छठी कक्षा में प्रवेश के लिए विद्यासागर नौटियाल को चलना पड़ा था 150 किलामीटर पैदल (पुण्यतिथि पर विशेष)
उत्तराखंड के गढ़वाल रियासत के वन अधिकारी नारायण दत्त नौटियाल के घर विद्यासागर नौटियाल का जन्म 29 सितम्बर 1933 को हुआ था। दस वर्ष की आयु में 150 किलामीटर पैदल चलकर कसेंडी बंगाण से टिहरी पहुंचकर सन 1942 में प्रताप इंटर कालेज में कक्षा छ: में प्रवेश लिया। पिता द्वारा घर में अंग्रेजी भाषा का अभ्यास कराने के कारण कालेज में वाद-विवाद प्रतियोगिता में इंटर कक्षा के विद्यार्थियों की तुलना में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। आज उनकी पुण्यतिथि पर यहां उत्तराखंड के इस महान साहित्यकार और आंदोलनकारी के जीवन के बारे में बताने जा रहे हैं।
आंदोलनों ने भूमिका
प्रजामण्डल आन्दोलन के प्रति झुकाव होने के कारण कम्युनिस्ट नेता नागेन्द्र सकलानी के सम्पर्क में विधासागर नौटियाल आए और उन्हीं के साथ रहकर मार्क्सवाद की शिक्षा ग्रहण की। सन 1946 में टिहरी रियासत में स्वतंत्रता के लिए आन्दोलनों की बाढ़ आ चुकी थी। इन तूफानी दिनों के दादा दौलतराम कुकसाल तथा नागेन्द्र सकलानी की कड़ाकोट आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारी हो गयी थी। विद्यासागर नौटियाल ने हेवट पाठशाला के मैदान में स्थित पीपल के ऊँचे वृक्ष पर चढकर जेल के अन्दर भूख हड़ताल पर बैठे नागेन्द्र सकलानी से संकेतों में बात करना सीख लिया। साथ ही सकलानी द्वारा जेल के अन्दर से पत्थर पर बांधकर फेंके गये पत्रों को कम्युनिस्ट मुख्यालय बम्बई पहुंचाना शुरू कर दिया।
इतने से ही चुप न बैठने वाले विद्यासागर ने देशभक्ति व प्रेम का प्रदर्शन कुछ इस प्रकार किया कि वे प्रताप इण्टर कालेज की ऊंची इमारत की टीन की छतों पर चढ़कर रात में वहाँ तिरंगा फहरा आये। अंग्रेजों के भारत से जाने पर टिहरी की सामन्तशाही ने हैदराबाद, कश्मीर व अनेक दूसरी रियासतों की तरह अपने को भारत से स्वतंत्रता घोषित कर दिया।
प्रजामण्डल ने टिहरी रियासत के इस सामान्तशाही निर्णय के विरोध में रियासत के भीतर पूर्ण स्वतंत्रता की लड़ाई छेड़ दी। 18 अगस्त 1947 को प्रजामण्डल के अन्य शीर्ष नेताओं के साथ चौदह वर्षीय विद्यासागर नौटियाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। टिहरी रियासत की सामान्तशाही व्यवस्था के समाप्त होने पर नौटियाल जी ने सन 1952 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तथा वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का कार्य करना आरम्भ किया।
हिंदी साहित्यकारों का अपनी तरफ खींचा ध्यान
बनारस में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, त्रिलोचन शास्त्री जैसे प्रकाण्ड हिन्दी साहित्य के विद्वानों के सम्पर्क में आने पर विद्या सागर नौटियाल की साहित्य के प्रति रूचि जागृत हुई। सन 1953 में भैंस का कट्या’ कहानी के प्रकाशित होने पर हिन्दी साहित्यकारों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट हुआ। इस तरह बनारस में आठ वर्षों तक अध्ययन, लेखन व कम्युनिस्ट पार्टी का कार्य सुचारू ढंग से चलाते रहे।
विश्वविद्यालय में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं जेल की यात्रा तो करनी ही पड़ी साथ की गलत नीतियों के विरोध में नौटियाल जी द्वारा स्वर मुखर करने के कारण ही विश्वविद्यालय से भी आजीवन निष्कासित कर दिया गा। इस घटना से पूर्व नौटियाल जी विश्वविद्यालय छात्र संसद तथा यूनियन में उच्च पदों पर भी आसीन रहे। सन् 1958 में अखिल भारतीय छात्र फेडरेशन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। सन् 1959 में अपने गृह जनपद टिहरी लौट आये।
टिहरी में कम्युनिस्ट पार्टी कार्यकर्ता के रूप में शोषण के विरुद्ध संगठनात्मक कार्य आरम्भ किया। शासकीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार के विरोध में भी समय-समय पर आवाज बुलन्द करते रहे। भारत-चीन युद्ध के समय कांग्रेस सरकार ने इन्हें बिना मुकदमा चलाये 22 माह तक देश की विभिन्न जेलों में बन्द रखा।
कारागार से मुक्त होने के उपरान्त नौटियाल जी ने लगभग 25 वर्षो तक वकालत का कार्य किया। सन् 1980 में देवप्रयाग सीट से विधान सभा सदस्य निर्वाचित हुए। लेखन के प्रति रूचि रखने के कारण इनका पहला उपन्यास ‘उलझे रिश्ते’ सन् 1959 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास ‘भीम अकेला’ तथा ‘सूरज सबका है’, 1994 तथा 1997 में
प्रकाशित हुए। इनके द्वारा लिखी गयी ‘सोना’ (नथ) कहानी का नाट्य रूपान्तरण दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। 18 फरवरी 2012 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
कृतियाँ :
उपन्यास : उलझे रिश्ते, भीम अकेला, सूरज सबका है, उत्तर बयाँ है, झुण्ड से बिछुड़ा, यमुना के बागी बेटे।
कहानी-संग्रह : टिहरी की कहानियाँ, सुच्चि डोर, दस प्रतिनिधि कहानियाँ :- (उमर कैद, खच्चर फगणू नहीं होते, फट जा पंचधार, सुच्ची डोर, भैंस का कट्या, माटी खायँ जनावराँ, घास, सोना, मुलज़िम अज्ञात, सन्निपात।)।
आत्मकथ्य : मोहन गाता जाएगा।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बिद्यासागर नौटियाल जी बहु प्रतिभा के धनी थे उन्हें शत् शत् नमन्