डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- अक्षर साधकों की कल्पना

अक्षर साधकों की कल्पना ,
अक्सर धारण कर
अंगवस्त्र शब्दों का।
ओढ़ भावों की चुनरियाँ,
भर लेती उपमान गगरिया,
छलकाती फिरती बिम्बों को,
चाँद, सूरज और सितारों के साथ अम्बर समा जाते,
अक्षर साधकों की कल्पना,
अक्सर धारण कर
अंगवस्त्र शब्दों का।
ओढ़ भावों की चुनरियाँ,
भर लेती उपमान गगरिया,
छलकाती फिरती बिम्बों को
न जाने कितने सतरंगी इन्द्रधनुष कैद हो जाते हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
कितने अपनी मस्ती में दौड़ते ‘मृगछौने ‘
कसमसाती नन्हीं कलियों के फूल बनने की प्रतीक्षा करते ‘अलि ‘
और पांखुरियों से रंग चुराने को,
अलि की स्पर्धा करती ना जाने कितनी ‘तितलियाँ ‘
छलक जाती है तब गगरिया बिम्बों की
प्रकृति का हर पल, नियति की हर जीत-हार।
पर्वत ऊँचे, नदियाँ मीठी और सागर खारे।
और तब महान अक्षर साधक की ,
अक्षर ब्रह्म साधना पूर्णता को प्राप्त हो जाती है अविराम !
सहृदयों के हृदय में उतर पाती है विश्राम .. . .
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

Bhanu Prakash
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।