युवा कवयित्री गीता मैंदुली की कविता-मजदूरी में किया कार्य मेहनताना माँगता है
मजदूरी में किया कार्य मेहनताना माँगता है
नित जीवन ही हमें यहाँ सियासत सिखाता है
और लहू के रिश्ते हमें खानदानी मिलते हैं
हृदय भी कुछ लोगों को अपना मानता है।
कुछ ज़िम्मेदारियों के चलते बचपन गंवाया है मैंने
तमाम उलझनों के बाद भी खुद को सवांरा है मैंने
न जाने क्या क्या छुपाये बैठे हैं हम खुद में
टलोले गए तो मिले लाखों दर्द दबाएं हैं मैंने।
हर चेहरे के अपने अपने कुछ राज होते हैं
लोग सोचते हैं कि सक्लें अलग अलग होती हैं
और हम जान लेते हैं पहली मरतवा में ही
अब आप हमसे क्या कहने वाले हैं।
मैंने दिलजलों को तड़पते देखा है
जैसे अपने ही दिल से धोखा किया है
और जिंदगी हर रोज़ सवाल कर रही मुझसे
आखिर असल में तेरा अपना कौन है।
मेरी आँखों में कुछ धुंधलापन सा है
शायद उसको भी मुझसे कुछ अपनापन सा है
और ये नज़्म शायरी पड़ लो तुम भी कुछ इश्क़ की
मेरे लिखे में तो सिर्फ तुमसे कही और सुनी बातें हैं।।
कवयित्री का परिचय
नाम- गीता मैंदुली
निवासी-नंदानगर, चमोली उत्तराखंड
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।