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October 13, 2025

जो बात जयराम रमेश बोले दिल्ली में, वही करन महारा बोले उत्तराखंड में, मुद्दा था सूचना का अधिकार

रविवार 12 अक्टूबर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने जो बात बोली, उसी बात को कांग्रेस के हर प्रदेश में नेताओं ने दोहराया। उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भी देहरादून में कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में उसी बात को आगे बढ़ाया। मौका था सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की 20वीं वर्षगांठ का। उन्होंने केंद्र पर इस अधिकारी को कमजोर करने का आरोप लगाया। साथ ही बताया कि कांग्रेस का संकल्प पारदर्शिता और जवाबदेही की रक्षा का है। इसके लिए संघर्ष जारी रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

करन माहरा ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और सोनिया गांधी के दूरदर्शी नेतृत्व में 12 अक्टूबर 2005 को ऐतिहासिक सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम अस्तित्व में आया। यह यूपीए सरकार के अधिकार आधारित एजेंडा की पहली कड़ी थी, जिसके अंतर्गत मनरेगा (2005), वन अधिकार अधिनियम (2006), शिक्षा का अधिकार (2009), भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा का अधिकार अधिनियम (2013) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) जैसे ऐतिहासिक कानून शामिल रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया कि इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों के पास उपलब्ध जानकारी तक पहुँच प्रदान कर शासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना था। आरटीआई समाज के सबसे हाशिए पर खड़े लोगों के लिए जीवनरेखा साबित हुई। इसने नागरिकों को उनके हक़ जैसे राशन, पेंशन, बकाया मज़दूरी और छात्रवृत्तियाँ दिलाने में मदद की। इस कानून ने सुनिश्चित किया कि कोई भी नागरिक जीवन की बुनियादी ज़रूरतों से वंचित न रहे। साथ ही चिंता जताई कि 2014 के बाद से मोदी सरकार के शासन में आरटीआई कानून को लगातार कमजोर किया गया है, जिससे लोकतांत्रिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर आघात हुआ है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

1. कानून पर हमले, 2019 का संशोधन
उन्होंने कहा कि 2019 के इस संशोधन ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता को कमज़ोर किया। पहले आयुक्तों का कार्यकाल पाँच वर्ष का तय था और उनकी सेवा शर्तें संरक्षित थीं। संशोधन के बाद केंद्र सरकार को कार्यकाल और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार दे दिया गया। इससे कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ा और आयोग की स्वतंत्रता प्रभावित हुई। 2023 – डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम और धारा 44(3) के तहत इस अधिनियम में आरटीआई की धारा 8(1)(j) में संशोधन कर व्यक्तिगत जानकारी की परिभाषा का दायरा बहुत बढ़ा दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पहले ऐसी जानकारी जनहित में होने पर उजागर की जा सकती थी, लेकिन अब संशोधित प्रावधान कहता है कोई भी ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित हो, प्रकट नहीं की जाएगी। इसका अर्थ है कि अब व्यक्तिगत जानकारी पूर्ण अपवाद बन गई है। इससे सार्वजनिक कर्तव्यों या सार्वजनिक धन के उपयोग से संबंधित जानकारी का खुलासा भी रोका जा सकता है, जो आरटीआई के मूल पारदर्शिता सिद्धांत के खिलाफ है। महत्वपूर्ण सार्वजनिक डेटा को “निजी” मानकर अब मतदाता सूची, व्यय विवरण और अन्य जनहित से जुड़ी सूचनाओं के प्रकटीकरण से इनकार किया जा सकता है। यह वही प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एमपीएलएडी फंड के दुरुपयोग, मनरेगा में फर्जी लाभार्थियों और अस्पष्ट राजनीतिक फंडिंग जैसी गड़बड़ियाँ उजागर हुई थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों पर हमले
उन्होंने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग आज अपनी सबसे कमजोर स्थिति में है। स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल दो आयुक्त कार्यरत हैं और सितंबर 2025 से मुख्य आयुक्त का पद भी रिक्त है। ऐसी स्थिति यूपीए शासन में कभी नहीं रही। सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को समयबद्ध और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया अपनाने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद अनेक पद लंबे समय तक खाली पड़े हैं।, सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट “रिपोर्ट कार्ड ऑफ इन्फॉर्मेशन कमिशन्स (2023–24)”, जो अक्टूबर 2024 में जारी हुई थी, उसके अनुसार 29 में से 7 राज्य सूचना आयोग विभिन्न अवधियों में निष्क्रिय रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लंबित मामले और डेटा की अनुपलब्धता
जून 2024 तक देशभर के 29 आयोगों में लगभग 4,05,000 अपीलें और शिकायतें लंबित थीं, जो 2019 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। केवल केंद्रीय सूचना आयोग में नवंबर 2024 तक करीब 23,000 मामले लंबित हैं। जब आरटीआई के माध्यम से प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए खर्च, कोविड महामारी के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की संख्या या पीएम केयर्स फंड के उपयोग से जुड़ी जानकारी मांगी गई, तो कोई जवाब नहीं दिया गया। यहां तक कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के मामले में भी एसबीआई ने RTI के तहत डेटा देने से इनकार किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा, जिसके बाद ही राजनीतिक दलों को मिले चंदों का डेटा सार्वजनिक हो सका। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आरटीआई कार्यकर्ताओं पर बढ़ते हमले
उन्होंने कहा कि अवैध धनन के खिलाफ आवाज उठाने वाली भोपाल की कार्यकर्ता और पर्यावरणविद शहला मसूद को घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। भूमि घोटालों को उजागर करने वाले सतीश शेट्टी की सुबह की सैर के दौरान धारदार हथियारों से हत्या कर दी गई। इन मामलों में सीबीआई जांचों में रियल एस्टेट और राजनीतिक हितों की भूमिका सामने आई। ऐसे उदाहरण दिखाते हैं कि आरटीआई कार्यकर्ता गंभीर जोखिम में हैं। अनेक नागरिक जो पारदर्शिता के लिए आवाज उठाते हैं, उन्हें धमकियों, झूठे मुकदमों और हिंसा का सामना करना पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट पारित, लेकिन लागू नहीं
उन्होंने कहा कि व्हिसलब्लोअर्स प्रोटेक्शन अधिनियम, जो यूपीए सरकार ने पारित किया था, अब तक लागू नहीं हुआ है। इसके नियम अधिसूचित नहीं किए गए। यह कानून उन लोगों की रक्षा के लिए था जो भ्रष्टाचार या गलत कार्यों का खुलासा करते हैं। इसे लागू न करने से ऐसे लोगों की सुरक्षा अर्थहीन हो गई है। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे लोकतंत्रों ने व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा को अनिवार्य माना है, जबकि भारत में कानून होते हुए भी सरकार ने इसे लागू करने से परहेज़ किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कांग्रेस पार्टी की माँगें
1. 2019 के संशोधनों को निरस्त कर सूचना आयोगों की स्वतंत्रता बहाल की जाए।
2.DPDP अधिनियम की धारा 44(3) की समीक्षा की जाए, जो RTI के जनहित उद्देश्य को कमज़ोर करती है।
3. केंद्रीय और राज्य आयोगों में सभी रिक्तियाँ पारदर्शी व समयबद्ध प्रक्रिया से भरी जाएँ।
4. आयोगों के लिए कार्य निष्पादन मानक तय किए जाएँ और निपटान दर की सार्वजनिक रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
5. व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम को लागू कर RTI उपयोगकर्ताओं और व्हिसलब्लोअर्स को सशक्त सुरक्षा दी जाए।
6. आयोगों में विविधता सुनिश्चित की जाए। पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिले। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

करन माहरा जी ने कहा कि आरटीआई आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक सुधारों में से एक है। इसकी कमजोरी, लोकतंत्र की कमजोरी है। आरटीआई की 20वीं वर्षगांठ पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस कानून की रक्षा और सशक्तिकरण के अपने संकल्प को दोहराती है, ताकि हर नागरिक निडर होकर सवाल पूछ सके और समयबद्ध उत्तर प्राप्त कर सके। प्रेस वार्ता के दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार अमरजीत सिंह, प्रदेश प्रवक्ता सुजाता पॉल, प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट, महानगर अध्यक्ष जसविंदर सिंह जोगी एवं महामंत्री नवीन जोशी मौजूद रहे।
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Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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