Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 12, 2024

सात साल के मासूम के फेफड़े में फंसी गिट्टी, संकट में पड़ा जीवन, एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने बचाई जान

सांस की नली में रोढ़ी बजरी की गिट्टी फंसने से एक सात वर्षीय बच्चे की जान पर बन आई। मासूम का जीवन बचाने के लिए माता-पिता उसे लेकर कई अस्पतालों में गए, मगर मामला गंभीर देख सभी ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में जोखिम उठाते हुए एम्स के चिकित्सकों ने इलाज की उच्च तकनीक का उपयोग किया और सांस की नली से होते हुए फेफड़े में फंसी गिट्टी को बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की। बताया गया कि यह गिट्टी खेल-खेल में बच्चे के गले से नीचे उतरकर सांस की नली में फंस गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हरिद्वार के शाहपुर गांव का सात साल का मासूम कुछ दिन पहले अपने भाई-बहन के साथ घर के आंगन में खेल रहा था। खेल-खेल में बच्चे ने घर के आंगन में रखी रोढ़ी की ढेर से एक गिट्टी मुंह में डाल दी। यह गिट्टी उसके गले में से नीचे उतरकर सांस की नली में जाकर फंस गई। कुछ दिनों बाद धीरे-धीरे बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने लगी और उसकी हालत गंभीर हो गई। परिजन बच्चे को अस्पताल ले गए तो जनपद के बड़े अस्पतालों ने भी जबाव दे दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आखिरी उम्मीद लिए माता-पिता बच्चे को लेकर एम्स की पीडियाट्रिक पल्मोनरी ओपीडी में पहुंचे। उस समय संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह पीडियाट्रिक पल्मोनरी विभाग के अन्य चिकित्सकों के साथ ओपीडी में स्वयं मौजूद थीं। प्रो. मीनू सिंह के मार्गदर्शन में डॉक्टरों की टीम ने सभी आवश्यक जांचें करने के बाद फ्लैक्सिबल वीडियो ब्रोंकोस्कॉपी करने का निर्णय लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस बाबत जानकारी देते हुए पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मयंक मिश्रा ने बताया कि टीम वर्क से संपन्न की गई इस प्रक्रिया से चिकित्सकों की टीम, बच्चे की श्वास नली में फंसी गिट्टी को बाहर निकालने में सफल रही। डॉ. मयंक ने बताया कि निकाली गई गिट्टी का साईज 1.5×1 सेमी. था। 16 जुलाई को ब्रोंकोस्कॉपी की प्रक्रिया संपन्न करने के बाद स्वस्थ होने पर बच्चे को पिछले सप्ताह एम्स से डिस्चार्ज कर दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के हेड प्रो. गिरीश सिंधवानी ने कहा कि इस तरह के बढ़ते मामलों के मद्देनजर परिवार वालों को चाहिए कि छोटी उम्र के बच्चों की देखरेख और उनके रख-रखाव के प्रति विशेष सावधानी बरतें। ताकि इस प्रकार की घटनाएं कम से कम हो सकें। इलाज प्रक्रिया को संपन्न करने वाली टीम में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ. मयंक मिश्रा के अलावा पीडियाट्रिक पल्मोनरी विभाग की डॉ. खुश्बु तनेजा और एनेस्थेसिया विभाग के डॉ. प्रवीन तलवार आदि शामिल थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छोटे बच्चों में ऐसी समस्या ज्यादा
एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह के मुताबिक, छह साल से कम उम्र के बच्चों में यह बहुत आम बात है कि वह किसी भी चीज को मुंह में डाल लेते हैं। इनमें छोटे सिक्के, कंचे, शर्ट के बटन, बैटरी, पेंसिल, पिन और नुकीली वस्तुएं आदि प्रमुख हैं। गले से नीचे उतरकर इनमें से कुछ चीजें भोजन नली और कुछ सांस की नली में फंस जाती हैं। पीडियाट्रिक पल्मोनरी विभाग खासतौर से छोटे बच्चों के श्वास रोग संबंधी उपचार के लिए ही बना है। एम्स में क्रिटिकल स्थिति वाले इस प्रकार के बच्चों के इलाज के लिए ब्रोन्कोस्कॉपी की आधुनिक और उच्चस्तरीय विभिन्न तकनीकें उपलब्ध हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page