डंडे के बल पर गुलदार के जबड़े से बकरी को छुड़ाने वाले ग्रामीण के साहस पर दीनदयाल बंदूनी की गढ़वाली कविता
मुन्ना रावत
गजब कु साहस भोर्यूं , तेरा ज्यू- ज्यान भुला.
अपड़ा घर बार दगड़, रख अपणु ध्यान भुला..
बालमसिंह जी कु नाती, दयाल जी कु नौनु,
भलि मवा कु नौनु तू , दियूं-भलु ज्ञान भुला..
लौकडौनम घैर ऐ, जिकुड़िम नै स्वींणा सजै,
गोर- बखरा पऴीं, बड़ि- कुटमा शान भुला..
भैरौंगढ़ी कु लाल तू, भैंरौं कु सोटा त्वे दगड़,
बाग दगड़ि लड़ैं करि, बढ़ै सबकू मान भुला..
देवीथान छोड़ , गोरु- बखरौं चराणौ अयीं छै,
मनस्वाग बाघ-द्वाबा लग्यूं, लीड़ौ ज्यान भुला..
बकरी देखी-मारी झपट्टा, झट्ट-दौड़ि वे पैथर,
दाड़ से बाघा छुड़ै, तू छै बड़ू बलवान भुला..
‘दीन’ भैसोड़ा गौंकू बाघ, फसिगे- ज्याऴम,
सरु मुल़क आज तेरू, करणूं गुणगान भुला..
पढ़ें: आदमखोर गुलदार पिंजरे में हुआ कैद, 22 जून को मार डाला था युवक को, ग्रामीणों ने ली राहत की सांस
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
मुन्ना रावत के अदम्य साहस पर आधारित रचना