शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-काली चादर
काली चादर
उर में न जानें आज, छाया क्यों।
तम जैसे काली चादर ओढ़े।
दिशा दिशा बिखरी है क्यों,
तम अपनी निर्मम काया छोड़े।।
सोच रहा हूं इक दिया जला लूं,
उर में उजाला लिए मन में ओढ़े।
फिर भी तम से हार भला क्यों,
शायद उजाले के दिए हैं थोड़े।।
काली नागिन सा दिखता तम,
फैलाए अंधकार की छाया छोड़े।
फन डसने को व्याकुल आतुर,
कोई तो इस फन को मरोड़े।।
न जानें किस किस पर छाया तम की,
उर में करुण रुदन वो छोड़े।
अनन्त पथ को वो रोकना चाहे,
कोई तो उसके अंधकार को तोड़े।
हसीं कपोल होंठ पर लिए कोई,
हजारों दिए शायद छोड़े।
अंत होगा जरूर विक्षक्त तम का,
रहेगा नहीं तम काली चादर ओढ़े।
काली चादर ओढ़े, काली चादर ओढ़े
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।