युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता-बात ना करने की वजह पूछी
तो पता चला अब उसे आदत नहीं रही,
हाँ अजीब सी एक आदत बन गयी
कि याद करने की अब आदत नहीं रही,
कहने को अब वो सुबह के उगते सुरज की किरण
और ढलते शाम की याद बन गया,
दर्द में छिपे आँसू और मुस्कुराहट में छिपे दर्द का
वो एक गहरा ज़ज्बात बन गया,
इस मतलबी सी दुनियाँ में
वो एक बेमतलबी सा किरदार निभा गया,
ना जाने दिल को तन्हा छोड़ गया
या पूरा का पूरा संवार गया,
वो मेरी आदतों में तो शामिल हो गया मगर
मैं उसकी आदतों में शामिल नहीं,
दुनियाँ को चुपके चुपके कहते सुना है,
मैं उसके काबिल थी ही नहीं,
बदलते से मौसम और ठहरा सा कोई
पहर का वो एक ख्याल बन गया,
हाँ आदतें हैं कुछ जो नहीं बदली,
वो झल्लापन और सोते वक़्त का अंधेरापन,
आदतें कई पुरानी आज भी भी बनाए रखे हैं,
बस उन आदतों के अब हम शामिल नहीं,
बात ना करने की वजह पूछी
तो पता चला उसे अब आदत नहीं रही,
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चन्द
निवासी – बिरिया मझौला, खटीमा, जिला उधम सिंह नगर, उत्तराखंड।
लेखिका gov job की तैयारी कर रही हैं।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।