नदियों के पुनर्जीवन के नाम पर केवल बजट ठिकाने लगाने का इंतजाम कर रही सरकार: सूर्यकांत धस्माना

उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि उत्तराखंड राज्य में जल संरक्षण अभियान के नाम पर नदियों को पुनर्जीवित करने का सरकार केवल ढकोसला कर रही है। वास्तविकता यह है कि इस नाम पर केवल हजारों करोड़ रुपए के बजट को ठिकाने लगाने का इंतजाम किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देहरादून में आज अपने कैंप कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के जलस्रोत नदी पुनर्जीवन प्राधिकरण (सारा) की ओर से राज्य की पांच नदियों टिहरी, देहरादून में सोंग, पौड़ी की पूर्वी व पश्चिमी न्यार, नैनीताल की शिप्रा, व चम्पावत में गौड़ी नदियों को पुनर्जीवित करने के निर्णय किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि पहले राज्य की सरकार श्वेत पत्र जारी कर राज्य की जनता को बताए कि वर्ष 2017 में भाजपा सरकार के तत्कालीन मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में रिसपना नदी का नामकरण ऋषिपणा किया और इस नदी के साथ ही कोसी नदी के पुनर्जीवन की घोषणा की गई थी। पिछले सात वर्षों में कई सौ करोड़ रुपए इनके पुनर्जीवन के कार्यक्रम में खर्च किए गए, किंतु इन दोनों नदियों का पुनर्जीवित होना तो दूर, इनकी स्थिति बद से बदतर हो गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि रिसपना का हाल तो यह है कि उसके स्रोत तक सरकार व शासन की नाक के नीचे अतिक्रमण हो गया। इस पर अब एनजीटी की ओर से संज्ञान लेने व सरकार को अतिक्रमण हटाने के आदेश के बाद अब जा कर कुछ कार्रवाई की जा रही है। धस्माना ने कहा कि सारा को निश्चित रूप से राज्य की नदियों के पुनर्जीवन व खत्म हो चुके जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाना चाहिए, किंतु इससे पहले उन कारणों को समाप्त करने की आवश्यकता है, जिनके कारण हमारी नदियां व जल स्रोत सूख रहे व लुप्त हो रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रेस उपाध्यक्ष धस्माना ने कहा कि पिछले दस वर्षों में पहाड़ों में अंधाधुंध निर्माण हुए, ऋषिकेश से लेकर कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछाने के लिए सुरंगें खोदी गई, चार धाम के लिए आल वैदर रोड के नाम पर पहाड़ों के सीने पर भारी मशीनें चलाई गईं और लंबी लंबी सुरंगें बनाई गई। लाखों हैक्टेयर जंगल जल कर राख हो गए। ये मुख्य कारण हैं ही नदियों और जल स्रोतों के सूखने का मुख्य कारण हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धस्माना ने कहा कि श्री केदारनाथ व श्री बद्रीनाथ जी में जिस प्रकार से बुलडोजर व भारी मशीनें चलाई जा रही हैं, उनसे उच्च हिमालई क्षेत्र में ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इनसे रैणी जैसी आपदाएं घट रही हैं। बिना इन विषयों को संबोधित किए केवल नदियों व जल स्रोतों के पुनर्जीवन का अभियान केवल कागजी कसरत है। इनका परिणाम रिस्पना व कोसी जैसा ही होना तय है। इस अभियान का मकसद केवल मोटा बजट ठिकाने लगाना ही हो सकता है।
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।