हिंदी का श्राद्ध मत मनाओ, थोड़ा हिंदी समझ लो, बात समझ आए तो दूसरों को शेयर जरूर करना

जिस भारत में बहुसंख्यक हिंदी बोलते हैं। जिस देश को हिंदुस्तान कहा जाता है। उसी देश में एक दिन पहले हमने हिंदी दिवस मनाया। कई संस्थानों में हिंदी का पखवाड़ा भी अब शुरू हो चुका होगा, या फिर हिंदी के नाम पर कसम खाई जा रही होंगी। ऐसे में मेरे मन में विचार आया कि आज थोड़ी हिंदी समझ ली जाए। समझ आए तो दूसरों को शेयर करना। कारण ये है कि इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए कि जिस देश को हिंदुस्तान कहते हैं, वहां हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ रही है। कोई भी दिवस या दिन विशेष की आवश्यकता उस विषय या कार्य के लिए पड़ती है, जिसे बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता होती है। अपने ही देश में अपनी राष्ट्रभाषा को बढ़ावा देने की बात समझ से परे है। यदि अंग्रेजी भाषा या फिर अन्य किसी भाषा के लिए दिवस मनाया जाए तो समझ में आता है। इसके उलट हिंदी भाषी देश में हिंदी दिवस को मनाकर ठीक उसी प्रकार औपचारिकता की इतिश्री कर दी जाती है, जैसे पितृ पक्ष में पित्रों का श्राद्ध मनाकर की जाती है। हो सकता है कि 14 सितंबर को पूरे देश भर में मनाए जाने वाले हिंदी दिवस की तुलना श्राद्ध से करने से किसी को मेरी बात पर आपत्ति हो, लेकिन मैं कई साल से यही महसूस कर रहा हूं। ऐसा महसूस करने के कारण मैं आपके समक्ष रख रहा हूं। वैसे मैं भी हिंदी का पंडित नहीं हूं। मैने इधर उधर से जानकारी जुटाई और आपको प्रस्तुत की। यदि इसमें भी गलती रह गई तो कमेंट में लिखर गलती सुधारने का प्रयास करना। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कारण ये है कि आज के युवाओं में स्कूली किताब को छोड़कर हिदी की कहानी, उपन्यास, इतिहास आदि पढ़ने में अब रुचि भी नजर नहीं आती। सब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान बटौर रहे हैं। युवा पीढ़ी भी अब अंग्रेजी उपन्यास पर ही ज्यादा जोर देती है। हिंदी के लेखकों की किताबें सिर्फ लाइब्रेरी की शोभा बढ़ा रही हैं। वहीं, जो पढ़ते भी हैं, वो भी इस चक्कर में रहते हैं कि उन्हें फ्री में पुस्तक पढ़ने को दे दी जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हिंदी दिवस पखवाड़ा पितृ पक्ष में ही क्यों
यदि किसी को मेरी भावनाओं से ठेस पहुंचे या फिर आपत्ति हो, तो मैं उससे क्षमा प्रार्थी हूं। क्योंकि हिंदी दिवस साल में एक बार आता है और पितृ पक्ष भी साल में एक बार ही आते हैं। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में उन सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी का ढोल पीटा जाना लगता है, जहां अंग्रेजी में ही काम किया जाता है। सरकारी संस्थान तो हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में हिंदी दिवस पखवाड़ा आयोजित करते हैं। यह पखवाड़ा एक से 14 सितंबर या फिर 14 से 30 सितंबर तक आयोजित होता है। अब पितृ पक्ष को देखिए। यदि अधिमास न हो तो पितृ पक्ष भी इसी दौरान पढ़ता है। या फिर कहें तो इससे कुछ आगे या पीछे पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देखें ये समानता
इसी तरह हिंदी दिवस पखवाड़े व पितृ पक्ष के बीच समानता देखो दोनों लगभग एक ही दौरान साल भर में एक बार मनाए जाते हैं। पितृ पक्ष में ब्राह्माणों को घर में बुलाया जाता है। पित्रों की तृप्ति के लिए पंडितों के माध्यम से उन्हें तर्पण दिया जाता है। तर्पण के बाद कौवे, कुत्ते व गाय को भोजन देने के साथ ही ब्राह्माण को भोजन कराया जाता है। साथ ही पंडितों को दक्षिणा भी देने की परंपरा है। अब हिंदी पखवाड़ा देखिए। साल भर कौवे की तरह अंग्रेजी की रट लगाने वाले सरकारी व निजी संस्थान इन दिनों हिंदी का ढोल पीटने लगते हैं। इस संस्थानों में हिंदी पखवाड़े के नाम पर बाकायदा बजट ठिकाने लगाया जाता है। हिंदी के रचनाकारों व कवियों के रूप में हिंदी के पंडितों को आमंत्रित किया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दोनों ही पढ़ते हैं मंत्र
पितृ पक्ष मे किए गए श्राद्ध में पंडितों की भांति हिंदी के पंडित भी रचनाओं व गोष्ठी के माध्यम से हिंदी की महानता के मंत्र पढ़ते हैं। फिर चायपानी या ब्रह्मभोज भी होता है। साथ ही रचनाकारों को शाल आदि से सम्मानित किया जाता है और उन्हें सम्मान के नाम पर लिफाफे में दक्षिणा देने का भी कई संस्थानों में प्रचलन है। हिंदी पखवाड़े का आयोजन संपन्न हुआ और संस्थान के अधिकारी भी तृप्त और रचनाकारों को कमाई का मौका मिलने से वे भी तृप्त। हो गया हिंदी का तर्पण। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
साल में एक बार ही ड्रामा क्यों
अब सवाल उठता है कि हिंदी को लेकर इतना शोरगुल साल में एक बार ही क्यों। इस देश का असली नाम भारत है, हिंदुस्तान है या फिर इंडिया। शायद इस पर भी आम नागरिक के बीच भ्रम की स्थिति हो सकती है। अपने देश में हम भारतवासी हो जाते हैं, वहीं विदेशों में हमारी पहचान इंडियन के रूप में होती है। इंडिया यानी ईष्ट इंडिया कंपनी के पूर्व में गुलाम रहे और शायद आज भी उसकी भाषा अंग्रेजी के गुलाम हैं। विदेश मंत्री रहते हुए अटल बिहारी बाजपेई ने यूएनओ में हिंदी में संबोधन कर देश भी धाक जमा दी थी। बाद में जब वह प्रधानमंत्री बने तो वह भी अंग्रेजी में संबोधन की परंपरा से अछूते नहीं रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मीडिया भी एक दिन पीटता है ढोल
हिंदी दिवस या हिंदी पखवाड़े के दौरान मीडिया भी हिंदी का ढोल पीटने लगता है। हकीकत यह है कि हिंदी मीडिया के भी सारे गैर संपादकीय कार्य अंग्रेजी में ही होते हैं। संपादकीय में भी अंग्रेजी के ज्ञाता को ही तव्वजो दी जाती है। अंग्रेजी के जानकार को ही मीडिया में प्राथमिकता के तौर पर नौकरी दी जाती है। भले ही हिंदी में वह कितनी भी मजबूत पकड़ वाला हो। यदि अंग्रेजी नहीं जानता तो उसके लिए हिंदी मीडिया में भी जगह नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
युवा बढ़ा रहे हिंदी का मान
ऐसा नहीं है कि हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए काम नहीं हो रहा है, लेकिन ये काम भी युवा और कई प्रबुद्ध लोगों की ओर से हो रहा है। सोशल मीडिया के जरिये में बड़े बड़े कवि सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें युवा कवि भी बढ़चढ़कर हिस्सा निभा रहे हैं। ऐसे सम्मेलनों के लेखक पाठकों को खुद से जोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनका संघर्ष कब तक सफल होता है, ये किसी को पता नहीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बहरहाल, हिंदी को मजबूत बनाने के दावे भले ही कितने किए जाए, लेकिन तब तक यह दावे हकीकत में नहीं बदल सकते, जब तक हिंदी को रोजगार की भाषा नहीं बनाया जाएगा। जब तक सभी स्कूलों में हिंदी को अंग्रेजी व अन्य विषयों से ज्यादा तव्वजो नहीं दी जाती। सरकार हिंदी में कामकाज नहीं करती, रोजगार में हिंदी को अनिवार्यता नहीं दी जाती और हिंदी रोजगार की भाषा नहीं बनती, तब तक हम हिंदी की बजाय अंग्रेजी के ही गुलाम रहेंगे। फिर हर साल हिंदी का श्राद्ध मनाते रहेंगे पर कुछ होने वाला नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब समझ लो हिंदी
हिंदी आसान भी है और मुश्किल भी। हिंदी व्याकरण में ई और यी, ए और ये में फर्क और उनका उपयोग भी कितने लोग जानते हैं, ये लिखने वालों को ही सोचना चाहिए। हिंदी में ‘यह’ और ‘ये’ का कहाँ इस्तेमाल करना है। इस पर आज भी लोगों में बहुत भ्रम है। हम अब इस खबर में इसी के बारे में बात करेंगे कि कहाँ ‘यह’ और ‘वह’ का इस्तेमाल करना चाहिए और कहाँ ‘वह’ और ‘वे’ का। ई, यी, ए, ये में कई बार हम परेशानी में पड़ जाते हैं कि कुछ शब्दों के साथ “ई” लगेगा या “यी” और “ए” लगेगा या “ये”। हिंदी व्याकरण में ये जाँचने का एक बहुत आसान-सा तरीक़ा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ई और यी
ज़्यादातर “ई” संज्ञा शब्दों के अंत में ही आता है, क्रियाओं में नहीं। जैसे- सिंचाई, कटाई, कढ़ाई, मिठाई, मलाई, रज़ाई, दवाई, आदि। इसके लिए उदाहरण है कि खेतों की सिंचाई हो गयी है अब फ़सलों की कटाई बाक़ी है (सिंचायी और कटायी नहीं)
ये रज़ाई तो बहुत गरम है।(रज़ायी नहीं)। इसी तरह क्रियाओं के अंत में “यी” आता है। जैसे- दिखायी, मिलायी, सतायी, जमायी, पायी, खायी आदि। उदाहरण के तौर पर आप समझ सकते हो कि उसने मुझे फ़ोटो दिखायी।( दिखाई नहीं) हमने आज बढ़िया मिठाई खायी। (खाई नहीं) (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब सवाल ए और ये का
किसी शब्द के अंत में “ए” का प्रयोग ज़्यादातर तब किया जाता है, जब हम किसी से अनुरोध कर रहे हों। जैसे- कीजिए, आइए, बैठिए, जाइए, सोचिए, देखिए आदि। उदाहरण के रूप में आप समझ सकते हो कि आप अपने स्थान पर बैठ जाइए। (जाइये नहीं)। देखिए, आप भी समझने की कोशिश कीजिए।(देखिये और कीजिये नहीं)। वहीं अगर लेकिन जब अनुरोध की बात न हो तब “ये” इस्तेमाल किया जाता है। जैसे- बनाये, खिलाये, सजाये, गाये, बजाये, दिखाये, सुनाये आदि। उदाहरण के रूप में आप समझ सकते हैं कि बच्चों ने सुरीले गीत सुनाये। (सुनाए नहीं)। रीना ने तरह-तरह के पकवान बनाये और खिलाये। (बनाए और खिलाए नहीं ) (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यही बात “एँ” और “यें” में भी लागू होती है। जहाँ अनुरोध होगा वहाँ “एँ” लगेगा और जहाँ नहीं होगा वहाँ “यें” का इस्तेमाल होगा। जैसे- आप उन्हें समझाएँ। (समझायें नहीं)। अच्छा अब ये बताएँ कि आप क्या लेंगें। (बतायें नहीं)। इसी तरह चलो ढोल बजायें, घर और गलियाँ सजायें। ( बजाएँ और सजाएँ नहीं) (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ध्यान रखने योग्य बातें
“ए” और “एँ” सही लगाया है या नहीं। ये जानने का एक सरल तरीक़ा ये भी है कि आपने जिस शब्द के अंत में उसे लगाया है, वहाँ “या” लगाकर उस शब्द को पढ़ें, अगर कोई शब्द बनता हो तो सही है। वरना ग़लत हो सकता है। जैसे: शुभकामनायें में अगर “यें” हटाकर “या” लगाया जाए तो “शुभकामनाया” शब्द मिलता है, जो कोई शब्द नहीं है। इसलिए सही शब्द होगा “शुभकामनाएँ” है। इसी तरह दुआयें, सदायें, देखिये, बोलिये आदि को भी आप ख़ुद जाँच सकते हैं, सही शब्द हैं, दुआएँ, सदाएँ, देखिए, बोलिए आदि। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
“ई” संज्ञा के अंत में आता है और “यी” क्रिया के अंत में
जहाँ अनुरोध का भाव हो, वहाँ “ए” लगेगा और जहाँ न हो वहाँ “ये”, यही नियम “एँ” और “यें” में भी लागू होता है। संस्कृत से हिंदी में आने वाले शब्दों में “य” के स्थान पर “इ या ई” का प्रयोग मान्य नहीं होता है। जैसे: स्थायी, व्यवसायी, दायित्व आदि ही सही माने जाते हैं। इसी तरह जहाँ “य” और “व” दोनों का प्रयोग किया जाता है, वहाँ न बदलना ही सही होता है। जैसे कि किए, नई, हुआ आदि को इसी तरह लिखा जाना मान्य है, न कि किये, नयी, हुवा आदि रूप में। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यह और वह में अंतर
पहले तो हम यह जान लें कि यह और वह क्या हैं? ये सर्वनाम हैं जो अलग-अलग रूपों में इस्तेमाल होते हैं। कभी किसी व्यक्ति या वस्तु की जगह पर जैसे – मेरा एक छोटा भाई है। वह स्कूल में पढ़ रहा है। यहाँ हमने दूसरे वाक्य में दोबारा छोटा भाई लिखने की जगह वह लिख दिया। इसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। इसी तरह कभी किसी चीज़ पर ख़ास तौर पर इशारा करने के लिए – मुझे यह किताब चाहिए। यानी और कोई नहीं, एक ख़ास किताब ही चाहिए जिसकी तरफ़ वक्ता इशारा कर रहा है। इसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। अब पता करते हैं कि यह या वह का इस्तेमाल कहाँ होना चाहिए और ये और वे या वो का प्रयोग कहाँ होना चाहिए। नियम बिल्कुल आसान है। एकवचन शब्दों के लिए यह और वह तथा बहुवचन शब्दों के लिए ये या वे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हैं उदाहरण
यह एक बहुत अच्छी किताब है। ये कुछ अच्छी किताबें हैं। वह मेरा सगा भाई है। वे दोनों मेरे घने दोस्त हैं। यानी किताब एकवचन है इसलिए यह, किताबें बहुवचन हैं इसलिए ये। सगा भाई एकवचन है तो वह। दो दोस्त बहुवचन हैं तो वे। कई लोग वह की जगह वो का इस्तेमाल भी करते हैं। जैसे वो आज नहीं आया। यह सही नहीं है। बोलचाल में भले यह चलता हो, एक फ़िल्म भी है – पति, पत्नी और वो। ये भी जानना जरूरी है कि हिंदी शब्दकोश में वो कोई शब्द नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब वे का मतलब भी समझ लो
कुछ लोग अपने से बड़ों, प्रतिष्ठित और उच्चपदासीन व्यक्तियों के लिए भी यह और वह की जगह ये और वे का प्रयोग करते हैं। जैसे ये मेरे मामा हैं जो मुंबई में रहते हैं। प्रधानमंत्री आज कानपुर आए और वहाँ वे एक घंटा रहे। ऐसा इस्तेमाल व्याकरणसम्मत है। चूँकि ऐसे मामलों में शब्द एकवचन (मामा, प्रधानमत्री) होने के बावजूद क्रिया बहुवचन वाली ही होती है ( हैं, रहे), इसलिए यह सुनने में भी नहीं अखरता। वहीं, एकरूपता की दृष्टि से यदि हम हर एकवचन वाले मामले में यह और वह का इस्तेमाल करें तो भ्रम की स्थिति कम बनेगी। इसलिए लिखें – यह मेरे मामा हैं जो मुंबई में रहते हैं। प्रधानमंत्री आज कानपुर आए जहाँ वह एक घंटा रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब देखो क्या है निष्कर्ष
अभी तक की जानकारी के आदार पर हम सारी बातों को तीन नियमों में समेट सकते हैं। एकवचन शब्दों में सामान्यतः यह और वह का प्रयोग। यह फ़ाइल, वह मकान आदि। बहुवचन शब्दों में ये और वे का प्रयोग। ये फ़ाइलें, वे मकान आदि। उम्र, पद और प्रतिष्ठा के मामलों में ये और वे का इस्तेमाल हो सकता है। उदाहरण के तौर पर- मेरे चाचा पिछले सप्ताह दिल्ली आए थे। वे मेरे घर पर दो दिन ठहरे। भाइयो और बहनो, इस बार के चुनाव में तोताराम जी को ही वोट दें। ये हमारी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता हैं। वहीं, एकरूपता की दृष्टि से इन मामलों में भी यह और वह का ही इस्तेमाल करना चाहिए। जैसे मेरे चाचा पिछले सप्ताह दिल्ली आए थे। वह मेरे घर पर दो दिन ठहरे। भाइयो और बहनो, इस बार के चुनाव में तोताराम जी को ही वोट दें। यह हमारी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता हैं। हमने सोशल मीडिया से जानकारी जुटाकर आपको समझाने का प्रयास किया। यदि बात समझ आए तो नई पीढ़ी को जरूर समझाएं। इसके लिए आपको ये खबर लोगों को शेयर करनी होगी।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।