जनकवि डॉ. अतुल शर्मा की तीन कविताएं-झील का रंग कुछ नया होगा, सुबह और बात तब तक होती है

झील का रंग कुछ नया होगा
इस हरे रंग के पीछे कोई रहा होगा
जब कटे पेड़ इन पहाडो़ के
झील का रंग उड़ गया होगा।
आदमी नाव हो गया होगा
हाथ पतवार हो गया होगा
रंग मौसम का बदल जाने से
आग चूल्हे की हो गया होगा ।
गीत बोली के हम नही गाते
बात की झील तक नही जाते
बंद लकड़ी की खिड़कियां है लोग
देखते सब हैं खुल नही पाते ।
कविता-दो-सुबह
याद रखियेगा सुबह के
एहसास की कविताये
कविताए खोज लेती हैं
सुबह के क ई विषयों की वर्णमाला
व्याकरण उसका अलग
अर्थ भी
संधि भी
सुबह का सर्वनाम अलग
होती थी कभी सुबह
कभी भी
क्यो होती है सुबह बार बार
जरा पूछो तो सूरज से
या
जिसके पास इसका हो पता
उससे
होती रहे सुबह
हो जाये
रिक्त न हो
सुबह का
काला जादू.. ।
कविता-तीन
बात तब तक होती है
जब तक उसमे बात हो
दिवारो और कमरो से आजा़द
खुले आसमान की छत
पास हो
गहरे उतर जाये
बदलाव के बीज
और हो जरुर
शरीर से सिचाईहोनी ही चाहिए रोटियों और आवाज़ के लिये
एक ही हाथ मे हों
चांद और सूरज
सब मौसम अपने पक्ष मे करने के लिए
तवा
ठीक आग के ऊपर
हो
रसोई मे हो तवा या फुटपाथ
यही तो बात है
कि कविता झूठ नही बोलती
लाखों तनावों के बाद भी ।
लेखक का परिचय
डॉ. अतुल शर्मा (जनकवि)
बंजारावाला देहरादून, उत्तराखंड
डॉ. अतुल शर्मा उत्तराखंड के जाने माने जनकवि एवं लेखक हैं। उनकी कई कविता संग्रह, उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके जनगीत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की जुबां पर रहते थे।
उत्कृष्ट रचना