ग्राफिक एरा में डिजास्टर मैनेजमेंट पर वर्ल्ड समिट, राज्यपाल बोले- हर आपदा को सबक के रूप में स्वीकारें
वर्ल्ड डिजास्टर मैनेजमेंट समिट 2025 में एकजुटता, सहयोग और साझा जिम्मेदारी के साथ आपदाओं से सुरक्षा के लिए इको सिस्टम को मजबूत करने और वैज्ञानिक नवाचार को बढ़ाने का निर्णय किया गया। समिट के समापन समारोह में राज्यपाल (सेनि लेफ्टिनेट जनरल) गुरमीत सिंह ने आपदाओं के जोखिम को न्यूनतम करने के लिए हर आपदा को एक सबक के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देहरादून स्थित ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित तीन दिवसीय समिट के समापन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि यह एक समिट नहीं है, बल्कि एक आंदोलन है, एक क्रांति है। इसमें हर किसी को शामिल होना है। आपदाओं से निपटने के लिए एक क्रांति की जरूरत है। हर आपदा में अवसर छिपा होता है। उससे सीखने की और उसके अनुरूप सही कदम उठाने की जरूरत है। मिलकर सामूहिक जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि उपचार के बजाय रोकथाम पर निवेश करना बेहतर होगा। साईंस, टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का सही तरीके से इस्तेमान करके चुनौतियों से निपटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हिमालय सिखाता है कि ऊंचा वही है जो स्थिर, संतुलित और धैर्यवान है। आपदा प्रबंधन को भी ऐसा ही होना चाहिये। कोविड के समय जब सब ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे, तब समझ में आया कि हम धरती की देखभाल ठीक से नहीं कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य अतिथि ने कहा कि उत्तराखंड प्राकृतिक संसाधनों का केंद्र है। यहां हिमालय है, गंगा है, यमुना है। इसलिए उत्तराखंड वासियों की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है कि वे प्रकृति का ध्यान रखें और संसाधनों की रक्षा करें। समिट में मौजूद हर व्यक्ति आपदा प्रबंधन का ब्रांड अम्बेसडर है, हर व्यक्ति को आपदाओं से बचाव के उपायों और प्रकृति के संरक्षण के तरीकों का प्रचार प्रसार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब में पहला शब्द एकम है। हम सबको एक होकर आपदाओं की रोकथाम के लिए कार्य करना चाहिये। हम सब एक पृथ्वी के वासी और एक परिवार हैं, हम सबका भविष्य भी एक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राज्यपाल ने ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ कमल घनशाला के समाज को दिये गये योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि डॉ घनशाला के नाम के साथ टी एच ई लगना चाहिये, उन्होंने टी से टेक्नोलॉजी, एच से हैल्थ व हॉस्पिटल और ई से एजुकेशन के क्षेत्र में बहुत बड़ा काम किया है। राज्यपाल ने सिल्वर जुबली कंवेंशन सेंटर को बहुत भाग्यशाली बताते हुए कहा कि जिस दिन यहां पहला प्रोग्राम हुआ, वह आपदा प्रबंधन का था, उसी दिन सिलक्यारा टनल में फंसे 41 लोगों को सुरक्षित निकालने में सफलता मिली। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पर्यावरणविद डॉ अनिल प्रकाश जोशी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग, दरअसल वार्मिंग नहीं, एक वार्निंग है। प्रकृति के साथ हमने जैसा व्यवहार किया है, आपदाएं उसी का परिणाम हैं। हाल की बाढ़ इसका प्रमाण हैं कि आपदाएं कहीं भी आ सकती है। कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं है। आपदाओं को रोकने के लिए हर किसी को प्रयास करने होंगे। पिछले अनुभवों से सीखकर हमें ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जिनमें सबकी भागीदारी हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एनडीएमए के सदस्य व एचओडी राजेंद्र सिंह ने भारत को सबसे ज्यादा आपदा जोखिम वाले देशों में एक बताते हुए कहा कि इससे बचने के लिए हमें मजबूत इंफ्रास्टैचर, प्लानिंग और समुदायों को जोड़ने की आवश्यकता है। वर्ल्ड समिट 2025 के मुख्य सूत्रधार और आयोजक संस्था यूकोस्ट के महानिदेशक डॉ दुर्गेश पंत ने 50 से अधिक देशों के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं, राजनयिकों और नीति निर्माताओं की भागीदारी को बहुत महत्वपूर्ण बताया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ पंत ने कहा कि अब आपदाओं के बाद की नहीं, उनसे पहले की बात करने का दौर आ गया है। आपदाओं से पहले उनसे निपटने की तैयारियां की जानी चाहियें। हिमालय की गोद में रहने वालों को हिमालय की बात करनी चाहिये। आपदाओं से पहले की प्लानिंग में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और ए.आई. की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समिट में ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ कमल घनशाला ने कहा कि आपदाओं से सीख लेना बहुत जरूरी है। क्षति कम करने के लिए संचार बहुत आवश्यक है। उन्होंने आभार भी व्यक्त किया। संचालन डॉ एम पी सिंह ने किया। महानिदेशक डॉ पंत और चेयरमैन डॉ घनशाला ने अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट किए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य अतिथि ने प्रीमियर लीग के विजेता पौड़ी, चम्पावत और रुद्रप्रयाग की टीमों को ट्रॉफी प्रदान की। आयोजन सचिव प्रह्लाद अधिकारी और यूकोस्ट के संयुक्त निदेशक डॉ डी पी उनियाल भी मंच पर आसीन थे। समारोह में उत्तराखंड के जल स्रोतो पर एक पुस्तक का विमोचन किया गया। इसके मुख्य सम्पादक यूकोस्ट के महानिदेशक डॉ दुर्गेश पंत हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वर्ल्ड समिट ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट के घोषणा पत्र में आपदाएं रोकने के लिए एक सुरक्षित, ज्यादा मजबूत और ज्यादा सस्टेनेबल दुनिया के लिए काम करनी का सामूहिक प्रतिबद्धता दोहरायी गयी। इसके लिए में एकजुटता, सहयोग और साझा जिम्मेदारी के साथ आपदाओं से सुरक्षा के लिए इको सिस्टम को मजबूत करने और विज्ञानिक नवाचार को बढ़ाने की कोशिश करने का निर्णय किया गया। घोषणा पत्र में कहा गया है कि इसके लिए ग्लोबल पार्टनरशिप को बढ़ाया जायेगा। इस तरह ऐसे भविष्य का निर्माण किया जायेगा जहां कोई भी समुदाय आपदा के सामने कमजोर न पड़े। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इससे पहले आपदा प्रबंधन में सामूहिक सहयोग पर आयोजित सत्र में उत्तराखंड पुलिस के अपर महानिदेशक अभिनव कुमार, सेतु निगम के वाइस चेयरमैन राज शेखर जोशी, एनडीएमए के लीड कंसलटेंट मेजर जनरल सुधीर बहल, इंडिया फाउंडेशन के शास्तव सिंह ने आपदा प्रबंधन की चुनौतियों के रूप में संचार कायम रखने, भीड़ प्रबंधन, जमीनी वास्तविकताओं आदि पर प्रकाश डाला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक अन्य सत्र में आपदाओं के दौरान बुजुर्गों और दिव्यांग जनों की सुरक्षा पर समर्थन ट्रस्ट फॉर द ब्लाइंड के के आर राजेंद्र, शिवराम देशपांडे, विशेषज्ञ मुथुराज और हिमालय एडवेंचर इंस्टीट्यूट की श्रीमती सुशीला चमोली ने मुख्य रूप से विचार व्यक्त किये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वर्ल्ड समिट के देहरादून स्टेटमेंट 2025 का विवरण
• कुदरती खतरों और इंसानों की वजह से होने वाली आपदाओं की बढ़ती फ्रीक्वेंसी और कॉम्प्लेक्सिटी— जिसमें एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट से बाढ़ और जंगल की आग से लेकर उभरती पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी तक शामिल हैं।
• आपदा के रिस्क को कम करने और तैयारी को मज़बूत करने में इंटरनेशनल कोऑपरेशन, साइंटिफिक रिसर्च, टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट और शेयर्ड गवर्नेंस की भूमिका।
• कम्युनिटी की आवाज़ों और अनुभवों और पारंपरिक ज्ञान का महत्व जो काम की रेज़िलिएंस स्ट्रेटेजी बनाने के लिए ज़रूरी हैं।
• मौजूदा और भविष्य की आपदा चुनौतियों से निपटने के लिए इनोवेशन का एक इकोसिस्टम बनाने में ग्लोबल साइंटिफिक कम्युनिटी, एकेडमिक इंस्टीट्यूशन, प्राइवेट सेक्टर, सोशल ऑर्गनाइज़ेशन और युवाओं का योगदान।
• वर्ल्ड समिट इस बात पर ज़ोर देता है कि मज़बूत समुदाय ही मज़बूत देशों का केंद्र होते हैं, और इन आम कमज़ोरियों को असरदार तरीके से दूर करने के लिए ग्लोबल पार्टनरशिप को बढ़ाना होगा।
• एक्शन आइटम: डिज़ास्टर रिस्क रेजिलिएंस के लिए ग्लोबल कोऑपरेशन को आगे बढ़ाना। समिट में ये बातें शामिल हैं।
• मिलकर तैयारी, जवाब और रिकवरी के लिए इंटरनेशनल पार्टनरशिप, डिप्लोमैटिक बातचीत और क्रॉस-बॉर्डर पहल को मज़बूत करना।
• डेटा शेयरिंग, जल्दी चेतावनी देने की क्षमता और साइंटिफिक एक्सचेंज को बढ़ाना, खासकर बाढ़, GLOFs और क्लाइमेट से होने वाली इमरजेंसी जैसे ट्रांसबाउंड्री खतरों के लिए।
• पॉलिसी फ्रेमवर्क और रिस्क फाइनेंसिंग मॉडल का मिलकर डेवलपमेंट, जिससे देश और क्षेत्र संकटों को बेहतर ढंग से झेल सकें, उनके हिसाब से ढल सकें और उनसे उबर सकें।
• हिमालयन डिज़ास्टर रेजिलिएंस के लिए एक इंटरनेशनल सेंटर बनाना ताकि आपदा को कम करने और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए ज्ञान, अनुभव और नई टेक्नोलॉजी शेयर की जा सकें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समिट में दिए गए ये सुझाव
• कम्युनिटी-बेस्ड तैयारी, जागरूकता और ट्रेनिंग प्रोग्राम को मज़बूत करना ताकि वे डिज़ास्टर-योद्धा बन सकें।
• रेजिलिएंस स्ट्रेटेजी में लोकल भाषाओं, पारंपरिक ज्ञान और कल्चरल सिस्टम को शामिल करना। • टारगेटेड पहलों के ज़रिए जेंडर, बच्चों, बुज़ुर्गों और दिव्यांग समुदायों पर फ़ोकस करना।
• स्टेकहोल्डर कंसल्टेशन के ज़रिए पैरामीट्रिक इंश्योरेंस को बढ़ावा देना और इंश्योरेंस कंपनियों, अधिकारियों और डेटा प्रोवाइडर्स के बीच सहयोग बढ़ाना। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समिट में दिया गया इन बातों पर जोर
• इकोसिस्टम-बेस्ड डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन और नेचर-बेस्ड सॉल्यूशन अपनाना।
• ग्लेशियर, झरनों, नदियों और बायोडायवर्सिटी में होने वाले बदलावों पर नज़र रखना, और इस जानकारी को प्लानिंग और रिस्क कम करने में शामिल करना।
• पहाड़ी सिस्टम, नदी बेसिन और पर्यावरण के हिसाब से सेंसिटिव ज़ोन की सुरक्षा के लिए साइंस-बेस्ड, कल्चरली सेंसिटिव तरीके।
• कार्बन इकोसिस्टम मैनेजमेंट, क्लाइमेट अडैप्टेशन प्रैक्टिस और पर्यावरण के हिसाब से ज़िम्मेदार डेवलपमेंट को बढ़ावा देना।
• डिज़ास्टर की भविष्यवाणी, उसे कम करने और तेज़ी से जवाब देने के लिए स्पेस-बेस्ड टेक्नोलॉजी, जियोस्पेशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल मॉडलिंग तक पहुँच बढ़ाना। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
• AI-ड्रिवन और टेक्नोलॉजी-इनेबल्ड रेज़िलिएंस को बढ़ावा देना, जिसमें अर्ली वॉर्निंग, इम्पैक्ट फोरकास्टिंग, इमरजेंसी कम्युनिकेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर सेफ्टी में एप्लीकेशन शामिल हैं।
• क्लाइमेट और डिज़ास्टर मैनेजमेंट के लिए टूल्स, एप्लीकेशन और स्केलेबल सॉल्यूशन बनाने के लिए स्टार्ट-अप्स, इनोवेटर्स और रिसर्च इंस्टीट्यूशन्स को सपोर्ट करना।
• साइंटिफिक रिसर्च को कम्युनिटी की ज़रूरतों से जोड़ने के लिए इनोवेशन इकोसिस्टम को बढ़ावा देना, जिसका उदाहरण #TechForResilience है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समिट इस बात की जरूरत पर चर्चा
• सभी सेक्टर्स—एजुकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी, हेल्थ, टेक्नोलॉजी और गवर्नेंस—में डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन को मेनस्ट्रीम करना।
• IRR मॉडल, सिक्किम मॉडल जैसे रीजनल मॉडल्स और दूसरी बेस्ट प्रैक्टिसेस को बढ़ावा देना जो रेज़िलिएंस के लिए असरदार लोकल गवर्नेंस दिखाते हैं।
• लगातार एंगेजमेंट के लिए इंस्टीट्यूशनल कैपेसिटी, ट्रेनिंग, रिसर्च सेंटर्स और मल्टी-स्टेकहोल्डर प्लेटफॉर्म्स में इन्वेस्ट करना।
• कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी, CSR पार्टिसिपेशन और डिज़ास्टर रिस्क फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट्स सहित ज़िम्मेदार फाइनेंसिंग मैकेनिज्म को मज़बूत करना।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।




