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December 28, 2024

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी का निधन, लंबे समय से चल रही थीं बीमार

प्रसिद्ध उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी का मंगलवार की सांय निधन हो गया। वह 84 साल की थी। वे बीते काफी समय से बीमार चल रही थीं। मिली जानकारी के मुताबिक आज दोपहर उनकी तबियत खराब होने पर उन्हें मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। देर सांय उनका निधन हो गया। मूलरूप से उत्तरकाशी जनपद की निवासी सुशीला बलूनी अधिवक्ता भी थीं। उनकी अंतिम यात्रा बुधवार को डोभालवाला स्थित आवास से निकलेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में सुशीला बलूनी ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। वह पेशे से अधिवक्ता थीं। साथ ही सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती रहीं। वर्ष 1994 में राज्य आंदोलन जब गति पकड़ रहा था, तो उस समय वह देहरादून कलक्ट्रेट पर राज्य आंदोलन के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठने वाली पहली महिला थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्हें भाजपा सरकार में विभिन्न दायित्व भी मिले। बीमारी के बावजूद वे आखिरी समय तक राजनीतिक व सामाजिक कार्यों में सक्रिय रही। वे ताई जी के तौर पर भी पहचानी गईं। उनका आवास देहरादून में डोभालवाला निवासी थीं। उनके निधन पर सीएम पुष्कर सिंह धामी, राज्य आंदोलनकारी रविन्द्र जुगरान, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, त्तराखंड कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष करण महारा, कांग्रेस  के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना,  धीरेंद्र प्रताप सहित समेत विभिन्न दलों व सामाजिक संगठन से जुड़े लोगों ने दुख व्यक्त किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

1994 के आंदोलन में अनशन पर बैठने वाली पहली महिला
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल के मुताबिक, नौ अगस्त 1994 को देहरादून कलेक्ट्रेट में आमरण अनशन करने वाली वे उस दौर के राज्य आंदोलन (1994) की पहली महिला सुशीला बलूनी थीं। पर्वतीय गांधी इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के केंद्रीय संयोजक मंडल की सदस्य होने के साथ ही वे उत्तराखंड आंदोलन में महिलाओं की केंद्रीय संघर्ष समिति की संयोजक भी रहीं। अनेक बार जेल यात्राएं करने के अलावा वे लाठीचार्ज में घायल हुईं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुजफ्फर नगर के रामपुर तिराहा पर 2 अक्तूबर 1994 की सुबह हुए जघन्य कांड के विरोध में आंदोलन का संचालन करने वाली वे प्रमुख महिला नेत्री थीं। जनता दल, उत्तराखंड क्रांति दल के बाद वे पिछले ढाई दशक से भाजपा में थीं। राज्य आंदोलन में वे 1994 से पूर्व उस दौर में भी सक्रिय रहीं, जब यह राज्य के नामलेवा चांद लोग ही हुआ करते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसा संघर्षशील व्यक्तित्व, सभी करते थे जिसका सम्मान
राजनीति का ककहरा उन्होंने स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा से सीखा था। सुशीला बलूनी उत्तराखंड और खासकर देहरादून में राजनीति की वह सख्शीयत थीं, जो किसी भी दल में रही हों, मगर उन्हें सम्मान देने वाले हर दल में रहे। काफी उम्रदराज होने के बावजूद वे हर संघर्ष में अग्रणी रही हैं। हालांकि, राजनीतिक रूप से उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसकी वे हकदार थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
1996 में निर्दलीय और 2002 में उक्रांद के टिकट पर वे विधानसभा का चुनाव लड़ीं, मगर सफलता नहीं मिली। 1989 में वे देहरादून नगर पालिका की सदस्य भी रहीं। वे जनता दल की नगर अध्यक्ष भी रहीं। साल-2003 में देहरादून नगर निगम के पहले चुनाव में वे मेयर का चुनाव भी लड़ीं, लेकिन सफलता नहीं मिली। वे भाजपा सरकारों के समय राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद और राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष भी रहीं। उनके निधन से समूचे उत्तराखंड में शोक की लहर है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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