युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-एक अजब-सी उलझन में उलझी पड़ी हैं ज़िन्दगी
न जाने की किस मंज़िल की तरफ भागे जा रहें
न जाने ज़िन्दगी हम तुझसे क्या चाह रहे
कभी हँस के तो कभी रो कर जिए जा रहे।
हर एक डोर उलझी पड़ी है
सुलझाए जितना भी वो बस उलझती जा रही है
मुकाम तेरा मौत है जिंदगी ये पता
फिर भी सफर मे भागे जा रहे है।
नाराज़गी, उदासी चेहरे पर हर कोई रखता है
पर वजह क्या है खता किसकी हैं ये पता नही
क्या खोया है क्या पाया है
इसका कोई हिसाब नही
आने वाले कल के लिए सजाये है ख्वाब कई।
कुछ हसरतो को मिटाकर, कुछ सपने नए सजाकर
ज़िन्दगी की उलझनों से बचते बचाकर हर तरकीब लगाकर
बस जिये जा रहे है।
कुछ आने वाले गमो का अभी अभास नही
और कुछ को नजरअंदाज किए जा रहे है
कल के सुकून के लिए आज बेताब हुए जा रहे
हासिल होगा सुकून-ए पल
कब? कहां? कितना?
इसका कोई पता नही
भागदौड़ वाले सफर में बेपरवाह दौड़े जा रहे है।
उलझनों में उलझी पड़ी ज़िन्दगी
बस इसे सुलझाने की कोशिश किए जा रहे हैं
मुकाम-ए ज़िन्दगी तेरी मौत है
फिर भी जीने की आरज़ू लिए बस जिए जा रहे….
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (तृतीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।