उत्तराखंड की आयरन लेडी एवं कांग्रेस नेता डॉ. इंदिरा हृदयेश का निधन, जानिए जीवन परिचय, संस्मरण बता रहे हैं धस्माना
आपको बता दे कि कुछ समय पहले ही नेता प्रतिपक्ष कोरोना से उभरी थी और उनकी हार्ट संबंधी इलाज भी हुआ था। इन दिनों वह काफी व्यस्त थी। कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर भाग ले रही थी। कल भी वह दिल्ली में कांग्रेस की बैठक में मौजूद रहीं। 11 जून को ही उन्होंने कांग्रेस के देशव्यापी प्रदर्शन के आह्वान पर महंगाई के विरोध में हल्द्वानी में प्रदर्शन में भाग लिया था।
बताया गया कि वह उत्तराखंड सदन दिल्ली में थीं। सुबह नाश्ते के बाद उनकी तबीयत बिगड़ी और कुछ ही देर बाद उनकी मौत हो गई। उनकी पार्थिव देह को उत्तराखंड सदन में रखा गया। जहां कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। बाद में पार्थिव देह को हल्द्वानी ले जाया गया। उनके निधन पर कांग्रेस के उत्तराखंड के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, उत्तराखंड के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय सहित पक्ष और विपक्ष के सारे नेताओं ने शोक प्रकट किया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने वरिष्ठ राजनेता और उत्तराखण्ड में नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतप्त परिवार जनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इंदिरा हृदयेश जी ने पिछले चार दशक से यूपी से लेकर उत्तराखंड की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई। वे एक कुशल प्रशासक, वरिष्ठ राजनीतिज्ञ व संसदीय ज्ञान की जानकार थीं। वे अपनी बात को सदैव बेबाकी से सभी के समक्ष रखती थीं। मैं ईश्वर से दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान देने और शोक संतप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं।
परिचय
इंदिरा हृदयेश का जन्म 7 अप्रैल 1941 को हुआ था। वह 2012 के उत्तराखंड विधान सभा चुनाव में हल्द्वानी निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गई थीं। वह उत्तराखंड 2012 से 2017 तक उत्तराखंड सरकार में हरीश रावत के तहत संसदीय कार्य, उच्च शिक्षा और योजना मंत्री थीं।
उत्तराखंड में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा वर्ष 1974 से लगातार चार बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य का चुनाव जीतती रही हैं। राज्य गठन के बाद 2002 में इन्होंने पहली बार विधानसभा चुनाव हल्द्वानी से लड़ा। उस समय उनहोंने भाजपा के दिग्गज नेता बंशीधर भगत को पटखनी दी। एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त, लोनिवि एवं संसदीय कार्य जैसे विभागों को संभाला। 2007 में बंशीधर भगत ने उन्हें मात दी। 2012 में भाजपा की रेनू अधिकारी को हराकर वह पांच साल सरकार में नंबर दो की हैसियत में रहीं। इस वक्त वह नेता प्रतिपक्ष थी। इंदिरा हृदयेश शिक्षकों की सदैव हितैषी रही। उन्हें उत्तराखंड की भावी सीएम के रूप में देखा जा रहा था। उनके निधन से उत्तराखंड कांग्रेस को बड़ा झटका देखा जा रहा है।
इंदिरा हृदयेश होने का मतलब, एनडी तिवारी के बाद सबसे कद्दावर नेताः धस्माना
उत्तराखंड राज्य के निर्माण का ऐलान हो चुका था और 5 अक्टूबर 2000 को मैं समाजवादी पार्टी से त्यागपत्र दे कर दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में अम्बिका सोनी, अजीत जोगी व श्रीप्रकाश जायसवाल के साथ प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस में शामिल होने का ऐलान करके बाहर आया ही था कि मोबाइल की घण्टी बजी और मैंने फोन उठाया तो डांटने के अंदाज में आवाज आयी कि अरे भाई कांग्रेस में शामिल हो रहे हो और हमको खबर भी नहीं। मैनें इंदिरा हृदयेश जी की कड़कती आवाज को पहचान लिया था। सो मैंने प्रणाम किया और वे आदेशात्मक अंदाज में बोलीं मैं यूपी निवास में हूँ। मिल कर जाना और मैं उनसे मिला तो वे बहुत खुश हुईं। कहा ये कांग्रेस है। बहुगुणा जी की या तुम्हारे मुलायम सिंह की पार्टी नहीं, जरा संभल के रहना।
दो विधायकों के विधायक दल की नेता से राज्य की सबसे ताकतवर मंत्री
राज्य निर्माण के बाद उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का बहुत ड्रामा चला। इंदिरा जी अध्यक्ष बनते बनते रह गईं और कुछ दिन बाद वे दो विधायकों वाले विधायक दल की नेता बन गईं। जब वे दिल्ली से देहरादून पहुंची तो हमने उनका जबरदस्त स्वागत समारोह किया द्रोण होटल में। वे समारोह के बाद बोलीं क्या फर्क पड़ता है। एमएलए दो हों या दस। अरे सीएलपी तो सीएलपी होता है। तब से लेकर राज्य में पहले चुनाव होने तक वे पूरी तरह से सक्रिय रहीं और पहली निर्वाचित सरकार में एनडी तिवारी जी की सरकार में वे सबसे ताकतवर मंत्री के रूप में पूरे पांच साल रही। तिवारी जी सदन में बहुत कम आते थे। उनकी जगह डॉक्टर इंदिरा हृदयेश ही सदन में नेता के रूप में फ्लोर मैनेजमेंट से लेकर सदन की कार्यवाही सब कुछ चलाती थीं।
2007 का चुनाव हार गईं इंदिरा जी
1974 में उत्तरप्रदेश की शिक्षक राजनीति से यूपी के उच्च सदन में शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होने के बाद डॉक्टर इंदिरा हृदयेश ने हार का मुंह केवल एक बार देखा। वो भी उत्तराखंड बनने के बाद दूसरे विधानसभा चुनाव में 2007 में। अपने निर्वाचन क्षेत्र में बेतहाशा विकास कार्य करवाने के बावजूद वे हल्द्वानी से चुनाव हार गईं, लेकिन उनकी हार के बाद हल्द्वानी के लोगों ने पांच सालों में यह एहसास कर लिया कि उनका निर्णय गलत था और 2012 में उन्होंने अपनी गलती सुधारते हुए फिर इंदिरा जी को भारी मतों से जिता दिया। फिर पांच साल तक इंदिरा जी बहुगुणा सरकार और फिर हरीश रावत सरकार में मंत्री रहीं। पूरे पांच साल और फिर जब 2017 में चौथी विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय समेत अनेक मंत्री हार गए। हल्द्वानी की जनता ने इस बार 2007 की गलती नहीं दोहराई और उन्होंने इंदिरा जी को आराम से जिता कर विधानसभा पहुंचा दिया। वे 11 विधायकों वाले विधायक दल की नेता यानी नेता प्रतिपक्ष बन गईं।
पक्ष विपक्ष सब करते थे सम्मान
इंदिरा जी उम्र में तजुर्बे में और सियासत में तीनों में राज्य में सबसे वरिष्ठ थीं। अपार ज्ञान, अदभुत प्रशासनिक क्षमता , हमेशा गरिमा व मर्यादा का पालन करना ये उनके व्यक्तित्व के मुख्य अंश थे । वे कभी हल्की बात नहीं करती थी और कड़वा सच बोलने में भी नहीं चूकती थी। उनके वरिष्ठता और तजुर्बे का पक्ष विपक्ष के नेता इतना ख्याल रखते थे कि वे तिवारी जी और खंडूरी जी को छोड़ कर सभी मुख्यमंत्रियों को उनके पहले नाम से ही संबोधित कर बुला लेती थी और कभी कभार डांट डपट वाले अंदाज में भी बोल देती थी। इसका कभी कोई बुरा नहीं मानता था। क्योंकि सब को मालूम रहता था कि उसमें उनका कोई पूर्वाग्रह नहीं है।
एक संस्मरण इस संबंध में पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के साथ का है जब वे कांग्रेस के सीएम थे और इंदिरा जी मंत्री थीं उनके साथ। सीएम आवास में में भी दोनों के साथ मैं मौजूद था। किसी विषय पर थोड़ी गरमा गरम बहस हो गयी तो इंदिरा जी बोली सुनिए विजय जी आपके पिताजी के साथ काम किया है और बहुत सीखा है। उनसे इसलिए मुझे मत समझाइए इस पर विजय बहुगुणा जी आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गए। वह बोले यस मैडम यू आर राइट और फिर माहौल एकदम सहज हो गया।
कल शाम अंतिम बार मेरी बात हुई इंदिरा जी से
11 जून को करीब दोपहर एक बजे मैंने फोन किया तो दीदी बोली अभी प्रदर्शन से फ्री हो कर दिल्ली निकल पड़े हैं। तुमको तो पता है मीटिंग है वहां। फिर बोली कैसा रहा गढ़वाल में कितनी जगह हुआ। यहां तो पूरे कुमाऊं में हुआ प्रदर्शन। लोगों में बड़ा आक्रोश है जो अब दिख रहा है। जब तक नेटवर्क गायब नहीं हुआ दीदी सवाल दागती रही और मैं जवाब देता रहा। मेरे एक प्रश्न पर उनके चार पांच काउंटर सवाल आते थे। लेकिन उत्साहित थीं और उत्तराखंड में वापसी के लिए उत्सुक भी थीं और आश्वस्त भी थीं। जो उनकी शंकाएं थी उन पर जरूर बोलती थीं और एक टीचर की तरह सुधार के लिए जरूरी नसीहत भी देती थीं।
कल शाम इंदिरा जी को फोन किया तो बोली अरे भई अब समय नहीं रहा तुम लोग तैयारी ठीक से करो। फिर बोली परिवर्तन यात्रा तय हो रही है। तुम जरा अध्यक्ष जी के साथ बैठ कर चर्चा करो। ये अंतिम संवाद था मेरा कल उनके साथ।
वे मेरे लिए व्यक्तिगत रूप में नेता से ज्यादा एक मातृत्व वाली संरक्षक थीं बहुत सारी बातें वे मुझसे साझा कर लेती थी। बहुत स्नेह भी करती थीं और विश्वास भी। उनका जाना कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत बड़ा नुकसान है राज्य के लिए भी अपूरणीय क्षति और मेरे लिए तो व्यक्तिगत हानि है। किंतु, हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ । इसलिए ईश्वर की इच्छा मानते हुए दिवंगत आत्मा को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए यह शब्दाजंलि भेंट कर रहा हूँ।
सूर्यकांत धस्माना
उपाध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस कमेटी, उत्तराखंड।
बड़ी बहन और एक संरक्षक के रूप में दिया आशीर्वादः विजय धस्माना
मैं, उत्तराखंड की पूर्व वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री एवं वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश जी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करता हूं। ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति व परिजनों को दुःख सहने की शक्ति देने की प्रार्थना करता हूं। डॉ. हृदयेश जी का जाना मेरे लिए ही नहीं प्रदेश के लिए भी व्यक्तिगत व अपूर्णीय क्षति है। स्व. इंदिरा हृदयेश जी से मेरा परिचय कई सालों पुराना था, उनसे सदा मुझे बड़ी बहन व एक ल सरंक्षक के रूप में हमेशा आशीष मिला।
वित्त मंत्री रहते हुए उनके कार्यकाल में प्रदेश ने औद्योगिक ऊंचाइयों को छुआ। स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) से भी इंदिरा जी का खासा जुड़ाव रहा। विश्वविद्यालय की जनसेवा की मुहिम में भी इंदिरा जी ने हमेशा एक कदम आगे बढ़कर साथ दिया। स्व. इंदिरा जी, 12 मार्च 2015 को एसआरएचयू के तीसरे स्थापना दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भी शामिल हुईं थीं।
उत्तराखंड स्व. इंदिरा हृदयेश जी के योगदान को कभी नहीं भुला पाएगा। नवोदित राज्य उत्तराखंड को आर्थिक और औद्योगिक विकास की रफ़्तार से अपने पैरों पर खड़ा करने में इंदिरा जी ने अहम भूमिका निभाई है। ॐ शांति !!
डॉ. विजय धस्माना
कुलपति, स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत दुखद समाचार, ओम् शान्ति
इंदरा हृदयेश कांग्रेस की भौत बड़ी नेता थी. विनम्र श्रद्धांजलि ओम् शान्ति