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November 12, 2024

युवा कवि प्रतीक झा की कविता- बचपन का वो पेड़

बचपन का वो पेड़
वह समय नहीं,
एक सुनहरा समय था।
बचपन की वो सारी यादें,
उस पेड़ में समाई थीं।
जहाँ बीता था,
मासूमियत भरा बचपन।
वो बचपन का समय था,
वो गाँव का दिन था।
वो सड़कें, खेत और तालाब,
वो आम का पेड़।
यादें वो हर दिन की हैं,
आज भी वो पल दिल में बसे। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

बचपन की वो मधुर आवाजें,
पेड़ों पर चिड़ियों का चहचहाना।
अब सुनने को नहीं मिलता।
नहीं मिलता अब देखने को,
परिवार के लोगों का
पेड़ की छाँव में बैठकर,
बातें करना, हँसना।
हमें बहुत याद आते हैं,
वो आम के पेड़।
अब जब बिजली जाती है,
बैठें कहाँ, बातें करें कहां?
अब न वो पेड़ रहा यहाँ,
जो जीवन का साथी था।
अब वो साथी नहीं रहा,
जो हर दुख का सहारा था। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

सावन अब भी आता है,
पर पेड़ पे झूला न झूलते हैं।
वो पेड़ जो धूप और गर्मी में,
हम सबको शीतलता देता था।
यादें वो पल,
दिल में रह रह कर उभरती हैं।
बचपन की सब यादें थीं,
उस पेड़ के पत्तों-पत्तों में।
पर अब उसे गिरा दिया,
विकास और आधुनिकता के नाम पर।
पर न मिट सकी वो निशानी,
जो यादें हैं बचपन की।
अब हम रहते हैं उदास,
शहर में खो गए हर एहसास।
शांति जो गाँव में मिलती थी,
अब नहीं यहाँ दिखती पास।
वो पेड़ जो था मौन कभी,
अब कहता नहीं बात कोई। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

शहर जो बना है,
हमारी यादों की छाँव पे बना है।
वो आम का पेड़ नहीं कटा,
काटी गई हैं बचपन की यादें।
अब न गाँव है,
शहर ही शहर है।
हम विकसित होकर भी दुखी हैं।
बच्चों को अब क्या सुनाएँ,
क्या दिखाएँ ?
ऐसा लगता है,
बचपन के उस पेड़ में सब कुछ खो सा गया है ।
बहुत याद आते हैं वो,
पेड़ की छाँव और वो सुकून।
कवि का परिचय
नाम- प्रतीक झा
जन्म स्थान- चन्दौली, उत्तर प्रदेश
शिक्षा- एमए (गोल्ड मेडलिस्ट)
शोध छात्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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