युवा कवि कंदर्प पण्डया की कविता- वो लड़का है साहब
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वो लड़का साहब,
वो बाहर से मुस्कुराता है,
वो खुश भी है,
पर न जाने क्यों,
उस मुस्कुराहट के पीछे की उदासी,
और उस खुशी के पीछे का गम,
उसकी हर रात को आँखे भर लाता है,
खुल कर कुछ बता नही सकता,
वो मजबूती की मिसाल है इसलिए,
उसने आँसुओ को भोर रात के
उस तकिये तक ही रखा,
जो,
जख्म सहता है, पर कह नही सकता,
अंदर ही रोता है, पर दिखा नही सकता,
बाहर से पत्थर है, पर छुपा नही सकता,
वो समझदार है, पर समझा नही सकता,
हां साहब वो लड़का,
उसका बचपन ही अच्छा था,
सब उसे चाहते थे,
उससे कोई रूठता न था,
जवानी ने उसे अपनो से छीना,
उसे इतना समझदार किया,
की अब सोचते हुए भी रोता है,
हां साहब वो लड़का,
वो सुना नही सकता,
जो ज़हन में भरा है,
वो सुना नही सकता,
जो हाल है उसका,
हां साहब वो लड़का,
हां वो रो नही सकता,
कुछ कह नही सकता,
हां साहब ऐसा ही लड़का है,
जितना लिख न सके,
उतना सहता है,
भर रखा है दिल मे जज़्ज़बतो का कटोरा,
हां ज़िम्मेदारी भी भरी पड़ी है ,
रो नही सकता और कह नही सकता,
इश्क़ में भी समझोता किया है साहब,
हां वो परिवार से दूर रहता है,
सपनों को हकिकत मैं बदलने के खातीर,
किसी को ना नही कहता,
कही कोई नाराज़ न हो जाये इसलिए,
उसकी औकात से बड़े काम को भी हां कह देता है,
हां साहब वो लड़का,
जो सबसे अलग रहता है,
हां साहब वो ऐसा ही लड़का है,
कवि का परिचय
नाम-कंदर्प पंड्या
पेशे से छात्र युवा हिंदी लेखक कंदर्प पण्डया चिखली, डूंगरपुर, राजस्थान के एक लेखक हैं। वे अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा सरकारी विद्यालय से पूरी कर चुके हैं। वर्तमान में वह मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से बीएससी में अध्ययनरत हैं। वे अपने जुनून के रूप में विगत एक वर्ष से कविता लिख रहे हैं।
मो. न.- 7597133129
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।