पढ़िए युवा कवयित्री किरन पुरोहित की सुंदर रचना-रो मत कुंती
जो किसी निर्दोष को दुख देता है, उसे कभी सुख की प्राप्ति नहीं होती । भगवान उसका सुख धीरे-धीरे छीन लेते हैं। प्रस्तुत कविता यही बताती है निर्दोष कुंती और पांडवों के साथ हुए अनेक अत्याचारों के बावजूद कौरवों के सारे षड्यंत्र अंत में व्यर्थ होते हैं। पांडवों की विजय होती है। चौसर के खेल के बाद अपने पुत्रों के साथ हुए अन्याय से आहत कुंती रो पड़ती है और कवियत्री उसे सांत्वना देती है ढांढस बंधाती है।
विषय—- रो मत कुंती
अंत शीघ्र ही होगा उन सब ,आस्तीन के सांपों का ।
धर्म मूर्ति ईश्वर देंगे अब ,दंड उन्हें सब पापों का ।।
जो सच को दुख देते हैं ,हरि उनका सुख ले लेते हैं ।
पापी का सुख चैन छीन कर , सुख निर्दोष को देते हैं ।।
हंसने दे पापी कौरव को , अंत शीघ्र उनका होगा ।
रो मत कुंती तेरे सुतों का ,बाल भी बांका ना होगा ।।1।।
वह क्या अपने जो अपनापन ,सदा भूल ही जाते हैं ।
घावों से खेला करते हैं ,मन पर शूल चुभाते हैं ।।
आस्तीन के इन सांपों को ,दूध पिलाओ तो भी क्या ?
विष से पूरित जिव्हा वाले ,विष ही उगला करें सदा ।।
लाख जलाएं लाक्षागृह पर ,अंत सदा उनका होगा ।
रो मत कुंती तेरे सुतों का ,बाल भी बांका ना होगा ।।2।।
भले खेल चौसर की पारी ,धर्मराज हारे जाएं ।
भले धर्म रण करते योद्धा ,युद्ध बीच मारे जाएं ।।
यदि अपने ही हाथ उठाकर ,अपनों की लज्जा लुटे ।
लाख दुशासन से श्रृंगार ,सब पांचाली पर आ टूटें ।।
अंत समय के आ जाने पर ,अंत बुरा उनका होगा ।
रो मत कुंती तेरे सुतो का ,बाल भी बांका ना होगा ।।3।।
जो सच के पथ पर चलते हैं, निर्मल उनका मन होता ।
उनके निर्मल मन मंदिर में, परमेश्वर का तन होता ।।
जो उनको दुख देते हैं ,जो उनको शूल चुभाते हैं ।
हिमपुत्री कहे सौगंध हरि की ,भूल वही कर जाते हैं ।।
सत्यरथी प्रभु के आने पर ,अंत शीघ्र उनका होगा ।
रो मत कुंती तेरे सुतो का ,बाल भी बांका ना होगा ।।4।।
_ किरन पुरोहित हिमपुत्री
लेखिका का परिचय —
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता – श्री दीपेंद्र पुरोहित
माता – श्रीमती दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
आयु – 17 वर्ष
अध्ययनरत – कक्षा 12वीं उत्तीर्ण
निवास, कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।