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July 3, 2025

उत्तराखंड इप्टा ने धर्मानन्द लखेड़ा के जनगीतों का संकलन -मिल के चलो, का किया विमोचन

उत्तराखंड इप्टा की ओर से धर्मानन्द लखेड़ा की ओर से जनगीतों के संकलन की पुस्तक-मिल के चलो, का विमोचन दून पुस्तकालय एवं शोध संस्थान देहरादून में किया गया। इससे पूर्व संस्कृतिकर्मी और लेखक निकोलस हॉफलैंड ने इप्टा से जुड़ी महान शख्शियतों और इप्टा के इतिहास की जानकारी फ़िल्म और चित्रों के माध्यम से दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मौके पर धर्मानन्द लखेड़ा ने कहा कि ये किताब साथी सतीश कुमार और संजीव चानिया को समर्पित है। इसमें विस्मिल, शंकर शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी, प्रेम धवन, कैफ़ी आज़मी, अली सरदार जाफरी,गोरख पांडेय, अदम गोंडवी, सफ़दर हाशमी व प्रदीप सहित उत्तराखण्ड के जनकवियों में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, नरेंद्र सिंह नेगी, डॉ अतुल शर्मा, बल्लीसिंह चीमा,जहूर आलम आदि रचनाकारों के प्रतिनिधि जनगीतों और कविताओं को भी स्थान दिया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. इन्द्रजीत सिंह ने कहा कि इप्टा और लखेड़ा का ये प्रयास स्वागतयोग्य और सराहनीय क़दम है। गीतकार शैलेंद्र के जीवन और रचनाओं पर चार पुस्तकों का संपादन कर चुके डॉ इन्द्रजीत ने कहा कि इस किताब में शैलेन्द्र के गीत भी हैं, जो सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हैं, वो सच्चे अर्थों में जनकवि थे। उन्होंने कहा कि मिल के चलो किताब में संकलित सभी गीतों में संवेदना और सृजन का राग, प्रतिरोध और प्रतिबद्धता की आग और समानता, स्वतंत्रता और इंसानियत से परिपूर्ण समाज का हँसी ख़्वाब है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

राजेश सकलानी ने कहा कि गीत संगीत का मूल स्थान मेहनत के कार्य स्थल हैं। जनगीतों की आत्मा में धरती और मनुष्य के बीच समता और सामंजस्य की स्थापना के साथ दुनियाभर के दबे हुए समाजों में उत्साह का संचार करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक “मिल के चलो” आज के दौर की सामाजिक राजनीतिक जरूरत है। ये रचनाएं अमन पसन्द और सताए जा रहे नागरिकों के संघर्ष में सहायक होंगीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इप्टा के प्रदेश अध्य्क्ष डॉ. वी के डोभाल ने कहा कि इस जन गीतों के संग्रह मिल के चलो में सभी क्रांतिकारी कवियों की रचनाओ की शामिल करने का प्रयास किया गया है, जिन्हें हम अक्सर गुनगुनाते हैं, अवसरों पर गाते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल गीत, बेचैनी संघर्ष और गति प्रदान करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इप्टा के नाटकों, गीतों में हमेशा से ही सामाजिक बदलाव का आह्वाहन और समकालीन यथार्थ का चित्रण मिलता है। फ़िल्मी गीतों में भी इप्टा की अलग ही पहचान रही है, वो सुबह कभी तो आएगी, साथी हाथ बढाना साथी रे, जलते भी गये कहते भी गये आज़ादी के परवाने, मेरा रंग दे बसंती चोला, कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों आदि बहुत से ऐसे गीत हैं जो इप्टा से जुड़े लोगों ने लिखे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जनकवि अतुल शर्मा ने कहा कि मिल के चलो, महत्वपूर्ण संकलन है जो इप्टा की ओर से सौगात है। संपादक धर्मानन्द लखेड़ा का सराहनीय कार्य कहा जा सकता है। संघर्ष मे आवाज़ बने जन गीतों को बहुत गम्भीर तरह से प्रस्तुत किया गया है। यह एक ऐतिहासिक कार्य है। संकलन मे वे जन गीत शामिल किये गये है जो संघर्ष मे गाये गये है। जन गीत संकलन उत्तराखण्ड से लेकर पूरे उत्तर भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर का प्रयास है। इप्टा के डॉ. वीके डोभाल ने आमुख मे लिखा है कि ये तमाम जन गीत नुक्कड़ नाटकों मे प्रस्तुत किये गये है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सतीश धौलखंडी ने इप्टा देहरादून के साथ किताब के कुछ जनगीत जब गाये तो सभागार में बैठे दर्शक भी तालियों के साथ साथ गुनगुनाने लगे। पूरा सभागार संगीत और गीतमय हो गया। कार्यक्रम का सफल संचालन हरिओम पाली ने किया। कार्यक्रम में देवेंद्र कांडपाल, डॉ जितेंद्र भारती, राकेश पन्त, प्रमोद पसबोल, ममता कुमार, विक्रम पुंडीर, प्रोग्राम एसोसिएट चंद्र शेखर तिवारी, समदर्शी बड़थ्वाल भी उपस्थित थे।
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Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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