युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-एक दायरे तक हो
एक दायरे तक हो
खुल कर हँसना खुल कर रोना
जो भी हो बस, एक दायरे तक हो।
बदसुलूकी अंत के करीब तक ले जाती है
मगर हो बे-खुदी या बंदगी, एक दायरे तक हो।
जाने दो दौर-ए जवानी में जो हुआ सो हुआ
मगर अब मुँहमिक, दिल्लगी, मोहब्बत, आवारगी,
जो भी हो बस, एक दायरे तक हो।
हर जख्म का मरहम हो ये जरूरी तो नही
मगर तुम दवा-पंजीर, एक दायरे तक हो।
हाँ इश्क़ हैं मगर मिन्नतें, अजिजियाँ और गिड़गिड़ाना किस लिए
सुनो मेरे दिल मे आप भी, एक दायरे तक हो।
इस भरम में मत रहो की कोई तुमसा नही इस जहाँ में
आप गुलबदन, उम्दा जो भी हो मगर, एक दायरे तक हो।
भरोसेमंद कम ही सलामत इस दुनियां में
अजीज से भी दिल-ए राज कहो तो वो भी, एक दायरे तक हो।
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (तृतीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।