दो लघुकथाएंः आस की डोर और चल झूठे, लेखक- ललित मोहन गहतोड़ी
आस की डोर
ममता के आदतन मजबूर मां ने रमाशंकर से कहा देखो रमा आज तुम्हारे भाई की तबियत खराब लग रही है। तुम जाकर उसके कार्य में कुछ सहायता तो करो। रमाशंकर बेमन उस जगह पर पहुंचा जहां उसका छोटा भाई काम में लगा था। भाई को ठीक ठाक काम करते देख छह फुटि रमा तनिक संतुष्ट हुआ और दोनों हाथ जेब में डाले चौकीदार की तरह आसपास का पूरा एरिया घूम आया। फिर बोला अच्छा चलता हूं। भाई ने कुछ नहीं कहा बावजूद इसके रोज की तरह उस कामचोर को एकटक देखते रहे थे। और पल होता तो मजाकिया मूड में कह भी देते बहुत काम करके थक गया है। रूक जा चाय बिस्कुट मंगाता हूं खाकर जाएगा। लेकिन इस दौरान भाई की पिछले 3 -4 दिन से तबियत बहुत खराब थी आंख से गिरती दो बूंद पोंछने हुए अपने कार्य में तल्लीनता से जुट गये, जैसे कोई सामने आया ही ना हो। उन्होंने सोचा जिस रमाशंकर से माता पिता की ही आस नहीं बांधी, उससे आगे क्या आस करनी? उसके आस की डोर अब पूरी तरह से टूट चुकी थी। (अगले पैरे में पढ़िए दूसरी लघुकथा)
चल झूठे
लड़की बोली मेरे लिए अलग घर बनाओगे? चांद तारे तोड़ लाओगे? मां बाब को त्याग दोगे? और क्या क्या करोगे?
लड़का बोला मां कसम तुम्हारे लिए महल बनाऊंगा। चांद तारे और सितारे सजाऊंगा। तुम कहोगी तो मां बाब, भाई बहन और रिश्ते नाते सबकुछ छोड़ दूंगा और तुम्हारी याद में पागल मैं तुम्हें अपनी दुल्हन बनाऊंगा।
लड़की बोली चल झूठे और मक्कार आदमी, जो अपने मां बाब भाई बहन और नाते रिश्तेदारों का नहीं हो सका, वो मेरा क्या होगा?
लेखक का परिचय
रचनाकार ललित मोहन गहतोड़ी काली कुमाऊं चंपावत से प्रकाशित होने वाली वार्षिक सांस्कृतिक पुस्तक फुहारें के संपादक हैं। वह जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट जिला चंपावत, उत्तराखंड निवासी हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।