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November 21, 2024

अशोक आनन की कविता- दीया जलता रहा


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तम गहराता रहा।
दीया जलता रहा।
सवेरा होने तक
यह अखंड जलेगा।
रात की आंखों में
बैरी – सा खलेगा।
दीये का यह सफ़र
अविचल चलता रहा।
हवाओं ने आकर
चहुंओर से घेरा।
अंधेरा भी बैठा
अब डालकर डेरा।
अंधियारे का अहं
पल-पल गलता रहा। (जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसने उजाले से
घर – आंगन भर दिया।
हटाकर पल में तम
रोशन मन कर दिया।
अंधेरों के घर में
दीया पलता रहा।
जब तक नेह इसमें
तब तक है ज़िंदगी।
अंधेरे में इसकी
साथिन है रोशनी।
देख प्रज्वलित, हाथ
सूरज मलता रहा।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com

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