उत्तराखंड में यूसीसीः समानता में क्यों छिपा दी गई असमानता, देखें वीडियो

अचानक उत्तराखंड राज्य फिर से चर्चा में आ गया। कारण ये है कि इस राज्य में 27 जनवरी को समान नागरिक संहिता लागू कर दी गई। सीएम धामी ने इसकी घोषणा करते हुए इसकी अधिसूचना का अनावरण करने के साथ ही यूसीसी पोर्टल का शुभारंभ और यूसीसी नियमावली बुकलेट का विमोचन किया। वहीं, समान नागरिक संहिता को समान नागरिक संहिता कहना कितना उचित है, इसका फैसला आप पर है। क्योंकि इसमें जनजाति को शामिल नहीं किया गया है। फिर इसे समान नागरिक संहिता बोलना कितना उचित है। कारण वोट बैंक हो या फिर सिर्फ एक वर्ग को टारगेट बनाना। वैसे भी अब लोग पूछ रहे हैं कि क्या इसके लागू होने से अब महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी दूर हो जाएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूसीसी को लेकर विपक्षी दलों की कड़ी प्रतिक्रिया आ रही है। कांग्रेस का कहना है कि इससे गरीबों का क्या भला होगा, ये सरकार को बताना चाहिए। क्या इस कानून से देश और प्रदेश की इस तरह की समस्याएं मिट जाएंगी। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उत्तराखड देवभूमि है, लेकिन सरकार एक तरह से लिव इन रिलेशन को मान्यता दे रही है। ऐसे में उत्तराखंड देवभूमि को बदनाम करने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसमें जनजाति को क्यों छोड़ा गया। क्या वे राज्य के नागरिक नहीं हैं। साफ जाहिर है कि इसमें वोट की राजनीति है। ऐसे में इसे समान नागरिक संहिता कैसे कहा जा सकता है। जब हर वर्ग व जाति के लिए समान कानून ना हों। अब आप इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए पूरी वीडियो देखें। ( आगे खबर अगले पैरे में वीडियो से समझें)
पूरी वीडियो में देखें यूसीसी का सच
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।