पुण्य तिथि पर एचएन बहुगुणा को दी गई श्रद्धांजलि, सीएम से हुआ कांग्रेस नेता का सामना, जानिए हिमपुत्र के जीवन के बारे में

उत्तराखंड के साथ ही देश भर में लोकप्रिय जननेता हेमवती नंदन बहुगुणा की 32 वीं पुण्यतिथि पर आज उत्तराखंड में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। यहां हम पुण्य तिथि पर आयोजित कार्यक्रमों के साथ ही बहुगुणाजी के जीवन पर भी प्रकाश डाल रहे हैं। ताकी युवा पीढ़ी को उनके बारे में जानकारी हो सके।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि स्व. बहुगुणा जी अपने नैतिक मूल्यों, सिद्धांतों एवं आदर्शों पर हमेशा अडिग रहे। उन्हें अपनी संस्कृति, बोली और भाषा से बेहद प्यार और लगाव था। वह सच्चे राजनेता, समाजसेवी और पहाड़ के हितों के लिए सोचने वाले व्यक्ति थे। उनके विचार हम सभी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं और देते रहेंगे।
स्वर्गीय बहुगुणा का व्यक्तित्व गांधी और नेताजी सुभाष का मिश्रणः धस्माना
हिमपुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा की 32 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना के नेतृत्व में पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने स्वर्गीय बहुगुणा की बहुगुणा काम्प्लेक्स में स्थापित प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। तत्पश्चात बल्लीवाला चौक कालिंदी एनक्लेव में पार्टी के कैम्प कार्यालय में गोष्ठी का आयोजन किया।
गोष्ठी में धस्माना ने स्वर्गीय एचएन बहुगुणा को एक दूर दृष्टि वाला सच्चा धर्मनिरपेक्ष नेता बताया। उन्होंने कहा कि बहुगुणा जी का व्यक्तित्व महात्मा गांधी व नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्वों का मिश्रण था। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी की धर्मनिरपेक्ष सोच व नेताजी के संघर्ष का जज्बा दोनों की झलक बहुगुणा जी के व्यक्तित्व में मिलती है। उन्होंने कहा कि बहुगुणा जी ने पूरे जीवन कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। चाहे वो स्वतंत्रता का दौर रहा हो या आजाद भारत में राजनीति का उनका सफर।
धस्माना ने कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान जब वो जेल गए तो इलाहाबाद के कलेक्टर ने उनके पिता को उनके पास भेजा कि एचएन बहुगुणा से माफी नामा लिखवा दो तो वे रिहा हो जाएंगे इस पर श्री बहुगुणा ने अपने पिता को कहा कि मैं मर जाऊंगा लेकिन अंग्रेजों से माफी नहीं मांगूंगा। धस्माना ने कहा कि 1980 में वे कांग्रेस के मुख्य महासचिव थे। इंदिरा जी से उनके मतभेद हुए और उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दिया। उन्होंने सैद्धांतिक रूप से सांसद की सदस्यता से भी यह कहते हुए त्यागपत्र दे दिया कि मैं जिस पार्टी के टिकट पर चुन कर आया हूँ जब उस पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया तो उसके टिकट पर चुन कर आई सीट पर क्यों सांसद रहूं। वे देश के पहले सांसद बन गए, जिन्होंने पार्टी के साथ साथ संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया।
गोष्ठी में महानगर कांग्रेस उपाध्यक्ष धर्म सोनकर, अभिषेक तिवारी, मंजू त्रिपाठी, मंजुला तोमर, महेश जोशी, एसपी बहुगुणा, राजेश चमोली, ललित भद्री, गगन छाचर, अनुजदत्त शर्मा, सरदार जसविंदर सिंह मोठी, अल्ताफ हुसैन, प्रमोद कुमार गुप्ता, आदर्श सूद आदि ने भी अपने विचार रखे।
सीएम और कांग्रेस नेता का हुआ सामना, गर्मजोशी से की मुलाकात
ये उत्तराखंड है। इसीलिए इसे देवभूमि कहा जाता है। राजनीतिक मतभेद भले ही हों, लेकिन यहां के राजनेता एक दूसरे के दुख दर्द में शामिल होते हैं। सामना होने पर एक दूसरे से शिष्टाचार से मिलते हैं। आज भी ऐसा ही हुआ। देहरादून में बहुगुणा काम्प्लेक्स में स्थापित स्व. एचएन बहुगुणा की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के लिए पहले कांग्रप्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना पहुंचे। माल्यार्पण के बाद वे इलेक्ट्रॉनिक मीडियाकर्मियों को बाइट दे रहे थे। तभी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी माल्यार्पण करने को पहुंच गए। सीएम की गाड़ी कॉम्प्लेक्स के गेट पर खड़ी हो गयी तो धस्माना उनके जाने का इंतजार करने लगे। तभी दोनों गेट के पास आमने सामने आ गए। फिर क्या था, शिष्टाचार में ऐसे मिले, जैसे बचपन के बिछड़े दोस्त मिले हों।
गैरसैंण विधानसभा में लगाई जाए हेमवती नंदन बहुगुणा की प्रतिमा
उत्तराखंड कांग्रेस उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने कई बार केंद्रीय मंत्री रहे और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की याद में उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण और देहरादून में उनकी प्रतिमा लगाई गाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि देश की आजादी बाद में देश के नवनिर्माण में उनके शानदार योगदान का स्मरण करते हुए उन्हें सम्मान देने के लिए प्रदेश सरकार को उनकी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
हिमालय पुत्र बहुगुणा का जीवन परिचय
25 अप्रैल, 1919 को पौड़ी जिले के बुधाणी गांव में हेमवती नंदन का जन्म हुआ। वह दौर था गांधी का, जो भारत की राजनीति को राजे-रजवाड़ों की लड़ाई से अलग गांववालों के हाथ में देने जा रहे थे। उसी गर्व से बने डीएवी कॉलेज से हेमवती की भी पढ़ाई हुई थी। पढ़ाई के दौरान ही हेमवती का संपर्क लाल बहादुर शास्त्री से हो गया था। देश की राजनीति में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी।
आंदोलनों में हुए शामिल
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही वह छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। 1936 से 1942 तक हेमवती नंदन छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती के काम ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी। अंग्रेजों ने हेमवती को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा था। 1 फरवरी 1943 को दिल्ली के जामा मस्जिद के पास हेमवती गिरफ्तार हुए थे। 1945 में छूटते ही फिर वह आंदोलन से जुड़ गए।
यूपी की राजनीति में हुए सक्रिय
उसके बाद हेमवती यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए। 1952 से वो लगातार यूपी कांग्रेस कमिटी के सदस्य रहे। 1957 में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे। ऐसा माना जाता है कि सरकार जिसको मंत्री नहीं बना पाती, उसे ये पद दे देती है। हेमवती को नजरअंदाज करना सरकार के लिए आसान नहीं था। 1958 में वह सरकार में श्रम और उद्योग विभाग के उपमंत्री रहे। फिर 1963 से 1969 तक यूपी कांग्रेस महासचिव के पद पर रहे। 1967 में आम चुनाव के बाद बहुगुणा को अखिल भारतीय कांग्रेस का महामंत्री चुना गया। इसी साल कांग्रेस में समस्या पैदा हो गई। चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी। फिर 1969 में इंदिरा गांधी को लेकर ही बवाल हो गया। कांग्रेस दो हिस्सों में टूट गई। त्रिभुवन नारायण सिंह जैसे नेता कामराज के सिंडिकेट ग्रुप में चले गए। वहीं, कमलापति त्रिपाठी और हेमवती नंदन बहुगुणा इंदिरा गांधी के साथ बने रहे। त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव में एक पत्रकार रामकृष्ण द्विवेदी से हार गए। इसके बाद कमलापति त्रिपाठी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया। पीएसी विद्रोह के चलते उनको भी पद छोड़ना पड़ा।
यूपी के बने सीएम
हेमवती नंदन 1971 में पहली बार सांसद बने थे। उनको उम्मीद थी कि इंदिरा का लगातार सपोर्ट करने की वजह से उनको कोई ताकतवर पद मिलेगा, लेकिन वह संचार विभाग में जूनियर मिनिस्टर ही बन पाए थे। उस वक्त वह इतने नाराज हुए थे कि 15 दिन तक मंत्री का चार्ज ही नहीं लिया था। इसके बाद इंदिरा ने इनको स्वतंत्र प्रभार दे दिया था। इसके अलावा हेमवती को जगजीवन राम कैंप का माना जाता था। इंदिरा गांधी को सलाह दी गई कि इनको यूपी का मुख्यमंत्री बना दीजिए। ये आपके विश्वासपात्र हो जाएंगे। हेमवती बारा से विधायक बने।
दिलचस्प बात ये है कि कमलापति और हेमवती के रिश्ते बहुत अच्छे थे। हेमवती अपने पिता के अलावा सिर्फ कमलापति के ही पांव छूते थे। कमला ने भी बहुगुणा के नाम पर हां कर दी। बहुगुणा ने आते ही यूपी के हालात सुधरे और छह महीने बाद राज्य में अधमरी हो चुकी कांग्रेस को चुनाव भी जिता दिया। विपक्ष के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता की जमानत भी जब्त करवा दी थी।
1975 में नहीं बिगड़ गए इंदिरा गांधी से संबंध
1975 में इंदिरा गांधी ने सबको सरप्राइज करते हुए देश में इमरजेंसी लगा दी। कांग्रेस के भी कई नेता इस बात पर चिढ़ गए थे।इंदिरा के सामने बोलने का साहस किसी में नहीं था। इसी दौरान 1975 में बहुगुणा की इंदिरा से अनबन हो गई। इस्तीफा देना पड़ा। इसके पहले वो 4 मार्च 1974 को भी रिजाइन कर चुके थे, लेकिन 5 मार्च 1974 को फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी।
कांग्रेस के की बगावत
जब 1977 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई तो बहुगुणा ने पहली बार कांग्रेस से बगावत की। बहुगुणा ने पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई। उस चुनाव में इस दल को 28 सीटें मिली। जिसका बाद में जनता दल में विलय हो गया। इसी पार्टी के बैनर तले बहुगुणा ने आज के उत्तराखंड की चार लोकसभा सीटें जीती। चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री रहते बहुगुणा देश के वित्त मंत्री भी रहे।
दोबारा लौटे कांग्रेस में
हालांकि जनता पार्टी के बिखराव के बाद बहुगुणा 1980 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में दोबारा शामिल हो गए। 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए, तो इंदिरा गांधी ने हेमवती नंदन बहुगुणा को कांग्रेस में आने का निमंत्रण दिया और उनको प्रमुख महासचिव बनाया। 1980 में मध्यावधि चुनाव में बहुगुणा ने पूरी शक्ति के साथ चुनाव अभियान को संचालित किया। बहुगुणा गढ़वाल से जीते।
छह माह में ही छोड़ी कांग्रेस, अमिताभ बच्चन से हारे
चुनाव के बाद केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई। बहुगुणा को कैबिनेट में जगह नहीं मिली। छह महीने के अंदर ही बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी के साथ ही लोकसभा की सदस्यता भी छोड़ दी। 1982 में इलाहाबाद की इसी सीट पर हुए उपचुनाव में भी जीत हासिल की थी। 1984 का चुनाव में राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को इनके सामने खड़ा कर दिया। अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोट से हराया।
राजनीति से लिया सन्यास
बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आये थे। यहां देवीलाल और शरद यादव ने उन पर गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिये, जिससे वो अंदर से टूट गये थे। इस हार के बाद बहुगुणा ने राजनीति से संन्यास ले लिया। पर्यावरण संरक्षण के कामों में लग गये। 3 साल बाद अमिताभ ने सीट छोड़ दी और राजनीति से संन्यास ले लिया। उसी दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा की मौत हो गई।
बेटी भी है राजनीति में
रीता बहुगुणा जोशी हेमवती नंदन की बेटी हैं। रीता यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं। 2016 में उन्होंने अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा जॉइन की थी। रीता बहुगुणा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर रह चुकी हैं। हेमवती नंदन यहीं से पढ़े थे। रीता समाजवादी पार्टी की ओर से 1995 से 2000 तक इलाहबाद की मेयर भी रहीं। राष्ट्रीय महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकीं रीता ने बाद में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की कमान भी संभाली। फिर 2007 से 2012 के बीच यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं और इसी दौरान बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 2012 में उन्होंने लखनऊ कैंट से विधानसभा चुनाव जीता। 2014 में उन्होंने लखनऊ सीट से लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। 2017 में वो भाजपा की तरफ से लखनऊ कैंट से उम्मीदवार बनी थीं।
बेटे विजय बहुगुणा रहे उत्तराखंड के सीएम, अब हैं भाजपा में
मार्च 2016 में हेमवती के बेटे विजय बहुगुणा ने भी भाजपा जॉइन कर ली थी। इलाहाबाद में जन्मे विजय बहुगुणा राजनीति में आने से पहले महाराष्ट्र हाई कोर्ट में जज रह चुके हैं। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने इलाहाबाद से राजनीति में कदम रखा। वहां सफलता नहीं मिली तो वह उत्तराखंड लौट गए। 1997 में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी का सदस्य बनाया गया। विजय बहुगुणा को 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी के कार्यकाल में उत्तराखंड योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। 2004 में वो 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 2009 में वह 15वीं लोकसभा के लिए टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट से चुन लिए गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की वापसी हुई तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि लोकसभा चुनाव 2014 से पहले उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा और उनकी जगह हरीश रावत ने ली। मार्च 16 में उत्तराखंड में कांग्रेस विधायकों के बगावती तेवरों से संवैधानिक संकट खड़ा हुआ तो विजय बहुगुणा ने पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए।
राजनीतिक पद
वर्ष 1952 में सर्वप्रथम विधान सभा सदस्य निर्वाचित। पुनः वर्ष 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य।
वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति तथा वर्ष 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति सदस्य।
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव।
वर्ष 1957 में डा0 सम्पूर्णानन्द जी के मंत्रिमण्डल में सभासचिव।
डा0 सम्पूर्णानन्द मंत्रिमण्डल में श्रम तथा समाज कल्याण विभाग के पार्लियामेन्टरी सेक्रेटरी।
वर्ष 1958 में उद्योग विभाग के उपमंत्री।
वर्ष 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री।
वर्ष 1967 में वित्त तथा परिवहन मंत्री।
वर्ष 1971,1977 तथा 1980 में लोक सभा सदस्य निर्वाचित।
दिनांक 2 मई,1971 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में संचार राज्य मंत्री।
पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च, 1974 तथा दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
वर्ष 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम,रसायन तथा उर्वरक मंत्री।
वर्ष 1979 में केन्द्रीय वित्त मंत्री।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुगुणा जी को नमन.