाने के ताने भी तो बहुत है….
कविता दो—-
क्यो???
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
कभी कहते हो तुम तो देवी हो पुजित हो…
और कभी कहते हो तुम तो अरे’ तुम तो दुषित हो….
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
कहते हो लडका-लडकी मे भेद नही हे…..
अरे नही हे तो इस बात को लेकर इतना शोर क्यो?
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
लक्ष्मी कहते हो न बेटी को….
तो उस लक्ष्मी के पैदा होने पर इतना अफसोस क्यो?
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
कुल की इज्जत शान की जिम्मेदारियो का बोझ है न बेटियो पर…
तो बेटो की इतनी लालसा क्यो?
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
बहू के रुप मे बेटी ब्याह कर लाते हो न..
तो उस बेटी को दहेज के कारण जलाया जाता हे क्यो?
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
नारी को दुर्गा का रुप अन्याय का पर्तिकार कहते हो न…
तो उस दुर्गा पर इतने अत्याचार क्यो?
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
मंदिरो मे नारी को देवी का रुप मानकर पूजा जाता हे न…..
तो सडको पर उस देवी का बलात्कार क्यो?
नारी के लिए दोहरे मानदण्ड क्यो?
आखिर क्यो??????
कविता-तीन
माँ तेरी बहुत याद आती है……
दिन भर की भाग दौड मे थक जाती हू…..
रात को सुकुन से तेरे आंचल मे सोना चाहती हू….
माँ तब तेरी बहुत याद आती है……
समझाने को लोग बहुत है…
पर समझता कोई नही…
माँ तब तेरी बहुत याद आती है…..
दिन-भर की बाते बताने को सुनने सुनाने को बाते मेरे पास बहुत है….
पर मेरी बातो को सुनने का वक्त किसी के पास नही….
माँ तब तेरी बहुत याद आती है…..
थक कर भी मै अब थकती नही….
सबके सामने मै अब रोती नही…
माँ तब तेरी बहुत याद आती है…..
लाखो की भीड है हर तरफ…..
बहुत शोर है बहुत लोग है….
पर खुद को अकेला पाती हू….
माँ तब तेरी बहुत याद आती है….
माँ तेरी बहुत याद आती है….
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (द्वितीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
नारी पर बहुत सुंदर रचना ।। वाह ।।