इस सड़क से अंदाजा लगा सकते हैं उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों की स्थिति का

विकास का आधार कही जाने वाली सड़क आज गांव-गांव की जीवन रेखा बन चुकी हैं। इस भौतिकवादी युग में मानव को मूलभूत सुविधाएं न मिलने के कारण अधिक से अधिक पलायन देखने को मिल रहा है। पहाड़ में यदि पलायन को रोकना है तो सड़क, शिक्षा, बिजली, पानी व स्वास्थ्य सुविधाओं का होना बहुत जरूरी है।
रुद्रप्रयाग जिले में ग्राम पैलिंग केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के भीरी नामक स्थान से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहाँ से भीरी, तौणीधीर पैलिंग मोटर मार्ग कटता है। तौणीधीर से पैलिंग तक मोटर मार्ग की लम्बाई 6 किमी है। भीरी से तौणीधीर तक पक्की सड़क के बाद पैलिंग के लिए तौणीधीर से कच्ची सड़क जाती है। इस सड़क का निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग द्वारा 2010 में प्रारम्भ किया गया था। तथा 2016 में इसके प्रारम्भिक चरण का कार्य पूरा कर लिया गया।
2016 से इस ठेठ पहाड़ी मार्ग पर हल्के वाहनों का आवागमन शुरू हुआ। एक दिन की बारिश के बाद ही सड़क जगह-जगह से टूटकर मरम्मत योग्य हो जाती है।
इसका मुख्य कारण यह है कि शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण सड़क का तब से डामरीकरण तो बहुत दूर की बात है, लेकिन द्वितीय चरण का निर्माण कार्य भी शुरू नहीं हो पाया है। सड़क में नालियाँ, स्कवर आदि न बनने के कारण जगह-जगह सड़क में मलवा आ जाता है। महज साल भर में कुछ दिनों ही ये सड़क आवागमन के लिए बनी रहती है।
सड़क पर पुस्ते नहीं हैं। इस कारण पैदल चलने के लिए भी परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होती हैं। स्थानीय ग्रामीण कई बार, जिला प्रशासन व कार्यदायी संस्था कार्यालय में शिष्टमंडल लेकर गए हैं। हर बार आश्वासन दिया जाता है।
ग्राम प्रधान सावित्री देवी का कहना है कि लोक निर्माण विभाग की ओर से 3.4 करोड़ का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। शासन में फाइल लटकी हुई है। उस पर शासन ने किसी भी प्रकार का संज्ञान नहीं लिया है। स्थानीय विधायक मनोज रावत कहते हैं कि गांव वासियों ने कभी इस बारे में अवगत नहीं कराया है।
ग्राम प्रधान सावित्री देवी के प्रतिनिधित्व में एक शिष्टमण्डल ने स्थानीय विधायक मनोज रावत से भेंटवार्ता कर ज्ञापन सौंपा। इस पर विधायक ने कहा कि मैं शीघ्र ही इस बारे में सरकार को अवगत कराऊंगा और इसके लिए भरसक प्रयास करूँगा। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार जल्दी ही निर्माण कार्य हेतु धन आबंटित नहीं करती है तो हमें आन्दोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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